चंडीगढ़: हरियाणा में बनी नई सरकार की कैबिनेट में जहां सोशल इंजीनियरिंग का खास ख्याल रखा गया है. वहीं, नए चेहरों को भी मौका दिया गया है. क्या इस सोशल इंजीनियरिंग का बीजेपी को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में होगा फायदा? जिन चार पुराने चेहरों को कैबिनेट में जगह नहीं मिली, उसकी क्या रही वजह? क्या उनको हटाने से बीजेपी को कोई नुकसान हो सकता है?
नायब सैनी मंत्रिमंडल की सोशल इंजीनियरिंग: हरियाणा सरकार ने अपने मंत्रिमंडल में सोशल इंजीनियरिंग की जो बिसात बिछाई है, उसे देखकर साफ नजर आता है कि सरकार का फोकस आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव है. मंत्रिमंडल का जातीय समीकरण देखें तो मंत्रिमंडल में सीएम को मिलाकर तीन ओबीसी मंत्री शामिल हैं. वहीं, डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा भी बीसी समाज से आते हैं. हरियाणा में ओबीसी वोट बैंक करीब 22 फीसदी है. वहीं, मंत्रिमंडल में जाट समाज को भी तरजीह देते हुए तीन मंत्री शामिल किए गए हैं.
हरियाणा में जातिगत वोट बैंक: हरियाणा में जाट वोट बैंक करीब 23 फीसदी है. वहीं, 2 अनुसूचित जाति के मंत्री बनाए गए हैं, जिनका वोट बैंक करीब 21 फीसदी के करीब है. वहीं, 2 पंजाबी समुदाय से मंत्री बनाए गए हैं. इनका वोट बैंक भी करीब 8 से 9 फीसदी के करीब है. वहीं, बनिया समाज के भी 2 मंत्री बनाए गए हैं. वहीं, स्पीकर भी इस समाज से आते हैं. इनका वोट बैंक भी करीब 5 फीसदी है. वहीं, ब्राह्मण और राजपूत एक -एक मंत्री बनाए गए हैं. इनका वोट बैंक ब्राह्मण करीब 8 फीसदी, राजपूत करीब चार फीसदी के करीब है.
जिलों के हिसाब से मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व: हरियाणा मंत्रिमंडल को अगर जिलेवार देखा जाए तो सीएम और कैबिनेट मंत्री कंवर पाल गुर्जर यमुनानगर जिले से आते हैं. वहीं, भिवानी जिले से भी 2 मंत्री जेपी दलाल और बिशंबर वाल्मीकि बने हैं. जबकि फरीदाबाद से 2, महेंद्रगढ़ से एक, सिरसा से एक, पानीपत से एक, कुरुक्षेत्र से एक, अंबाला से एक, गुरुग्राम से एक, हिसार से एक और रेवाड़ी से एक मंत्री बनाए गए हैं.
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