रामनवमी पर जोधपुर शहर में आज विश्व हिंदू परिषद की ओर से शोभायात्रा निकाली जा रही है। शोभायात्रा की शुरूआत चांदपोल स्थित रामद्वारे से हुई थी। तब शाहपुरा पीठ के संस्थापक रामचरण जी महाराज की तस्वीर को रखकर रथ निकाला जाता था। धीरे-धीरे इसने शोभायात्रा का रूप ले लिया। तब से हर साल चैत्र नवरात्र पर शोभायात्रा निकाली जाती है। शोभायात्रा में 350 से ज्यादा झांकियों को शामिल किया जाता है, जिसका उद्देश्य राम नाम का प्रचार करना है।
रामनवमी के अवसर पर जाने जोधपुर में रामद्वारे की स्थापना कब और कैसे हुई...
देश में राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र, एमपी और दिल्ली में भी रामद्वारे स्थापित है। जोधपुर में चांदपोल में रामद्वारा स्थित है। ये करीब एक बीघा में बना हुआ है और 5 कमरे है। एक तरीके से ये आश्रम है, जिसमें संत रहते हैं। यहां करीब 261 साल से हर दिन लगातार 24 घंटे राम नाम का जप किया जाता है। यहां अन्य किसी देवी-देवता की पूजा नहीं की जाती है। पूजा आरती में गुरुओं का वंदन किया जाता है। वर्तमान में यहां से 7000 से अधिक शिष्य व 2 लाख से अधिक भक्त जुड़े हुए हैं। जोधपुर में ये सबसे पहला और पुराना रामद्वारा होने की वजह से इसे जूना रामद्वारा भी कहा जाता है।
देश में करीब 1400 रामद्वारे
जूना रामद्वारे के वर्तमान में डॉ. अमृत राम महाराज महंत हैं, जो पीएचडी भी कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि रामद्वारा की मुख्य पीठ शाहपुरा भीलवाड़ा में स्थित है। राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में करीब 1400 रामद्वारे हैं। पीठ की स्थापना रामचरण जी महाराज ने की थी। उनके 225 शिष्य रहे, जिनमें से 12 प्रमुख हुए हैं। इन 12 शिष्यों को '12 स्तंभ' कहा जाता है।
12 स्तंभ में से एक जोधपुर के जूना रामद्वारे की स्थापना करने वाले संत देवादास जी महाराज थे। उन्होंने ही सबसे पहले जोधपुर में राम नाम की अलख जगाने के लिए रामद्वारे की स्थापना की थी। वर्तमान में यहां पर कई अन्य संप्रदाय के भी रामद्वारे हैं। इसके अलावा जोधपुर जिले में खेड़ापा, नागौर जिले में रेन, बीकानेर जिले में रामस्नेही संप्रदाय की सिंथल पीठ भी है।
बचपन में घर छोड़कर संतों से जुड़े थे देवादास जी महाराज
महंत ने बताया कि जोधपुर में राम नाम की अलख जगाने के लिए आज से करीब 261 साल पहले (विक्रम संवत 1820) शाहपुरा पीठ के रामचंद्र जी महाराज के शिष्य देवादास जी महाराज जोधपुर आए थे। देवादासजी ने अपने बाल्यकाल में ही सांसारिक मोह को त्याग दिया था और संतों से जुड़ गए थे। राम नाम के प्रचार के लिए वह भीलवाड़ा, चित्तौड़, शाहपुरा, प्रतापगढ़, मंदसौर, रतलाम आदि जिलों में घूमते हुए जोधपुर पहुंचे थे।
श्मशान भूमि पर राम-नाम का जाप शुरू किया
उस समय जोधपुर शहर के चांदपोल क्षेत्र के आस-पास जंगल था। वे वन में विचरण करते हुए एक जगह पर पहुंचे थे, जहां पर चारों तरफ शमशान परिसर था। देवादास जी को ये स्थान उपयुक्त लगा था। उस समय यहां पर एक नीम का पेड़ भी था। देवादास जी ने पेड़ के नीचे बैठकर राम-नाम का जाप करना शुरू किया था।
भक्तों की मदद से बना रामद्वारा
तेज धूप और लू के थपेड़ों के बीच वीरान जगह पर संतों को तपस्या करते देख जोधपुर के लोग भी उनसे जुड़ने लगे थे। धीरे-धीरे शहर के प्रमुख लोग भी आने लगे। भक्तों की मदद से यहां पर एक छोटा सा कमरा बनाया गया था, जिसमें संतों के बैठने के लिए व्यवस्था की गई। धीरे-धीरे एक कमरे के साथ ही इसका विस्तार किया गया। इसका नाम रामद्वारा रखा गया।
रामद्वारे में बच्चों का होता मुंडन
महंत ने बताया कि भक्त अपने परिवार में जन्मे बच्चे का मुंडन रामद्वारे में ही करवाते है। एक बार की बात है। एक भक्त अपने बुजुर्ग मुखिया रामदास की इच्छा के विरुद्ध अन्य स्थान पर मुंडन करवाने के लिए बच्चों को लेकर गए थे। जब मुखिया को पता चला तो, उस स्थान पर जाकर बच्चे को वापस ले आए। इस पर भेरू उनसे नाराज हो गया और उनसे कुश्ती लड़ने की शर्त रखी।
रामदास जी की भेरू के साथ कुश्ती हो गई, जिसमें भैरू की हार हो गई। इस पर भेरू ने कहा कि मेरे लिए क्या आ गया है। तब रामदास ने रामद्वारे में नाम जप करने वाले संतों की रक्षा के लिए द्वार पर भैरू को तैनात कर दिया। ऐसी मान्यता है कि तब से लेकर आज तक भेरू इस द्वार की रक्षा कर रहे हैं। इस कारण आज भी यहां पर यहां से भक्त अपने बच्चों का मुंडन और भेरू पूजा करते हैं।
हाथ से लिखी अनुभव वाणियां आज भी मौजूद
रामद्वारे में संत देवादास जी महाराज की ओर से लिखी गई अनुभव वाणियां आज भी सुरक्षित है। वर्तमान में यहां के महंत डॉ. अमृतराम शास्त्री महाराज इन वाणियों का हिंदी रूपांतरण कर पुस्तक भी पब्लिश कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि पिछले करीब 30 सालों से वह इस काम में जुटे हुए हैं। यहां ऐसी करीब 150 वाणियां है, जिनमें से अब तक 9 वाणियों का हिंदी अनुवाद कर चुके हैं।
उसमें रामस्नेही संप्रदाय के संस्थापक रामचरण महाराज की 36 हजार से अधिक शब्दों की लिखित वाणी का हिंदी अनुवाद कर चार वॉल्यूम प्रकाशित कर चुके हैं। इसके अलावा संत देवादास महाराज, परसराम महाराज, जीवनदास महाराज, गिरधर दास महाराज की हस्तलिखित वाणियों का हिंदी अनुवाद कर चुके हैं। वर्तमान में भगवानदास महाराज की वाणी के अनुवाद का काम कर रहे हैं।
परिवार की कई पीढ़ियां आ रही
दर्शन करने आई भक्त सरोज गोयल ने बताया कि वह पिछले करीब 15 साल से यहां पर आ रही है। उसके परिवार की पांच-छह पीढ़ियों से ये सिलसिला जारी हैं। परिवार के लोग यहां आकर राम-नाम का जाप करते हैं।
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