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भारतीय भाषाओं की स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता के सूत्र को उजागर करने की जरूरत: रामनाथ कोविंद

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि भारत की सभी भाषाएं समाज को एकता के सूत्र में जोड़ने का कार्य करती है. उन्होंने कहा कि आज भारतीय भाषाओं की स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता के सूत्र को उजागर कर दुनिया में उसके प्रसार प्रचार की जरूरत है. कोविंद रविवार को गुरुग्राम में बनने वाले भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र के शिलान्यास संस्कृति महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे. उन्होंने संस्कृति की संवाहक भारतीय भाषाएं विषय पर बोलते हुए कहा कि भारत केवल प्राचीन सभ्यता के लिए ही नहीं अपितु अपनी संस्कृति और भाषाई संस्कृति के लिए भी जाना जाता है. भारत की विभिन्न भाषाओं का अपना गौरवशाली इतिहास है, उसके पास अपना समृद्ध इतिहास है, अपनी सांस्कृतिक एकता को अभिव्यक्त करने का सामर्थ्य भी है.

कोविंद ने कहा कि कभी-कभी भारत की भाषाओं को एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने का प्रयास किया जाता है. ऐसे में बौद्धिक समाज का यह दायित्व बनता है कि वो भाषाओं के बीच पारस्परिक संवाद को प्रोत्साहित करें और विवाद पैदा करने से बचें. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि भाषाएं सही में मानव समाज को जोड़ने का साधन बनती हैं तोड़ने का नहीं. इस केंद्र को भी इसी दिशा में प्रयास करना चाहिए. हमारे स्वाधीनता संग्राम के दौरान स्वदेशी और स्वभाषा पर भी बहुत बल दिया गया था. भारतीय भाषाओं के बीच कोई आपसी द्वेष नहीं हो सकता क्योंकि उनके भाव एक ही है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारतीय भारतीय भाषाओं के बीच दूरी को मिटाने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे. वे भारतीय भाषाओं के बीच एकता को बढ़ाने के प्रबल पक्षधर थे. वे हमेशा कहते थे कि सभी देशवासियों को अपनी मातृ भाषा के साथ-साथ देश की एक और भाषा सीखनी चाहिए.

राजभाषा हिंदी के साथ-साथ अपनी प्रबुद्ध भारतीय भाषाओं को हमने संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया है. बहुत सी अन्य भाषाओं को राज्य सरकारों ने ऑफिशियल लैंग्वेज का दर्जा भी दिया है. इनके अलावा भी भारत में ऐसी अनेक भाषाएं हैं जो सरकार और समाज के सहयोग की अपेक्षा रखती हैं. जनजातीय भाषाओं की संविधान की 8वीं अनुसूचि में अनुपस्थिति हमें हमेशा खलती थी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान बोड़ो और संथाली भाषा को 8वीं अनुसूचि में शामिल किया गया.

भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन का विषय भारतीय समाज के लिए कितना सामरिक दृष्टि से ज्वलंत है. इसे समझने के लिए गांधी जी के शब्दों पर हमें पुनः ध्यान देने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा था कि हमने अपनी मातृ भाषाओं के मुकाबले अंग्रेजी से ज्यादा मोहब्बत रखने का नतीजा यह हुआ कि पढ़े लिखे और राजनीतिक दृष्टि से जागृत ऊंचे तबके के लोगों के साथ आप लोगों का रिश्ता बिल्कुल टूट गया और दोनों के बीच एक गहरी खाई बन गई. यही वजह है कि हिन्दुस्तान की भाषाएं गरीब बन गई और उन्हें पूरा पोषण नहीं मिला. सही मायने में गांधी जी ने धरातल की वास्तविकता को उजागर किया था. हम जिन भारतीय भाषाओं के विषय में आज विचार कर रहे हैं, वे सभी भारत की सनातन संस्कृति की सहायिका हैं.
मध्यकाल के सूफी आंदोलन और संत परम्परा ने क्षेत्रीय जनभाषाओं के माध्यम से भारतीय आध्यात्मिक विचारों को प्रकट किया, जिन्होंने देश की तत्कालीन विषम सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों में जनमानस को संजीवनी प्रदान की.

