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पवार vs पवार की जंग में वोटर कन्फ्यूज! बारामती में शरद के लिए 'सम्मान', पर अजित दादा को 'समर्थन'

पुणे जिले में, शहर से लगभग 100 किमी दूर, पवार परिवार का गढ़- बारामती स्थित है. इस शहर ने 1960 के दशक से शरद पवार का समर्थन किया है और परिवार को यहां अजेय रखा है. जबकि पवार परिवार और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी विभाजन के कगार पर दिख रही है, वहीं बारामती में लोग शरद पवार को जाने नहीं देना चाहते और दादा (अजित पवार) का समर्थन भी कर रहे हैं. यहां के मतदाताओं के लिए, सीनियर पवार (शरद) देव तुल्य हैं, जबकि जूनियर पवार (अजित) ऐसे व्यक्ति हैं जो उनकी सभी समस्याओं का समाधान करते हैं.

शरद पवार पहली बार 1967 में कांग्रेस के टिकट पर यहां से विधायक बने थे. तब से बारामती ने कभी भी पवार परिवार के सदस्य के अलावा किसी अन्य को नहीं चुना है. बारामती से सुप्रिया सुले 2009 से सांसद हैं, जबकि अजित पवार 1991 से विधायक हैं. इसे देखते हुए, पार्टी में तख्तापलट के बीच शहर का समीकरण समझना बेहद पेचीदा है. 1960 के दशक में बारामती का राजनीतिक परिदृश्य ऐसा था कि यहां कोई स्थानीय नेता नहीं था. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले गैर-स्थानीय थे.

अपने गुरु और कांग्रेस नेता यशवंतराव चव्हाण के निर्देश पर शरद पवार तब इन उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार करते थे. बारामती के प्रोफेसर माधव जोशी ने News18 को बताया, ‘शरद राव बारामती में साइकिल से प्रचार करते थे. वह पुणे भी जाया करते थे. हमें एहसास हुआ कि कोई स्थानीय नेता नहीं है, और हम सभी कांग्रेसियों को वोट दे रहे हैं, जो बारामती को नहीं समझते हैं. तब लोगों ने शरद पवार से बारामती से चुनाव लड़ने का अनुरोध किया. तब से शरद गोविंदराव पवार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने शहर और जिले में शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के लिए काम किया.’

माधव जोशी ने कहा, ‘उन्होंने समाज के सबसे निचले तबके के लिए अंग्रेजी माध्यम के स्कूल स्थापित किए. किसी ने नहीं सोचा होगा कि बारामती में किसानों के बच्चे अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ेंगे.’ हालांकि, जब शरद पवार ने राष्ट्रीय मोर्चे पर जिम्मेदारियां उठाईं, तो बारामती में उनकी जिम्मेदारियाँ भतीजे अजित पवार को सौंप दी गईं. एक पार्टी कार्यकर्ता ने News18 से कहा, ‘अजित दादा सुबह 5 बजे से लोगों की सेवा के लिए तैयार रहते हैं. उन्होंने बारामती में औद्योगिक विकास लाया है.’

वर्तमान में, बारामती और आसपास के जिलों में 80 से अधिक स्कूल हैं, जबकि बारामती एमआईडीसी में 120 से अधिक उद्योग हैं, जहां हाई-एंड ब्रांडों के लिए चॉकलेट का निर्माण, पुरुषों के परिधान बनाने वाले भारतीय ब्रांड, बर्फ कारखाने आदि मौजूद हैं. बारामती के मतदाता शहर में शैक्षिक विकास का श्रेय शरद पवार को देते हैं, लेकिन उनका मानना ​​है कि उन्हें अजित पवार के कारण रोजगार मिला है. एक निवासी ने कहा, ‘हमारे लिए, अजित पवार और शरद पवार एक ही पायदान पर हैं. हमें विश्वास है कि वे जल्द ही एक हो जाएंगे. हम वास्तव में चयन नहीं कर सकते. बारामती की बेहतरी के लिए, दोनों की आवश्यकता है.’

बारामती में कई लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि अगर उन्हें चाचा और भतीजे में से किसी एक को चुनना हो तो वे किसका समर्थन करेंगे. उन्हें अब भी उम्मीद है कि पार्टी में विभाजन नहीं होगा, हालांकि जूनियर पवार ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि वह चाहेंगे कि शरद पवार सेवानिवृत्त हो जाएं और उन्हें एनसीपी का नेतृत्व करने दें. इस क्षेत्र में एनसीपी का दबदबा ऐसा है कि कांग्रेस, जिसके चुनाव चिन्ह के तहत पहले शरद और अजित पवार बारामती में जीते थे, अब महत्वहीन हो चुकी है. वर्तमान में, बारामती में राकांपा और भाजपा के बीच हमेशा एकतरफा लड़ाई होती है, जहां राकांपा एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीतती है.

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