जीवन में जो कुछ भी हम बनते हैं, या नहीं बन पाते हैं इसके मूल में हमारी शिक्षा ही होती है। चाहे वह शिक्षा हमें माता-पिता से मिले, बड़े-बूढ़ों से मिले या स्कूल-कॉलेज में मिले। जीवन की रोशनी हर हाल में शिक्षा ही है। देश में अब लेकिन शिक्षा में भी धर्म के आधार पर लकीर खिंचती दिखाई दे रही है। कर्नाटक में हाल ही में कुछ मुस्लिम संगठनों ने दर्जनभर से ज्यादा निजी कॉलेज खोलने के आवेदन दिए हैं। इन संगठनों का कहना है कि ये वे कॉलेज होंगे जहां हिजाब पर प्रतिबंध नहीं होगा। सबको पता ही है कि कर्नाटक के सरकारी कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध है और इस प्रतिबंध को वापस लेने की अर्जी सुप्रीम कोर्ट भी खारिज कर चुका है। हो सकता है ये लकीरें आगे चलकर मॉल, किराना दुकान, होटलों और रेस्त्रां तक पहुंच जाएं। आखिर ये लकीरें हमें कहां तक ले जा सकती हैं, इसका अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है। लोगों को, सरकारों को और प्रशासन को तुरंत इस बारे में समरसता के बीज बोने शुरू कर देना चाहिए। बिना सौहार्द और समरसता के ये लकीरें रुकने वाली नहीं हैं। किसी भी संप्रदाय की कोई भी आपत्ति हो सकती है। जिद भी हो सकती है, लेकिन कोई आपत्ति, कोई जिद, ऐसी नहीं होती जिसका कोई हल न हो, कोई समाधान ही नहीं हो! अगर हर मोर्चे पर प्रयास किए जाएं तो निश्चित ही सौहार्द और समरसता की फसल का आनंद पूरा देश उठा सकता है। शर्त सिर्फ यह होनी चाहिए कि प्रयास सच्चे हों। कोशिशें ईमानदार हों। बंटता समाज कभी देश हित में नहीं हो सकता। हो सकता है राजनीति के चतुर खिलाड़ियों, चाहे वे किसी भी कौम के हों, को ये लकीरें आत्मीय सुख देती हों, लेकिन आने वाली पीढ़ी के लिए यह सर्वथा अनुचित है। पीढ़ियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए सौहार्द के बीज बोने ही होंगे। हर स्तर पर।
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