रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मेगा प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद भाजपा की ओर से संदेश स्पष्ट है. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव का चेहरा शिवराज सिंह चौहान नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. यह पूछे जाने पर कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, शाह ने कहा, “आप इसमें क्यों पड़ रहे हैं कि पार्टी का काम क्या है? यह हमारी पार्टी का काम है, हम तय करेंगे.”
जिस मंच से शाह ने भाजपा का ‘रिपोर्ट कार्ड’ पेश किया, उसमें किसी अन्य नेता का चेहरा नहीं था, लेकिन बड़े प्रेस कॉन्फ्रेंस हॉल में प्रधानमंत्री के चेहरे के साथ कई लोग खड़े थे. सीएम शिवराज के अलावा अमित शाह ने कुछ हफ्ते पहले तक मुख्यमंत्री के कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे राज्य इकाई के अध्यक्ष वीडी शर्मा और मध्य प्रदेश में एक और नए शक्ति केंद्र राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के साथ भी मंच साझा किया था.
आमतौर पर भाजपा अपने मौजूदा मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ विधानसभा चुनाव में उतरती है, लेकिन शिवराज सिंह के मामले में ऐसा नजर नहीं आता. भले ही शाह ने शिवराज के लिए लोकप्रिय और मेहनती जैसे विशेषणों का इस्तेमाल किया था, लेकिन पार्टी के चेहरे के रूप में शिवराज के साथ नहीं जाने का निर्णय लिया गया है. वास्तव में मोदी के नाम वाले अभियान गीत पहले ही जारी हो चुके हैं और जल्द ही उनका प्रचार भी किया जाएगा.
इस फैसले का एक मुख्य कारण मध्यप्रदेश भाजपा इकाई के भीतर गुटबाजी बताई जा रही है, जहां सीएम शिवराज सिंह चौहान, प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित अन्य के अलग-अलग खेमे हैं. मध्य प्रदेश के एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मोदी एक ऐसा चेहरा हैं जो केंद्र-राज्य इकाई को एकजुट करते हैं और हर कोई उनके लिए काम करके खुश होगा. हालांकि जुलाई की शुरुआत में, भोपाल की अपनी औचक यात्रा के दौरान शाह ने यह स्पष्ट कर दिया था कि पार्टी को एक इकाई के रूप में लड़ना होगा और अपना ‘विजय संकल्प अभियान’ शुरू करना होगा, लेकिन वह कोई जोखिम लेने के लिए उत्सुक नहीं दिख रहे हैं.
एमपी विधानसभा चुनाव के नतीजों का सीधा असर अगले साल होने वाले लोकसभा पर पड़ेगा, जिसके लिए बीजेपी ने पहले ही चुनावी बिगुल बजा दिया है. उसी नेता ने बताया कि प्रधानमंत्री आने वाले महीनों में और अधिक राजनीतिक रैलियों को संबोधित करेंगे. इसलिए उनका मध्य प्रदेश चुनाव का चेहरा होना भाजपा के लोकसभा चुनाव अभियान की तैयारी का पूरक होगा.
शाह का ‘रिपोर्ट कार्ड’ भाषण भी आंकड़ों से भरपूर था, जिसमें बताया गया था कि “प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के लोगों को कितना कुछ दिया है”. तीसरा, भाजपा को अपने 17 साल के शासन के कारण राज्य में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल ऐसी ही भावनाओं पर सवार होकर कमलनाथ (2018 में) सत्ता में आए थे, लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी की बात आती है, तो उन्हें अभी भी पूरे भारत में रिकॉर्ड अनुमोदन रेटिंग प्राप्त है. भाजपा शिवराज सिंह की सत्ता विरोधी लहर को रोकने के लिए मोदी की सत्ता समर्थक लहर का इस्तेमाल करना चाहती है.
अंत में भाजपा इस बार कई युवा नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को मौका देना चाहती है. सूत्रों ने कहा कि इस बार रिकॉर्ड संख्या में मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं मिलेगा. इसलिए अगर पीएम मोदी विधानसभा चुनाव का चेहरा बने रहते हैं तो विद्रोह की संभावना लगभग न के बराबर होगी, लेकिन दूसरी ओर चुनाव अभियान का नेतृत्व करने वाले सीएम असंतुष्टों को अपने पूर्व निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी की संभावनाओं को विफल करने की अनुमति भी दे सकते हैं.
अमित शाह के इस बयान के बारे में पूछे जाने पर कि भाजपा मध्य प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के बारे में उचित समय पर फैसला करेगी, कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने कहा कि यह एक स्पष्ट संदेश है कि भाजपा भी शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर भरोसा नहीं कर रही है क्योंकि उनकी छवि जनता के बीच खराब हो चुकी है.
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