राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उससे सटे इलाकों में प्रदूषण दिन-प्रतिदिन गंभीर होता जा रहा है. खराब वायु गुणवत्ता के चलते लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. केंद्र सरकार द्वारा संचालित सफदरजंग अस्पताल यह पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि क्या खराब हो रही एयर क्वालिटी और अस्पतालों में आ रहे मरीजों के बीच कोई संबंध है? पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. नीरज गुप्ता के अनुसार, अस्पताल ने एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया है, जो नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के एक अधिकारी के साथ ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या पर डेटा एकत्रित कर रहा है.
खराब हो चुकी एयर क्वालिटी के चलते अब अस्पतालों में मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. अधिकांश मरीजों को सांस संबंधित परेशानियां हो रही हैं. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हम जानते हैं कि प्रदूषण के चलते हर साल मरीजों की संख्या बढ़ती रहती है. साथ ही उनकी समस्याओं पर भी प्रदूषण गंभीर प्रभाव डालता है. सफदरजंग अस्पताल निगरानी कर रहा है कि क्या AQI या वायु प्रदूषण के चलते मरीजों की संख्या पर कोई सीधा प्रभाव पड़ रहा है?”
उन्होंने बताया कि सफदरजंग अस्पताल में, ओपीडी में मरीजों की संख्या में 20 फीसदी की वृद्धि हुई है. डॉ. गुप्ता ने कहा कि पिछले सप्ताह से मरीजों में समस्याएं बढ़ने लगी हैं और कई लोगों को सूखी खांसी, आंखों और गले में जलन के साथ-साथ सांस लेने में कठिनाई का अनुभव हो रहा है.
उन्होंने कहा कि आपातकालीन और पल्मोनोलॉजी विभागों से डेटा एकत्र किया जाएगा और स्टडी की जाएगी. जब प्रदूषण का स्तर कम होता है और जब यह बहुत अधिक होता है तो मरीजों का संख्या कैसे प्रभावित होता है. एम्स में हाल ही में किए गए अध्ययन में कहा गया था कि इमरजेंसी वार्ड में सात दिनों के भीतर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के संपर्क में आए मरीजों की संख्या में 53 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. यह चिंताजनक है क्योंकि पीएम 2.5 के लेवल की वृद्धि के चलते रोगियों की संख्या में 19.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. डॉ. एसके काबरा ने कहा, ‘पार्टिकल के चलते सूजन, जलन, घरघराहट और खांसी की समस्या शुरू हो जाती है.’
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