पाली लोकसभा क्षेत्र में स्थित भोपालगढ़ विधानसभा, जो कि एससी सीट है। यहां वर्तमान में आरएलपी के विधायक पुखराज गर्ग हैं और आगामी नवंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों में यहां पर बीजेपी और कांग्रेस में मुकाबले की स्थिति पैदा होती दिखाई दे रही है।
दूसरी ओर यहां से जब तक आरएलपी अपना प्रत्याशी घोषित नहीं करती है, तब तक यह कहना जल्दबाजी होगा कि कौन कितने पानी में है। पाली लोकसभा में स्थित यह विधानसभा सीट ओसियां, खींवसर, मेढ़ता, बिलाड़ा और लूणी विधानसभा को टच करती है। भोपालगढ़ में वर्तमान विधायक पुखराज गर्ग की स्थिति न तो मजबूत मानी जा रही है और न ही कमजोर है। इन्हें ही यहां से आरएलपी फिर से अपना प्रत्याशी घोषित कर सकती है।
कभी कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण सीट रही इस विधानसभा से परसराम मदेरणा जैसे वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ते थे, जिसके चलते कांग्रेस की झोली में यह सीट जाती थी। साल 1967 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में राम सिंह विश्नोई ने भी यहां से चुनाव लड़ा था। इसके बाद साल 1972, 1977 और 1980 के विधानसभा चुनावों में यहां से परसराम मदेरणा ने लगातार जीत हासिल की थी, जिससे इस सीट पर लगातार कांग्रेस काबिज रही थी। इसके पश्चात 1985 में इस सीट पर लोकदल के उम्मीदवार नारायण राम बेरा ने जीत हासिल की, जिसके चलते कांग्रेस के हाथ से यह सीट चली गई। इसके बाद बाजी पलटी और 1990 में फिर से कांग्रेस के परसराम मदेरणा यहां से विधायक चुने गए थे। जबकि 1993 में कांग्रेस के रामनारायण डूडी, 1998 में फिर से कांग्रेस के परसराम मदेरणा, 2003 में कांग्रेस के महिपाल मदेरणा ने जीत हासिल कर यहां पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा।
साल 2008 में एक बार फिर बाजी पलट गई और कांग्रेस के कब्जे से यह सीट चली गई, यहां पर बीजेपी के कमसा मेघवाल 2008 और 2013 में दो बार लगातार विजयी हुए। इसके बाद 2018 में इस सीट पर आरएलपी के पुखराज गर्ग ने जीत हासिल कर बीजेपी से इस सीट को छीन लिया।
परसराम मदेरणा के समय कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट अब कांग्रेस के हाथ से निकल चुकी है। क्योंकि कांग्रेस ने जाट वोट बैंक को सीरियसली नहीं लिया। उसके बाद से ही दुष्परिणाम यह हुआ कि जाटों का जो झुकाव कांग्रेस में रहता था, उनका पार्टी से मोह भंग हो गया और यहां वो आरएलपी की ओर चले गए। इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 85 हजार जाट वोटर हैं, जिन्हे कांग्रेस द्वारा दरकिनार कर दिया गया और इसी का खामियाजा पार्टी को 2008 से भुगतना पड़ रहा है।
आरएलपी से विधायक पुखराज गर्ग का अभी तो टिकट तो सबसे ऊपर है ही, वहीं कांग्रेस से टिकट मांगने वालों में अरूण बलाई, गीता बड़बड़, पूसाराम मेघवाल, मनीराम मेघवाल, राजेन्द्र आर्य और पुखराज दिवराया, जबकि भाजपा से कमसा मेघवाल, रामलाल मेघवाल औरव किरण डांगी का नाम चर्चा में है।
इस विधानसभा में भी पाली लोकसभा क्षेत्र की अन्य विधानसभाओं की तरह ही बीजेपी और कांग्रेस में आंतरिक कलह हावी है, जिसका लाभ आरएलपी को गत चुनावों में मिला है और आगे भी मिल सकता है।
यहां कांग्रेस में दिव्या मदेरणा और बद्रीराम जाखड़ का गुट है। जबकि बीजेपी में आरएसस का और मुख्य संगठन का ग्रुप सक्रिय है। कांग्रेस पार्टी से यदि दिव्या मदेरणा समर्थक को प्रत्याशी बनाया जाता है, तो बद्रीराम जाखड़ गुट उसे सपोर्ट नहीं करेगा। वहीं, इसी प्रकार जाखड़ गुट के व्यक्ति को टिकट मिलने पर मदेरणा गुट उसे किसी कीमत पर जीतने नहीं देगा। यही स्थिति बीजेपी में भी है, जिसके चलते बीजेपी के मुख्य संगठन से जुड़े व्यक्ति को टिकट मिलने पर आरएसएस लॉबी नाराज हो सकती है। बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही दलों की आतंरिक कलह का फायदा आरएलपी के खाते में जाता नजर आ सकता है।
बद्रीराम जाखड़ की पौत्री और रामनारायण डूडी के पौत्र का विवाह होने से जाट मतदाताओं का रूझान बीजेपी और कांग्रेस से कम हो गया और यह सीट भी एससी होने के चलते जाट मतदाताओं ने हनुमान बेनीवाल को ही सपोर्ट कर उन्हें मजबूत करने का निर्णय लेते हुए उन्हें मत और समर्थन दिया। इससे इस विधानसभा में कई साल से चले आ रहे समीकरण 2028 में चेंज हो गए।
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