मणिपुर की स्थिति को लेकर संसद के मानसून सत्र में गतिरोध जारी है. मणिपुर हिंसा पर संसद में लगातार हंगामे के बाद 26 विपक्षी दलों के नए गठबंधन “इंडिया” को मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की मंजूरी लोकसभा अध्यक्ष ने दे दी है. जानते हैं कि क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव, ये कैसे लाया जाता है और फिर पेश करने के बाद क्या होता है.
आजाद भारत में सरकारों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव अक्सर लाए जाते रहे हैं. इससे सरकार और विपक्ष दोनों अपनी मजबूती की परख करते हैं. हालांकि ये प्रस्ताव एक प्रक्रिया के तहत ही लाया जा सकता है. बगैर इसके अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता. क्या है ये प्रक्रिया. कैसे संसद में ये प्रस्ताव पेश होता है.
सबसे पहले विपक्षी दल या विपक्षी गठबंधन को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं.
जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है. तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है.
अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो.
अगर लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा जरूरी है. इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है.
ये संवैधानिक व्यवस्था है. नियम 198 के तहत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा से ही लाया जा सकता है. राज्यसभा से नहीं.
ये दूसरी बार होगा जबकि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है. पहली बार ये वर्ष 2018 में लाया गया था. तब नरेंद्र मोदी सरकार इस प्रस्ताव के खिलाफ जीत में सफल रही थी. प्रस्ताव के पक्ष में तब 126 वोट लोकसभा में पड़े थे जबकि विपक्ष में 325 वोट.
अभी लोकसभा में बीजेपी के 301 सांसद हैं लेकिन अगर एनडीए गठबंधन की बात करें तो इस गठबंधन के पास लोकसभा में कुल 332 सांसद हैं. इस गठबंधन में लोकसभा में बीजेपी को लेकर 12 पार्टियां हैं और 03 निर्दलीय सदस्य
वहीं कांग्रेस के 49 सांसद हैं तो विपक्ष के नए बने गठबंधन इंडिया के कुल मिलाकर लोकसभा में 141 सांसद हैं. इस गठबंधन में लोकसभा में 15 दलों के सांसद हैं. वैसे लोकसभा में विपक्षी सांसदों की संख्या 205 है लेकिन कई विपक्षी दल इस अविश्वास प्रस्ताव में शामिल नहीं हैं.
नहीं, मोदी सरकार को खतरा नहीं लगता, क्योंकि उनके पास बीजेपी के 301 सांसद हैं. लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है. ऐसे में इनके दम पर बीजेपी अकेले ही सरकार बना सकती है.
भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के ख़िलाफ़ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट.
संसद में 27 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं. 1978 में ऐसे ही एक प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया.
– सबसे ज़्यादा या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ आए.
– लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया.
– 1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार के ख़िलाफ़ लाए अविश्वास प्रस्ताव को हरा पाए.
– सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे
स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए हैं.
पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के ख़िलाफ़.
प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने दो बार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया और दोनो बार वे असफल रहे. 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया और 1998 में वे एक वोट से हार गए.
ध्वनि वोट – सांसद ध्वनि वोट इस पर पक्ष या विपक्षी नजरिया पेश कर सकते हैं
वोटों के बंटवारे से – ऐसे में अगर वोटों के बंटवारे की व्यवस्था होती है तो इलैक्ट्रॉनिक मशीन, स्लिप्स या बैलेट बॉक्स की मदद ली जाती है.
बैलेट वोट – जब अविश्वास प्रस्ताव में बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता है तो इसका मकसद ये होता है कि सांसद गुप्त तरीके से वोट कर सकें. जैसे लोकसभा या विधानसभा चुनावों में जनता करती है.
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