नई दिल्ली. दादा साहेब फाल्के…ये उस इंसान का नाम है, जिसे फादर ऑफ इंडियन सिनेमा कहा जाता है। गुलाम भारत का पहला इंसान जिसने अपनी पहली फिल्म बनाने के लिए प्रॉपर्टी और पत्नी के जेवर तक गिरवी रखे। ये फिल्म बनाने के लिए स्ट्रगल इस कदर था कि फिल्म में हीरोइन बनने से वेश्याओं ने भी इनकार कर दिया। एक लड़के को ही हीरोइन बनाया। ऐसा एक बार नहीं, बल्कि कई बार हुआ। फिल्म में औरतें नहीं होती थीं तो खुद ही सेट पर साड़ी पहनकर लड़कों को लड़कियों जैसी एक्टिंग सिखाते थे। ऐसी कई दिलचस्प कहानियों से भरी है दादा साहेब फाल्के की जिंदगी। दादा साहेब फाल्के वो शख्स हैं, जिनके नाम पर भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया जाता है, लेकिन अपने जीवन काल में उन्हें कोई अवॉर्ड नहीं मिला। एक पुजारी के घर में जन्मा साधारण सा लड़का अपने भारतीय सिनेमा का जनक बन गया। 30 अप्रैल 1870 को महाराष्ट्र के नासिक के पास त्र्यंबक क्षेत्र में धुंडिराज गोविंद फाल्के का जन्म हुआ। पिता गोविंद सदाशिव फाल्के पुजारी थे। घर लोअर मिडिल क्लास जैसा था। दादा साहेब फाल्के के 6 भाई-बहन और थे। पिता संस्कृत के विद्वान थे, इसलिए घर में पौराणिक कथाओं को बचपन से ही सुनते रहते थे। पिता को बॉम्बे (अब मुंबई) के विल्सन कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर की नौकरी मिल गई तो परिवार बॉम्बे शिफ्ट हो गया। यहीं, 1885 में सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला ले लिया। यहां पेंटिंग और फोटोग्राफी सीखी। इसी दौरान उनकी शादी भी करा दी गई। मुंबई में फोटोग्राफी में कोई मौका नहीं मिला। प्रिंटिंग प्रेस में भी काम किया, लेकिन वो भी रास नहीं आया। नतीजा ये हुआ कि घर चलाने में दिक्कत होने लगी। तब फाल्के मुंबई से गोधरा आ गए। यहां फोटोग्राफी में हाथ आजमा ही रहे थे कि सन 1900 में गोधरा में प्लेग फैल गया। पहली पत्नी और बेटा भी इसके शिकार हो गए। फाल्के अकेले रह गए।
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