जयपुर. जयपुर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट बनाने के बाद भले ही जयपुर देश की चुनिन्दा मेट्रो सिटी में शामिल हो गया हो, लेकिन उसका जनता को कोई खासा लाभ नहीं मिला। ये मेट्रो अब पब्लिक के लिए न तो फायदे का सौदा साबित हुई और न ही सरकार के लिए। पिछले 5 साल में मेट्रो को चलाने पर सरकार को अपनी जेब से 181 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्चा और करना पड़ गया। पिछले 5 साल (वित्तवर्ष 2016-17 से 2020-21) तक के ऑपरेशन और मेंटेनेंस (संचालन और रखरखाव) पर जितना खर्च करना पड़ा उस खर्चे का 30 फीसदी भी रेवेन्यू नहीं मिला है। इन 5 साल में सरकार ने मेट्रो के संचालन पर 257.62 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्चा कर दिया, लेकिन सरकार को इससे रेवेन्यू केवल 76.09 करोड़ रुपए ही मिला है। आपको बता दें कि जयपुर मेट्रो के मानसरोवर से बड़ी चौपड़ तक के रूट को बनाने में सरकार ने 3105 करोड़ 54 लाख रुपए से ज्यादा की राशि खर्च करनी पड़ी। नॉन कोविड पीरियड में मेट्रो को हर साल औसतन 19 से 21 करोड़ रुपए के बीच रेवेन्यू मिल रहा था। अप्रैल 2020 में कोविड आने और उसके बाद लॉकडाउन लगने से मेट्रो ट्रेन का संचालन और लोगों का आवागमन बंद हाे गया। इस कारण मेट्रो का ये घाटा 2020-21 में सबसे ज्यादा रहा। इस पूरे वित्त वर्ष में मेट्रो के संचालन और अन्य रेवेन्यू सोर्स से कुल 6.31 करोड़ रुपए की आय हुई, जबकि इस साल खर्चा 57.57 करोड़ रुपए हुआ, ये पिछले वित्त वर्ष से 4 करोड़ रुपए ज्यादा था। वर्तमान में जो रूट है वह मानसरोवर में किसान धर्मकांटे (गोपालपुरा बाइपास) से गुर्जर की थड़ी, न्यू सांगानेर रोड, अजमेर रोड, सिविल लाइन्स, अजमेर पुलिया, जयपुर जंक्शन, सिंधी कैंप, चांदपोल होते हुए बड़ी चौपड़ तक बना है। इस रूट पर वर्तमान में पब्लिक का तो मूवमेंट है, लेकिन यहां लोगों को आसानी से पब्लिक ट्रांसपोर्ट के दूसरे संसाधन जैसे मैजिक, ई-रिक्शा, मिनी बस, लो फ्लोर बस मिल जाती है। इसमें किराया मेट्रो ट्रेन के समान ही पड़ता है। ऐसे में यात्री को मेट्रो स्टेशन पर चढ़ने-उतरने, स्टेशन बाहर निकले और मेट्रो ट्रेन का इंतजार करने में जितना समय लगता है उतने समय में वह दूसरे संसाधन से अपनी जगह तक पहुंच जाता है।
All Rights Reserved & Copyright © 2015 By HP NEWS. Powered by Ui Systems Pvt. Ltd.