आगामी लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर जहां पूरा विपक्ष एकता मोर्चा बनाकर भाजपा को रोकने की रणनीति बनाने में जुटा है. वहीं, भाजपा भी अपने पुराने गठबंधन के सहयोगियों को अपने साथ लाने की कवायद में जुट गई है. एनडीए सरकार (NDA Government) का हिस्सा रहे सहयोगी दलों के बीच में छोड़कर चले जाने और अब उनको एक बार फिर से साथ लाने की कोशिश भी तेज हो गई है, जिससे कि एनडीए का कुनबा मजबूत किया जा सके.
ताजा उदाहरण पंजाब की सियासत को लेकर देखा जा सकता है. लंबे समय तक एनडीए सरकार में सहयोगी रहे शिरोमणि अकाली दल (SAD) के फिर से इसका हिस्सा बनने की सुगबुगाहट तेज हो गई हैं. हाल ही में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar) को पंजाब प्रदेश संगठन की कमान सौंपे जाने के बाद यह अटकलें ज्यादा तेज हो गई हैं.
सूत्रों की माने तो शिरोमणि अकाली दल प्रधान सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Badal) और भाजपा हाईकमान के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा हो चुकी है. लोकसभा और विधानसभा सीटों के बंटवारे के फॉर्मूले पर भी सहमति बन चुकी है.
पार्टी की मंजूरी लेने के लिए सुखबीर सिंह बादल ने कोर कमेटी से मीटिंग की है. कल जिला प्रधानों और विधानसभा क्षेत्र के इंचार्जों की मीटिंग भी बुलाई है. सूत्रों के अनुसार गठबंधन हुआ तो फिर सुखबीर बादल की सांसद पत्नी हरसिमरत कौर बादल (Harsimrat Kaur Badal) केंद्र की NDA सरकार में मंत्री बन सकती हैं या फिर सुखबीर सिंह बादल को भी बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. हरसिमरत ने गठबंधन तोड़ने के कुछ दिन बाद ही केंद्र में फूड प्रोसेसिंग मंत्री का पद छोड़ दिया था. उनके ही पुराने मंत्रालय के साथ मंत्री बनने के ज्यादा चांसेज हैं.
जानकारी के मुताबिक भाजपा और शिअद दोनों ही पंजाब में एक दूसरे के साथ आने की जरूरत को अंदरखाने महसूस कर रही हैं. इसके चलते भाजपा भी अगले साल लोकसभा चुनावों से पहले पंजाब में अपने पूर्व सहयोगी क्षेत्रीय दल शिअद के साथ पुनर्मिलन की संभावना पर जोर दे रही है.
बताते चलें कि पिछले साल कांग्रेस से नाराज चल रहे सुनील जाखड़ ने भाजपा ज्वाइन कर ली थी. गत मंगलवार को सुनील जाखड़ को पंजाब संगठन का अध्यक्ष भी घोषित कर दिया गया है. उन्होंने दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ बैठक की और घोषणा की कि उनकी प्राथमिकता पंजाब की सभी 13 लोकसभा और 117 विधानसभा सीटों पर पार्टी का आधार बढ़ाना होगा. हालांकि उन्होंने इस पर कोई सीधा जवाब देने से परहेज किया कि क्या दोनों पूर्व सहयोगी (भाजपा-शिअद) एक साथ आएंगे. इस पर जाखड़ ने कहा कि इस तरह को कोई भी फैसला आलाकमान पर छोड़ा जाता है. अकाली दल 3 कृषि कानूनों के विरोध में 2021 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए से बाहर हो गया था.
हालांकि भाजपा और शिअद दोनों के वरिष्ठ नेता फिलहाल सुलह की किसी भी तरह की खबरों और अटकलों से इनकार कर रहे हैं. पार्टी सूत्रों का कहना है कि जमीनी स्तर पर वर्तमान राजनीतिक वास्तविकताओं को देखते हुए दोनों का एक साथ आना करीब-करीब अपरिहार्य माना जा रहा है.
भाजपा भी पंजाब में राजनीतिक परिदृश्य में अपने को मजबूत करने के लिए एक मजबूत क्षेत्रीय दल की जरूरत महसूस कर रही है. वहीं दूसरी ओर अकाली दल भी लगातार चुनावों में गिरते अपने स्तर को भांप चुका है. ऐस में एक बार फिर से एनडीए का हिस्सा बनना चाहता है.
भाजपा पंजाब के कई कद्दावर कांग्रेसी नेताओं को भाजपा में लाने में सफल हुई है. ऐसे में वह सुनील जाखड़ के पास विशाल राजनीतिक अनुभव को समझ चुकी है और उनके हिंदू और सिख दोनों समुदायों के बीच अच्छे दबदबा को भी महसूस कर चुकी है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि अन्य दलों के बीच भी उनकी स्वीकार्यता अधिक है. वह दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन बनाने के आधार हो सकते हैं.
लेकिन दोनों पार्टियों के बीच चल रही पुनर्गठबंधन की अटकलों ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) की वर्तमान गठबंधन सहयोगी बहुजन समाज पार्टी (BSP) को असहज कर दिया है. बसपा पंजाब प्रमुख जसवीर गढ़ी (BSP Punjab chief Jasvir Garhi) ने भाजपा (BJP) पर हमला करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया.
अकाली-भाजपा गठबंधन के संभावित पुनर्गठबंधन के सवालों पर गढ़ी ने कहा कि वह रिपोर्टों की सटीकता का पता लगाने का प्रयास कर रहे थे लेकिन अभी तक इस बारे में कुछ साफ नहीं पाया है. लेकिन इस पूरे मामले में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार पार्टी सुप्रीमो मायावती (Mayawati) के पास ही है.
इस बीच देखा जाए तो पार्टी सुप्रीमो मायावती शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर बादल के पिता और अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल (Parkash Singh Badal) के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए उनसे मिलने नहीं गईं थीं. इसके बाद से दोनों गठबंधन सहयोगियों के बीच असंतोष की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी. दूसरी तरफ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने व्यक्तिगत रूप से प्रकाश सिंह बादल के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए वो सुखबीर बादल से मुलाकात करने पहुंचे थे, जिससे दोनों दलों के बीच मतभेदों को दूर करने की कोशिशों की अटकलें तेज हुईं.
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