उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई शुरू कर दी. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ बुधवार से इस मामले पर हर दिन सुनवाई करेगी. पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं.
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण ‘निर्विवाद है, निर्विवाद था और हमेशा निर्विवाद रहेगा.’ सिब्बल, जो पूर्ववर्ती राज्य को दिए गए विशेष दर्जे को छीनने से जुड़े 2019 के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाले अकबर लोन की ओर से पेश हो रहे हैं, ने कार्यवाही को ‘ऐतिहासिक’ बताया और पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने वाले जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की वैधता पर सवाल उठाया.
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, ‘यह कई मायनों में एक ऐतिहासिक क्षण है. यह अदालत इस बात का विश्लेषण करेगी कि 6 अगस्त, 2019 को इतिहास को क्यों बदला गया और क्या संसद द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया लोकतंत्र के अनुरूप थी. क्या जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा को चुप कराया जा सकता है? यह ऐतिहासिक है क्योंकि इसमें 5 साल लग गए हैं और यह अदालत इस मामले की सुनवाई करेगी और 5 साल से वहां कोई सरकार नहीं है. जो अनुच्छेद लोकतंत्र को बहाल करने के लिए था, उसका इस्तेमाल लोकतंत्र को अपवित्र करने के लिए किया गया है, लेकिन क्या ऐसा किया जा सकता है?’
सिब्बल ने संविधान पीठ से कहा, ‘क्या किसी राज्य के राज्यपाल ने 28 जून, 2018 को यह पता लगाने की कोशिश किए बिना विधानसभा को निलंबित रखने का फैसला किया कि सरकार बन सकती है. क्या 2018 में विधानसभा का विघटन हो सकता था? 21 जून, 2018 को अनुच्छेद 356 का उपयोग करने से पहले इन मुद्दों को कभी नहीं उठाया गया या निर्णय नहीं लिया गया और इसीलिए यह एक ऐतिहासिक सुनवाई है.’
सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘आज भारत की संसद किसी प्रस्ताव के जरिये यह नहीं कह सकती कि हम संविधान सभा हैं. कानून की दृष्टि से भी वे ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि वे अब संविधान के प्रावधानों के द्वारा संचालित हैं. सरकार को संविधान की मूल विशेषताओं का पालन करना चाहिए. वे आपातकालीन स्थिति, बाहरी आक्रमण को छोड़कर लोगों के मौलिक अधिकारों को निलंबित नहीं कर सकते. ये भी संविधान के प्रावधानों द्वारा तय है.’
उन्होंने कहा, ‘सरकार कानून के विपरीत काम नहीं कर सकती और न्यायपालिका कानून की व्याख्या करती है, लेकिन कोई भी संसद स्वयं को संविधान सभा में परिवर्तित नहीं कर सकती. और यदि अदालत इस प्रस्ताव को स्वीकार करती हैं तो इसका देश के भविष्य पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा. इसके लिए राज्य को कानून पारित करना होगा, लेकिन भारत सरकार नहीं कर सकती. यहां विरोध की बात लागू नहीं होती. इसी स्थिति को स्वीकार किया गया था और इस तरह 370 अस्तित्व में आया और यह जारी रहा.’
सिब्बल ने आगे कहा, ‘370 को अचानक हटा दिया गया. अचानक संसद में सरकार ने कहा कि हम यह कर रहे हैं. इस बात की जानकारी किसी को नहीं थी… कोई परामर्श नहीं हुआ. राज्य के राज्यपाल और संसद ने एक सुबह ऐसा करने का फैसला किया और 370 को खारिज कर दिया गया. भारत सरकार और जम्मू कश्मीर राज्य के बीच यह समझ थी कि हमारी एक संविधान सभा होगी जो भविष्य की कार्रवाई का निर्धारण करेगी, यह तय करेगी कि 370 को निरस्त किया जाना चाहिए या नहीं. वह निर्णय संविधान सभा का था.’
इसके बाद सीजेआई चंद्रचूड़ ने सिब्बल से पूछा कि राज्य की संविधान सभा का कार्यकाल कितना रहा होगा, इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘1951 से 1957 तक.’ फिर सीजेआई ने पूछा, ‘तो इसलिए, 7 साल के खत्म होने के साथ, संविधान सभा की संस्था ही समाप्त हो गई तो फिर आगे प्रावधान का क्या होगा?’ इसके जवाब में सिब्बल ने कहा, ‘1951-57 के बीच संविधान सभा ये फैसला लेगी.’ सीजेआई ने फिर पूछा कि उसके बाद क्या होगा? तो सिब्बल ने कहा कि इसके बाद तो कोई सवाल ही नहीं है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि जब संविधान सभा समाप्त हो जाती है तो क्या होता है? किसी भी संविधान सभा का जीवन अनिश्चित नहीं हो सकता. सिब्बल ने कहा, ‘बिल्कुल सही बात है. संविधान बनने के बाद संविधान सभा का कोई अस्तित्व नहीं रह सकता.’ इसके बाद सीजेआई ने पूछा, ‘क्या राष्ट्रपति को ऐसा करने से पहले, संविधान सभा की सलाह की जरूरत होती है. क्या होता है जब संविधान सभा की भावना समाप्त हो जाती है? सिब्बल ने जवाब दिया कि राष्ट्रपति ऐसी कोई अधिसूचना जारी नहीं कर सकते.
इसके बाद जस्टिस गवई ने सवाल किया, ‘आपके मुताबिक 1957 के बाद ऐसा बिल्कुल नहीं किया जा सकता?’ सिब्बल ने कहा, ‘नहीं’. फिर जस्टिस गवई ने कहा, ‘लेकिन यह अस्थायी है.’ इसके बाद सिब्बल ने कहा, ‘1951 में यह धारा 370 क्यों लगाई गई? क्योंकि 1951 में उन्होंने कहा था कि हमारी एक संविधान सभा होगी. संविधान सभा की बहस से यह स्पष्ट हो जाएगा.’
याचिकाकर्ताओं की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वह बृहस्पतिवार तक अपनी दलीलें जारी रखेंगे. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रमुख वकील को सभी पहलुओं पर दलीलें रखने की अनुमति देगी और बाकी वकील शेष पहलुओं पर दलीलें रख सकते हैं. शीर्ष न्यायालय ने पहले कहा था कि पांच अगस्त 2019 की अधिसूचना के बाद पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर की स्थिति के संबंध में केंद्र की ओर से दाखिल हलफनामे का पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा संवैधानिक मुद्दे पर की जा रही सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
केंद्र ने पांच अगस्त 2019 को पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों–जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख–के रूप में विभाजित कर दिया था. जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने वाले जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 और अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को 2019 में संविधान पीठ को भेजा गया था.
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