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एक दिवालिया मजदूर, कभी दो किराये के कमरों में करता था काम, फिर रचा इतिहास, दुनिया के 90 देशों में गाड़े झंडे

आज हम आपको एक ऐसी कंपनी के बारे में बताने जा रहे हैं, जो विदेशी है, लेकिन इसका दिल पूरा हिंदुस्तानी है. ये कंपनी हर मिडिल क्लास की पहली पसंद है. कई लोग तो इसे भारतीय कंपनी ही समझते हैं. हम बात कर रहे हैं शू कंपनी BATA की. भारत में लंबे समय से जूते बनाने वाली कंपनी बाटा किंग बनी हुई है. वैसे तो कहने को ये MNC कंपनी है, लेकिन इसका दिल है पूरा हिंदुस्तानी. आज से करीब 93 साल पहले देश में इस ब्रांड ने कदम रखा.

ये वो दौर था जब जापान के जूते बहुत फेमस हुआ करते थे, या यूंं कहें जापानी जूतों की काफी डिमांड हुआ करती थी. लेकिन BATA के देश में कदम रखने के बाद ये मिडिल क्लास का फेवरेट शू बन गया. आज हम आपको बाटा की रोचक कहानी बता रहे हैं… BATA चेक रिपब्लिक देश की कंपनी है. इसकी लिस्टिंग जून 1973 में हुई.

यूरोपीय देश चेकोस्लोवाकिया के एक छोटे से कस्बे ज्लिन में रहने वाला बाटा परिवार कई पीढ़ियों से जूते बनाकर गुजर-बसर कर रहा था. संघर्षों के बीच वर्ष गुजरते रहे. 1894 में इस परिवार की किस्मत पलटी जब पुत्र टॉमस ने बड़े सपने देखे. उसने पारिवारिक उद्योग को प्रोफेशनल बनाने के लिए अपनी बहन एन्ना और भाई एंटोनिन को अपना सहयोगी बनाया. बड़ी मुश्किल से भाई-बहनों ने मां को राजी किया और उनसे 320 डॅालर प्राप्त किए. इसके बाद उन्होंने गांव में ही दो कमरे किराए पर लेकर किस्तों पर दो सिलाई मशीनें लीं, कर्ज लेकर कच्चा माल खरीदा और कारोबार शुरू किया.

टॉमस जी. बाटा ने अपने भाई-बहन के कारोबार छोड़ने के बाद हताशा को खुद पर हावी नहीं होने दिया और मात्र 6 साल में काम को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया कि अब दुकान छोटी पड़ने लगी. कारोबार बढ़ाने के लिए टॉमस को भारी कर्ज लेना पड़ा. एक दौर ऐसा भी आया जब समय पर कर्ज न चुकाने के कारण उनके दिवालिया होने की नौबत आ गई. ऐसे में टॉमस और उनके तीन कर्मचारियों ने छह महीने तक न्यू इंग्लैंड की एक जूता कंपनी में मजदूर बनकर काम सीखा. इस दौरान उन्होंने कई कंपनियों के कामकाज को बारीकी से देखा और उनकी कार्यप्रणाली समझकर स्वदेश लौट आए. यहां उन्होंने नए ढंग से काम शुरू किया. 1912 में टॉमस ने 600 मजदूरों को नौकरी दी और सैकड़ों को उनके घरों में ही काम मुहैया कराया.

टॉमस बाटा ने 1894 में इसकी शुरुआत की थी. कंपनी रबर और चमड़े की खोज में भारत आई. 1939 में कोलकाता से कंपनी का कारोबार शुरू हुआ. बाटानगर में देश की पहली शू मशीन लगाई गई. आज भारत बाटा का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. बाटा ने पहली फैक्ट्री पश्चिम बंगाल के कोन्नागर में खोली थी, जो बाद में बाटागंज शिफ्ट हो गई. बाटागंज बिहार के बाद फरीदाबाद (हरियाणा), पिनया (कर्नाटक) और होसुर (तमिलनाडु) समेत पांच फैक्टरियां शुरू हुईं. इन सभी जगहों पर चमड़ा, रबर, कैनवास और पीवीसी से सस्ते, आरामदायक और मजबूत जूते बनाए जाते हैं. भारत में बाटा ऐसा शू ब्रांड है, जिसका अपना लॉयल मध्यमवर्गीय ग्राहक समुदाय है.

टॉमस बाटा ने अपना मुख्यालय ऐसी इमारत में बनाया जो यूरोप में सबसे ऊंची कंक्रीट इमारत मानी जाती है. 12 जुलाई को 58 वर्षीय टॉमस बाटा एक हवाई हादसे में चल बसे. दुर्भाग्य से उनके विमान के साथ यह हादसा उन्हीं की एक इमारत की चिमनी से टकराने के बाद हुआ. अब बाटा शू एक कंपनी मात्र न रहकर ग्रुप के रूप में स्थापित हो गया. जल्दी ही बाटा दुनिया के सबसे बड़े शू एक्सपोर्टर बन गए. बाटा के देश में 1375 रिटेल स्टोर हैं जिसमें 8500 कर्मचारी काम करते हैं. इस साल कंपनी ने 5 करोड़ जूते बेचे है. 90 देशों में कंपनी का कामकाज है. इसके कुल 30000 कर्मचारी और 5000 स्टोर हैं. रोजाना 10 लाख ग्राहक कंपनी के स्टोर में आते हैं.

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