सरकार से पुरस्कार प्राप्त करने वालों को सम्मान लेने से पहले अपनी लिखित सहमति देनी चाहिए और एक वचन पत्र पर हस्ताक्षर करना चाहिए. राजनीतिक कारणों से पुरस्कार विजेताओं के पुरस्कार प्राप्त करने के बाद उसे लौटाने की प्रक्रिया को हतोत्साहित करने का प्रस्ताव देते हुए एक संसदीय समिति ने अपनी बात रखी है. आजकल यह प्रक्रिया बहुत चलन में है जिसे लोकप्रिय रूप से ‘पुरस्कार-वापसी’ कहा जाता है.
परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर संसदीय समिति ने सोमवार को संसद में ‘राष्ट्रीय अकादमियों और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों की कार्यप्रणाली’ शीर्षक से एक रिपोर्ट पेश की. वाईएसआरसीपी के विजय साई रेड्डी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा, “समिति का सुझाव है कि जब भी कोई पुरस्कार दिया जाए, तो पाने वाले की सहमति जरूर ली जानी चाहिए, ताकि वह राजनीतिक कारणों से इसे वापस न लौटाए. क्योंकि यह देश के लिए अपमान की बात होती है.” समिति के प्रमुख सदस्यों में डॉ. सोनल मान सिंह, मनोज तिवारी, छेदी पहलवान, दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’, तीरथ सिंह रावत, रजनी पाटिल, तापिर गाओ और राजीव प्रताप रूडी शामिल थे.
इस प्रस्ताव को उचित ठहराते हुए, समिति ने कहा कि साहित्य अकादमी और अन्य संस्थान गैर-राजनीतिक संगठन हैं जिनमें “राजनीतिवाद के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए.” रिपोर्ट में कहा गया, “अकादमी द्वारा दिए गए पुरस्कारों (जैसे साहित्य अकादमी पुरस्कार) प्राप्तकर्ताओं द्वारा कुछ राजनीतिक मुद्दों के विरोध में अपने पुरस्कार लौटाने के मामले हैं, जो संबंधित अकादमी के स्वायत्त कामकाज और सांस्कृतिक अधिकार के दायरे से बाहर हैं… पुरस्कारों की वापसी से जुड़ी ऐसी अनुचित घटनाएं अन्य पुरस्कार विजेताओं की उपलब्धियों को कमजोर करती हैं और पुरस्कारों की समग्र प्रतिष्ठा और सम्मान को भी प्रभावित करती हैं.”
समिति ने ऐसे पुरस्कार विजेताओं की पुनर्नियुक्ति पर भी सवाल खड़ा किया जो अकादमी का अपमान करने के बाद इसमें शामिल हुए. समिति ने कहा, “एक ऐसी प्रणाली बनाई जा सकती है जहां पुरस्कार के लिए स्वीकृति देते वक्त प्रस्तावित पुरस्कार विजेता से एक वचन लिया जाए और पुरस्कार विजेता भविष्य में किसी भी समय पुरस्कार का अपमान नहीं कर सकें. ऐसे वचन के बगैर पुरस्कार नहीं दिए जा सकेंगे. पुरस्कार लौटाए जाने की स्थिति में पुरस्कार विजेता भविष्य में पुरस्कार पाने का अधिकारी नहीं होगा.”
पुरस्कार वापसी का सबसे अहम मामला, उदय प्रकाश, नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी के नेतृत्व में 33 पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का है, जिन्होंने 2015 में कलबुर्गी हत्या मामले के बाद अपने पुरस्कार वापस कर दिए थे. इसके बाद से यह चलन में आ गया है. इसका सबसे हालिया उदाहरण यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष बृज भूषण सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रमुख पहलवानों द्वारा अपने पदक गंगा में फेंकने की धमकी देना था. वर्तमान में, पद्म पुरस्कारों के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है. पुरस्कारों की घोषणा प्रस्तावित पुरस्कार विजेताओं से सहमति लेने के बाद की जाती है. हालांकि, सूची में शामिल कई लोगों ने सूची सार्वजनिक होने के बाद सम्मान स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.
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