दौसा आजादी के दीवानों का क्षेत्र रहा है जहां पर स्व. रामकरण जोशी जैसे स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं दौसा हमेशा खादी का केंद्र रहा है और आजादी के समय महात्मा गांधी ने खादी को ही आजादी की लड़ाई में एक बड़ा हथियार बनाया। इसके पीछे गांधी जी के द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर प्राप्त करना। साथ ही ग्रामीण जनता को स्वालंबन बनाने के उद्देश्य से खादी का प्रचार प्रसार किया और खादी को आजादी की लड़ाई में खादी एक बहुत बड़ा हथियार बनी और आजादी के समय खादी और कांग्रेस दोनों के एक हीं कार्यकर्ता थे और इन्होंने ही आजादी में अहम भूमिका निभाई। दौसा हमेशा खादी का मुख्य केंद्र रहा है आजादी के समय तिरंगे झंडे का जो कपड़ा बन गया था वह दौसा के आलूदा गांव में चौथमल बुनकर के द्वारा कपड़ा बनाया गया था। जिसे आलूदा से टाट साहब और देश पांडे के द्वारा गोविंदगढ़ ले जाया गया। जहां पर आलूदा के कपडे को तिरंगे का स्वरूप दिया गया। दौसा खादी के मंत्री अनिल शर्मा ने बताया कि जिस तरह स्व चोथमल बुनकर बताते थे किआजादी के समय पहला तिरंगा जो लालकिले पर फहराया गया था। जो तिरंगा देश के 4 जगह से मंगाया गया था जिनमें से राजस्थान के दोसा के आलूदा से भी तिरंगा का कपड़ा मंगवाया गया था। और उसे लाल किले पर फहराया गया। तिरंगे के लिए कपड़ा बनाने वाले बुनकर चौथमल का करीब एक दशक पहले ही निधन हो गया। चौथमल बुनकर को तिरंगे के कपड़े का निर्माण करने पर पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय पंडित नमक किशोर शर्मा के द्वारा सम्मानित भी किया गया था। 1967 में दौसा खादी समिति अस्तित्व में आई और तब से ही तिरंगा झंडे के कपड़े का निर्माण खादी समिति के द्वारा किया जा रहा है। दौसा खादी देश ही नहीं विदेशो तक अपनी गुणवत्ता के लिए विख्यात है। जिस के चलते कई बार दौसा खादी को देश में दर्जनों बार सम्मानित किया जा चूका है। खादी का प्रचार-प्रसार और स्थापित करने के लिए 1956 - 57 में खादी ग्रामोद्योग आयोग का गठन किया गया सबसे खादी ग्रामोद्योग आयोग के द्वारा आज सभी खादी समिति संचालित है।
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