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मुफ्त सुविधाओं की पॉलिटिक्स से PM मोदी का बैर पुराना, गुजरात चुनाव में भी नहीं मानी थी BJP के दिग्गजों की सलाह, जानें पूरी कहानी

आम आदमी पार्टी (AAP) की बिजली, पानी, दवा के साथ कई और सेवाओं को मुफ्त देने के वादे ने दिल्ली और पंजाब में काफी कामयाबी हासिल की है. अब कांग्रेस (Congress) भी उसकी राह पर चल पड़ी है. कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में इस एजेंडे से चुनाव में सफलता हासिल की है. उसके नेता अब राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी आगामी चुनावों को देखते हुए ऐसे ही वादे करने लगे हैं. मगर पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) अभी भी इस रणनीति के खिलाफ मजबूती से खड़े हैं, जिसके पीछे उनके एक राजनीतिक अनुभव का बड़ा हाथ है.

पीएम नरेंद्र मोदी 2007 में गुजरात में अपने दूसरे चुनाव का सामना कर रहे थे. तब चर्चा थी कि गुजरात दंगों के कारण 2002 का चुनाव जीतने के बाद इस बार उनके लिए यह कठिन होने वाला था. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने उनको इसके लिए कुछ मुफ्त सुविधाओं का ऐलान करने का उपाय सुझाया था. बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने गुजरात का दौरा किया और मोदी को दो चीजों की घोषणा करने की सलाह दी- मुफ्त बिजली और कृषि कर्ज की माफी. उन्होंने कहा कि इससे निश्चित जीत का रास्ता साफ होगा. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के दबाव के बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी अपनी बात पर अड़े रहे और साफ कहा कि वह अपने राज्य को जानते हैं और वह विकास को बढ़ावा देने वाला घोषणापत्र लाएंगे.

कुछ दिनों बाद कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में राज्य के गरीब परिवारों को मुफ्त राशन और एक रंगीन टीवी जैसी कई मुफ्त सुविधाएं देने का वादा किया. इसके बाद एक चुनावी रैली में मीडिया ने जल्द ही पीएम नरेंद्र मोदी को घेर लिया और उनसे पूछा कि कांग्रेस के ऐसे वादों के बावजूद वह चुनाव कैसे जीतेंगे? तब भी पीएम नरेंद्र मोदी ने साफ कहा था कि ‘हर किसी को बिजली का बिल भरना होगा नहीं तो नोटिस भेजे जाएंगे.’ इसे कुछ लोगों ने उस समय राजनीतिक आत्महत्या तक मान लिया था. इसके बावजूद बीजेपी ने चुनावों में शानदार जीत हासिल की और 117 सीटें हासिल की. जबकि कांग्रेस केवल 59 सीटें ही हासिल कर सकी.

ऐसा लगता है कि इस घटना ने मुफ्त सुविधाओं के बारे में पीएम नरेंद्र मोदी के राजनीतिक नजरिये और देश की इकोनॉमी को मदद नहीं करने वाली ‘रेवाड़ी संस्कृति’ के उनके विचार को मजबूत किया है. जिसको उन्होंने गुरुवार को संसद में जोर-शोर से उठाया था. इसका एक उदाहरण हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों के सामने आया है. भारी मात्रा में मुफ्त सुविधाओं की घोषणा करने और उसके आधार पर सत्ता में आने के बाद राज्य चलाने में उनको कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. हिमाचल प्रदेश का संघर्ष इसलिए भी जटिल हो गया है क्योंकि यह भारी वर्षा और बाढ़ की चपेट में आ गया है. जिससे भारी विनाश हुआ है. वहीं कर्नाटक में डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा है कि राज्य में विकास के लिए इंतजार करना होगा. क्योंकि पहली प्राथमिकता मुफ्त बिजली, मुफ्त बस यात्रा और महिलाओं को मासिक भुगतान जैसी ‘गारंटी’ को पूरा करना है.

पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर अपने भाषण में कहा कि कांग्रेस की मुफ्त सुविधाओं की नीतियां इकोनॉमी की सेहत के लिए हानिकारक हैं. पीएम मोदी ने कहा कि ‘वे चुनावों में लोगों से अवास्तविक वादे करते हैं और राज्यों में विकास कार्यक्रम रोके जा रहे हैं. वे भारत के दिवालिया होने की गारंटी हैं, वे डूबती अर्थव्यवस्था की गारंटी हैं, दोहरे अंक वाली मुद्रास्फीति की गारंटी हैं, नीतिगत पंगुता, अस्थिरता के लिए… और भारत को दो दशक पीछे ले जाने की गारंटी हैं.’ यह उस मंत्र को दिखाता है जो पीएम मोदी ने 2007 में एक मुख्यमंत्री के रूप में अपनाया था- कि वास्तव में कुछ भी मुफ्त नहीं है. अगर लोग मुफ्त के चक्कर में पड़ गए तो विकास से वंचित रह जाएंगे.

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