जयपुर। राजधानी जयपुर सहित पूरे प्रदेश में सक्रीय मिलावटखोर इतने ज़्यादा बेधड़क हैं कि उन्हें सरकार और प्रशासन का तो क्या, भगवान् तक का डर नहीं सता रहा है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकार के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि नियंत्रण आयुक्तालय की ओर से पिछले सप्ताह भर से जारी ताबड़तोड़ कार्रवाइयों के बाद भी कई ‘मिलावटी’ फैक्ट्रियां बेख़ौफ़ अंदाज़ में चल रही हैं।
कहीं घी में मिलावट तो कहीं तेल में। कहीं मसालों में मिलावट, तो कहीं केमिकल के इस्तेमाल से फलों को अप्राकृतिक तरीके से पकाने की कवायद। पूरे प्रदेश में संचालित ये मिलावटी फैक्ट्रियां कमाई की आड़ में आमजन के स्वास्थ्य के साथ किस तरह से खिलवाड़ कर रहीं हैं, ये इन फैक्ट्रियों के भंडाफोड़ से सामने आ रहा है।
खाद्य सुरक्षा एवं औषधि नियंत्रण आयुक्तालय की ओर से मिलावट के खिलाफ चलाए जा रहे विशेष अभियान के तहत शुक्रवार को 11 हजार 824 किलो मिलावटी घी सीज किया गया। अतिरिक्त आयुक्त पंकज ओझा ने बताया कि धौलपुर में सीएमएचओ डॉ.जयंती लाल मीणा द्वारा धौलपुर रीको औद्योगिक क्षेत्र में पालीवाल संस डेयरी प्राइवेट लिमिटेड से खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत 3 नमूने पालीवाल ब्रांड घी के लिए गए। साथ ही, संदेह के आधार पर 9 हजार 898 किलो घी भी सीज किया गया।
नमूने फिलहाल जांच के लिए प्रयोगशाला भेजे गए हैं। जांच रिपोर्ट प्राप्त होने पर आवश्यक कार्यवाही अमल में लाई जाएगी। इसी तरह से एक ताज़ा कार्रवाई गंगापुर सिटी में भी हुई। यहां करीब 324 लीटर घी मारवाड़ की शान सरस फर्म बजाज एंटरप्राइजेज पर सीज कर तीन नमूने लिए गए। वहीं भरतपुर में सीएमएचओ टीम ने मैसर्स सुमित ट्रेडिंग कंपनी में पालीवाल घी और गोधन डेयरी का 1500 किलोग्राम घी सीज किया।
सूत्रों के अनुसार मिलावटखोरों का नेटवर्क पूरे प्रदेश भर में फैला हुआ है। बड़े पैमाने पर सक्रीय ये फैक्ट्रियां हर दिन बड़ी मात्रा में मिलावटी खाद्य सामग्रियां तैयार करके बाज़ार में खपाने के लिए भेज रही हैं। नामी ब्रैंड की हू-ब-हू नकल करके घटिया, स्तरहीन और अमानक वस्तुओं को असली बताते हुए आमजन तक पहुँचाया जा रहा है।
ऐसे मिलावटखोरों के खिलाफ भले ही सरकार ने अभियान छेड़कर ताबड़तोड़ कार्रवाई शुरू की है, लेकिन ऐसी फैक्ट्रियों की बहुतायत में संख्या की आशंका के बीच, ऐसी कार्रवाईयों को ‘ऊंट के मुंह में जीरे के सामान’ माना जा रहा है।
मिलावटखोरों के खिलाफ सरकारी अभियान ताबड़तोड़ कार्रवाई करके सुर्खियां तो बटोर लेता है, लेकिन इन फैक्ट्रियों को चलाने वाले ‘मास्टरमाइंड’ गिरफ्त से दूर ही रहते हैं। कार्रवाई के दौरान अमानक और मिलावटी वस्तुओं को जप्त करके सैम्पल्स प्रयोगशाला में भेजे जाते हैं। लेकिन उसके बाद की कार्रवाई का कोई अता-पता नहीं चलता।
सैंपल जांच में फेल हुए या पास? सैंपल में कितने स्तर तक की मिलावट पाई गई? अगर वाकई बड़े पैमाने पर मिलावट पाई गई तो क्या फैक्ट्री संचालक की गिरफ्तारी हुई? क्या कानूनी कार्रवाई आगे बढ़ी? जैसे कई सवाल अनसुलझे और अनुत्तरित रह जाते हैं।
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