राजस्थान हाईकोर्ट ने बाल विवाह रोकने से जुड़ी जनहित याचिका पर आदेश देते हुए सरपंच और पंच की भी जिम्मेदारी तय की है। जस्टिस पंकज भंडारी और शुभा मेहता की खंडपीठ ने कहा है कि राजस्थान पंचायतीराज नियम 1996 और बाल विवाह निषेध कानून 2006 के तहत बाल विवाह रोकने की जिम्मेदारी पंच और सरपंच की भी तय की गई है।
ऐसे में अगर बाल विवाह होते हैं। इसके लिए सरपंच और पंच भी जिम्मेदार होंगे। हाईकोर्ट ने यह आदेश बचपन बचाओ आंदोलन व अन्य की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। अदालत ने कहा- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 की रिपोर्ट के मुताबिक 20 से 24 साल की महिलाओं में से 25.4 प्रतिशत की शादी 18 साल से पहले हो जाती हैं।
शहरी क्षेत्र में यह आकड़ा 15.1 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र में 28.3 फीसदी है। अदालत ने आदेश की कॉपी मुख्य सचिव और सभी जिला कलेक्टरों को भेजने के आदेश दिए हैं। ताकि बाल विवाह रोकने के लिए इसे पंच-सरपंच और अन्य अधिकारियों को भेजा जा सके।
15 से 19 साल की लड़कियों में 3.7 फीसदी गर्भवती
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में 15 से 19 साल की लड़कियों में से 3.7 फीसदी महिलाएं या तो मां है या गर्भवती है। अदालत ने कहा- प्रदेश में बाल विवाह निषेध कानून है। लेकिन फिर भी बाल विवाह नहीं रुक रहे हैं।
जनहित याचिका में कहा गया था कि अदालत को अधिकारियों से बाल विवाह रोकने की अब तक की गई कार्रवाई का ब्यौरा लेना चाहिए। वहीं, राज्य सरकार को पाबंध करना चाहिए कि कहीं भी बाल विवाह नहीं होने दे।
जवाब में राज्य सरकार की ओऱ से कहा गया कि वह बाल विवाह रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं। इसके लिए 1098 टोल फ्री नम्बर भी जारी किया हुआ हैं। जिस पर कोई भी व्यक्ति बाल शोषण और बाल विवाह से संबंधित शिकायत कर सकता है। अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद सरकार को बाल विवाह रोकने के निर्देश दिए। वहीं, 2 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई तय की हैं।
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