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि भारतीय भाषा का संरक्षण और संवर्धन का कार्य एक श्रेष्ठ भारत के निर्माण में आधारशिला रखने जैसा है. पिछले कुछ दशकों में इन भारतीय भाषाओं के बीच में भेद और अंतर्विरोध पैदा करने की कोशिश हुई है. मगर उन्हें ऐतिहासिक लक्ष्य दिखाई नहीं देता कि पिछले हजारों सालों में इन्हीं सब भाषाओं ने पारस्परिक सहयोग करते हुए भारतीय मौलिक एकता को समटते हुए अपने वर्तमान स्वरूप को हासिल किया है. भारतीय भाषाओं में जो स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता के सूत्र हैं उनको आज उजागर करके प्रसारित करने की जरूरत है.

कोविंद ने कहा कि भारत की गणना दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में की जाती है. हरियाणा ने सरस्वती नदी के उद्गम स्थल, कपाल तीर्थ, नदी के प्रकटन स्थल और उसके प्रच्छन प्रवाह की खोज के लिए सराहनीय कार्य किया है. इसी कड़ी में एक और महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है राखी गढ़ी में. मैं समझता हूं सिंधु सभ्यता से जुड़े प्राचीन स्थल राखी गढ़ी की पुरातात्विक संपदा का मूल्यांकन जब दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा तब हरियाणा का पुरातात्विक महत्व और भी बढ़ जायेगा.

आज का भारत अपने सांस्कृतिक मूल्यों की आधारशिला पर अपनी आर्थिक और भौतिक समृद्धि के संवर्धन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ता हुआ भारत है, लेकिन इसके साथ ही आज का भारत साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नई-नई बुलंदियों को छूने वाला भारत भी है. आज का भारत चांद-तारों को छूने की कल्पना से आगे बढ़कर चांद और मंगल तक पहुंच बनाने वाला भारत बन रहा है. आज का भारत संचार क्रांति और इंफोरमेंशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाला भारत है. हम जानते हैं कि संचार क्रांति और इंफोरमेंशन टेक्नोलॉजी में हमारी महान गाथा का एक महत्वपूर्ण अध्याय इसी गुरुग्राम में लिखा गया है.

कार्यक्रम में उपस्थित राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि इस सांस्कृतिक केंद्र की सुगंध केवल गुरुग्राम तक ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पंहुचेगी. उन्होंने कहा कि भाषाएं भले ही अलग-अलग हो लेकिन उनके बोलने से पता चल जाता है कि वे क्या कह रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत में भाषाएं तो अनेक है लेकिन उनके भाव एक है. यहा वेशभूषा, खाना, भाषा अलग होने के बाद भी भारत की संस्कृति एक हैं, जिस पर देश को गर्व है. कार्यक्रम में अतिथियो का स्वागत डॉ अमित जैन ने किया तथा डॉ कल्पना पांडे, आर एस सिराजू, प्रो अवनीश कुमार, पवन जिंदल, स्वामी रामेश्वरानंद, डॉ बीएल गोड, वी के जैन, डॉ ए के गुप्ता, डॉ योगेंद्र नारायण, डॉ डी के मोदी, डॉ कुलदीप अग्निहोत्री, पद्मश्री डॉ जितेंद्र सिंह संटी, निर्मला एस मौर्य, डॉ तुषार बनर्जी, डॉ अशोक दिवाकर, डॉ आलोक त्रिपाठी, बीएन आर्यन, डॉ बी के भद्र, राजेश पुरोहित, धुममन सिंह किरमिच, महावीर भारद्वाज, अरविंद सैनी, मुकेश मुदगल, विनोद बब्बर आदि भी मौजूद रहे.

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