राजस्थान में फुल डे सफारी बंद करने के बावजूद वन विभाग के अधिकारियों द्वारा फिल्मिंग के नाम पर गली निकाल फिर से फुल डे सफारी कराई जा रही है। जिसको लेकर अब वन्यजीव मंडल के सदस्य सुनील मेहता ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेटर लिख अधिकारियों की शिकायत की है।
उन्होंने लेटर में लिखा कि राज्य वन्यजीव मण्डल की बैठक में आप द्वारा फुल- डे सफारी को प्रतिबंधित करने के स्पष्ट निर्देश जारी किए थे। जिसका सर्वसम्मति से सभी सदस्यों द्वारा अनुमोदन हुआ था। इस निर्णय के पीछे यह उद्देश्य था की फुल डे सफारी वन्य जीवों के हित में नहीं है। दिनभर वाहनों के आवागमन से वन्यजीवों को भारी परेशानी होती है। इस कारण वन्यजीव प्राणी अपना आवास छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। इसके बाद आपके आदेशों के राज्य में फुल डे सफारी पर पूर्णतः रोक लगा दी गई थी।
लेकिन पिछले कुछ वक्त से वन विभाग के कुछ अधिकारियों ने एक व्यक्ति विशेष को फ़िल्म निर्माण के आड़ में फुल डे सफारी करने की अनुमति प्रदान कर दी है। जो की आपके स्पष्ट आदेशों और वन्यजीव मण्डल द्वारा पारित निर्णयों का सीधा उल्लंघन और गैर क़ानूनी तरीके से "बैक डोर एंट्री के श्रेणी में आता है। इस सन्दर्भ में माननीय का ध्यान पत्र क्रमांक: एफ़ 15 (NOC) 2022/ वसु / प्रमुवस/ 498 दिनांक 14.2.23 की ओर आकर्षित करना चाहूंगा जो की माननीय के आदेशों और राज्य वन्यजीव मंडल के दिशा निर्देशों के साफ़ विपरीत है।
पीसीसीएफ हाफ द्वारा जारी इन आदेशों में फ़िल्म निर्माण को सफारी की श्रेणी से प्रथक मान लिया है जो कि सरासर ग़लत है। इसके अलावा जो शुल्क 1 अप्रैल 2023 से लागू होना था। उसे उस व्यक्ति विशेष को लाभ पहुँचाने हेतु मार्च 2023 से ही लागू कर दिया। जिससे की राज्य को राजस्व हानि भी उठानी पड़ी है। सारे प्रकरण से यह साफ होता है कि समस्त प्रक्रिया किसी व्यक्ति विशेष को विधि विपरीत लाभान्वित करने के लिए असाधारण तौर पर जल्दबाज़ी में की हुई है। इस व्यक्ति विशेष को, फिल्मांकन के नाम पर, सूर्योदय से सूर्यास्त तक दो सफारी वाहनों द्वारा पार्कों में असीमित भ्रमण करने की अनुमति प्रदान की गई है। जो मुख्यमंत्री के आदेश और वन्यजीव मंडल द्वारा पारित नियमों की अवहेलना है।
वन्य जीव मंडल बोर्ड के सदस्य सुनील मेहता ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेटर लिख कि वन विभाग के अधिकारियों की शिकायत।
देश के सभी अन्य वन्यजीव अभयारण्यों एवं बाघ परियोजनाओं में भी फ़िल्मांकन का समय पर्यटन समय से सिर्फ़ दस पन्द्रह मिनट अधिक होता है। उदाहरण तौर पर देश के विश्व विख्यात वन्यजीव फ़िल्म निर्माता नल्ला मुथु को भी तड़ोबा-अन्धारी बाघ परियोजना में फिल्मांकन का समय भी इसी तर्ज पर दिया गया है। फुल डे सफारी के प्रतिबंध के पीछे माननीय की यह मंशा थी कि वन्यजीवों को पूरे दिन परेशानी ना हो। मूक वन्यजीवों को क्या पता की घूमने वाली गाड़ियां पर्यटकों की है। या फिल्म निर्माण वालों की दोनों श्रेणी के वाहनों के ही दिन भर भ्रमण से वन्यजीवों का विचलित होना तो लाज़मी है।
झालना लेपर्ड रिज़र्व एक अत्यंत छोटा पार्क है। ऊपर से बघेरे शर्मीली प्रवर्ती के होते हैं। इसलिए झालना में सूर्योदय से सूर्यास्त तक की फिल्मांकन की अनुमति पर्यावरण विरुद्ध है। सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा समय-समय पर पारित निर्देशों की सीधी अवेल्हना है। एक अहम बात यह भी है की जिस व्यक्ति विशेष को, नियमों को ताक पर रख कर, यह अनुमति जल्दबाज़ी में प्रदान की गई है। उस व्यक्ति विशेष की पृष्ठभूमि की गहन जांच होनी चाहिये थी।
यह गहन जांच का विषय है कि आपके सख्त निर्देशों और वन्यजीव मण्डल द्वारा पारित दिशा-निर्देशों के बावजूद भी ऐसी क्या विशेष परिस्थितियों हैं कि कुछ अधिकारियों ने सारे नियमों और आपके स्पष्ट आदेशों को ताक में रख कर जल्दबाज़ी में यह फ़ैसला किया है। जो की विधि विरुद्ध आपके आदेश का सीधा उल्लंघन हैं। ऐसे में इस मामले में दोषियों पर करवाई करें।
All Rights Reserved & Copyright © 2015 By HP NEWS. Powered by Ui Systems Pvt. Ltd.