हलैना से करीब 7 किमी दूर एवं उपखण्ड नदबई क्षेत्र के गांव न्यौंठा स्थित लोकदेवता बाबू बाबा महाराज के मेला की तैयारियां को लेकर गांव, क्षेत्र के वरिष्ठ लोग,सर्व समाज की महापंचायत हुई। जिसमें मेला की तिथि और कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई,साथ ही मेला कमेटी का गठन किया गया। सर्व समिति से पुरुषोत्तम लाल को कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, इसके अलावा 21 सदस्यों को कमेटी में शामिल किया गया।बाबू बाबा का मेला 16 सितंबर से शुरू होगा,जो 17 सितंबर तक अयोजित किया जाएगा। 16 को श्री बाबू बाबा की कलश यात्रा निकाली जाएगी और इसी दिन साय को मेला कमेटी व शांतिकुंज हरिद्वार गायत्री परिवार के द्वारा दीप यज्ञ, 17 सितंबर को श्री बाबू बाबा का मेला भरेगा, इस दिन प्रात 7 बजे बाबू महाराज की पूजा अर्चना फूल बंगला झांकी व छप्पन भोग दर्शन, सुबह 10 बजे से देर साय तक अन्नकूट प्रसादी व रज वितरण,प्रात 9 से साय 6 बजे तक रागनी और दोपहर 2 बजे से खेलकूद आदि कार्यक्रम होंगे। इस दिन रात्रि को महा आरती, प्रसादी वितरण और मेला समापन होगा। यह जानकारी श्री बाबू बाबा की सेवक लक्ष्मण प्रसाद सैनी,लखन पाठक ने दी।
गांव न्यौठा का बाबू बाबा मन्दिर आस्था का केन्द्र है,जो प्राचीन है और गुर्जर समुदाय का आराध्य देव है। ये करीब 500 से अधिक साल पुराना है। गुर्जर समुदाय के अलावा सर्व समाज के लोग भी इस मन्दिर के प्रति आस्था रखते है।सर्व धर्म एव जातियों के लोगों को एक साथ देख देशभक्ति,भाई चारा व धर्मनिरपेक्षता की झलक दिखती है।जहां श्री बाबू बाबा के अलावा एक दर्जन देवी.देवताओं की प्रतिमा तथा आधा दर्जन अन्य धार्मिक स्थल बने हुए है।
बाबू बाबा का वर्ष में एक बार लक्खी मेला तथा हर माह लद्यु मेला लगता है,मन्दिर के दर्शन एवं मेला में देश.विदेश के लोग आते है।सर्वाधिक सख्यां कुष्ठ,चर्म रोगी एवं सन्तानहीन महिलाएं की होती है,जो दर्शन कर बाबा की धुना की रज लगा, चीनी की प्रसादी चढाते है और अन्नकूट प्रसादी ग्रहण कर बाबा का गुणगान करते हैं, साथ ही रज लगाते हैं। रज लगाने से चर्म रोगी को चर्म रोग वं कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है और संतान ही महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है। ऐसी आमजन में धारणा है और लोगो की ये धारणा शत प्रतिशत सही साबित भी हो रही है।
गांव न्यौंठा निवासी लक्षमन सैनी बताते है कि गांव न्यौंठा में करीब 500 साल से अधिक पुराना गावं है,जहां गुर्जर,पण्डित,वैश्य,सैनी जातियों के अलावा अन्य जाति के लोग रहते है। गांव में प्राचीन बाबू महाराज का मन्दिर है,जिसको लेकर अनेक किंदवंतियां है। गांव का एक ग्वाला दुधारू मवेशियां चराने जंगल में जाता,जिन मवेशियों से एक गाय रोजना पोखर के पास जाती और एक मिटटी के टीले पर उसके चारों थन से दूध की धार निकली,एेसा रोजाना होता, जिसको देख ग्वाला की समझ में कुछ नही आया,कई दिन ऐसा हुआएवह चुप लगा नजारा देखता। ग्वाला ने गाय का पीछा किया,टीले के पास गया,जहां उसे चांदी का सिक्का मिला,ग्वाला ने घर पर जा कर गाय की बात बताई। सभी ने ग्वाला की बात पर विश्वास नही किया और ग्वाला को डरा कर चुप कर दिया। ग्वाला जिसके सिर पर हाथ रख देते वह खुश हो जाता। उन्होने बताया एक बार गांव की महिलाए पोखर पर मिटटी लेने गई,जहां सास.बहू मिटटी खोद रही थी,टीले के पास खुदाई करते समय बहू को भूमि से आवाज सुनाई दी,बहिन मुझे निकाल ले,सास.बहू डर गई,साथ गई अन्य एक महिला ने हिम्मत कर टीले के खुदाई की,जिसमें प्रतिमा निकली,गांव में प्रतिमा को लेकर अनेक चर्चाए होने लगी,गांव के लोगों ने पोखर किनारे एक चबूतरा बना कर प्रतिमा को स्थापित कर दिया। गांव के शिक्षाविद्व पुरूषोत्तम पटेल ने बताया कि बाबू महाराज अवतार की भूमि चम्बल नदी किराने है। जहां हजारों साल पहले 80 साल की सिया ने कठोर तप किया,जो कुष्ठरोग से पीडित थी ओर सन्तान से वंचित,सिया के बाबू महाराज की कृपा से पुत्र की प्राप्ति हुई और कुष्ठरोग से छुटकारा मिला,बाबू महाराज ने सिया को वरदान दिया कि जो कुष्ठ व चर्मरोग से पीडित तथा सन्तानहीन महिला निस्वार्थ भाव से मानव सेवा एवं मूक.बधिर प्राणियों की सेवा करेगा एवं मांस व मदीरा को सेवन नही करेगा,उसे कुष्ठरोग से छुटकारा मिलेगा एवं सन्तान की प्राप्ति होगी। उक्त प्रकरण की चर्चाए दूर.दूर तक फैल गई और भारी सख्यां में लोग बाबू महाराज की पूजा.अर्चना करने लगे।
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