राजस्थान की हॉट सीटों के नतीजों ने सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। पूर्वी राजस्थान, शेखावाटी और नहरी क्षेत्र में बीजेपी ने अपना आधार खो दिया है।
भाग्य आजमाने वाले 4 केंद्रीय मंत्रियों में से एक कैलाश चौधरी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। वे तीसरे नंबर पर रहे। जीत के लिए वे मोदी लहर के भरोसे रहे, यही उनकी हार का मुख्य कारण रहा।
मोदी कैबिनेट में रहे दो दिग्गज अर्जुन राम मेघवाल और गजेंद्र सिंह शेखावत चुनाव तो जीत गए लेकिन कोई बड़ा मार्जिन हासिल नहीं कर पाए। कोटा की चर्चित सीट पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने बीजेपी से कांग्रेस में आए प्रहलाद गुंजल को हराया, लेकिन इस सीट पर कांटे का मुकाबला रहा।
राजस्थान की हॉट सीटों पर दिग्गजों की जीत-हार के क्या समीकरण रहे…
1. बाड़मेर : केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी मोदी लहर के भरोसे रहे, जनाधार खिसकता रहा, रवींद्र भाटी फैक्टर ने बीजेपी को पीछे धकेला
केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की हार से सीमावर्ती इलाके में बीजेपी को करारा झटका लगा है। इस सीट पर केंद्रीय मंत्री तीसरे स्थान पर रहे। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कैलाश चौधरी की हार का सबसे बड़ा कारण शुरुआत में उनका अति आत्मविश्वास और पांच साल में ग्राउंड कनेक्ट खो देना रहा है।
बीजेपी की स्थानीय राजनीति में भी गुटबाजी बढ़ाई, जिसकी वजह से ग्राउंड पर उनका जनाधार सिमटता गया। शुरुआत में उन्हें मोदी लहर से उम्मीद थी लेकिन राजस्थान में वो लहर असर नहीं दिखा पाई। मोदी लहर के भरोसे रहना उनकी बड़ी भूल साबित हुई और जब तक उन्हें ग्राउंड रियलिटी का अहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी के उभार ने सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी का किया। भाटी को मनाने में विफल रहना और स्थानीय नेताओं को विश्वास में नहीं ले पाना भी केंद्रीय मंत्री के लिए सियासी रूप से बड़े नुकसान का कारण बना।
स्थानीय जातिगत समीकरण नहीं साध पाई बीजेपी
सीमावर्ती इलाके में जाट, एससी, मुसलमान वोट कांग्रेस की तरफ चले गए। बीजेपी उम्मीदवार कैलाश चौधरी को बीजेपी का कोर वोट नहीं मिला। केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला के बयान के बाद राजपूत समाज में उपजी नाराजगी की वजह से राजपूत वोट नहीं मिला। रविंद्र भाटी ने भी राजपूत, मूल ओबीसी के बीजेपी के कोर वोटर्स को तोड़ा। इन सब कारणों से बीजेपी तीसरे स्थान पर खिसक गई।
2. गजेंद्र सिंह शेखावत : ग्राउंड कनेक्ट और स्थानीय समीकरण रहे जीत के हैट्रिक का फैक्टर
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत जोधपुर की हॉट सीट से जीत की हैट्रिक बनाने में कामयाब रहे। कांग्रेस से करण सिंह उचियारड़ा ने चुनाव अच्छा लड़ा लेकिन वे इसे जीत में नहीं बदल पाए।
3. जालोर : पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव बीजेपी के लुंबाराम के सामने नहीं टिके, भितरघात भी फैक्टर
पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत लगातार दूसरा लोकसभा चुनाव हार गए। बीजेपी के पूर्व प्रधान लुंबाराम चौधरी से वैभव गहलोत को हराया है। वैभव पिछली बार जोधपुर से हारे थे। हालांकि वैभव गहलोत ने चुनावी माहौल बनाने में कसर नहीं रखी, अशोक गहलोत सहित सभी वरिष्ठ नेताओं ने यहां प्रचार किया।
वैभव गहलोत की हार का सबसे बड़ा कारण उनका ग्राउंड कनेक्ट नहीं होना माना जा रहा है। साधारण और स्थानीय लुंबाराम चौधरी के आगे पूर्व सीएम के बेटे की हाई प्रोफाइल छवि वाले वैभव गहलोत नहीं टिक पाए। बीजेपी ने इस फैक्टर को जनता के बीच प्रचारित किया और उसे इसका फायदा भी मिला।
4. चूरू : कस्वां का टिकट काटना पड़ा भारी
चूरू सीट पहले दिन से ही हॉट सीट थी। राहुल कस्वां का बीजेपी ने जिस दिन टिकट काटा, उसी दिन से यहां सियासी फिजा बदल गई थी। राहुल कस्वां ने राजेंद्र राठौड़ पर टिकट कटवाने का आरोप लगाकर चुनाव को अलग मोड़ दे दिया। विधानसभा चुनाव में जिस तरह चूरू में जातीय आधार पर चुनाव हुआ, वो ही फैक्टर लोकसभा में हावी रहा। बीजेपी शेखावाटी इलाके को साध नहीं पाई।
5. कोटा : शहरी वोटर्स पर पकड़ बिरला की जीत का आधार बनी, अंदरुनी सियासत से हुई गुंजल की हार
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला कड़े मुकाबले के बावजूद बीजेपी से कांग्रेस में गए प्रहलाद गुंजल को मात देने में कामयाब रहे। ओम बिरला की जीत के पीछे शहरी वोटर्स पर उनकी पकड़ भी बड़ा कारण रही। बीजेपी से कांग्रेस में आए प्रहलाद गुंजल को कांग्रेस के एक गुट ने स्वीकार नहीं किया, भितरघात भी गुंजल की हार का बड़ा कारण रहा। शहरी इलाके के वोटर ने बिरला का साथ नहीं छोड़ा।
6. अलवर : भूपेंद्र यादव का चुनावी डेब्यू सफल, काफी पहले से तैयारी बनी जीत का आधार
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीतने में कामयाब रहे। चुनाव लड़वाने और चुनावी रणनीति बनाने में माहिर माने जाने वाले भूपेंद्र यादव ने इसका इस्तेमाल खुद के चुनाव में किया। यादव ने कांग्रेस के नाराज नेताओं को चुनाव से पहले पार्टी में शामिल करके स्थानीय समीकरणों को पक्ष में किया। कांग्रेस विधायक ललित यादव ने चुनाव भले अच्छा लड़ा लेकिन आखिर में जातीय समीकरण सेट नहीं कर पाए।
7. बीकानेर : अर्जुन मेघवाल की जीत नहीं रोक पाए गोविंद मेघवाल
बीकानेर में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल चौथी बार जीतने में कामयाब रहे। कांग्रेस उम्मीदवार गोविंदराम मेघवाल अर्जुन की रणनीति के आगे बढ़त नहीं बना पाए। शहरी वोटर्स पर अर्जुन मेघवाल की पकड़ बरकरार रही।
8. नागौर : पार्टी बदलकर भी ज्योति हार नहीं टाल पाईं, पाला बदलकर भी जीते हनुमान
नागौर में इस बार ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल पार्टी-गठबंधन बदलकर चुनाव लड़े, लेकिन नतीजा पिछली बार वाला ही रहा, ज्योति मिर्धा पार्टी बदलकर भी हार गईं, बेनीवाल गठबंधन बदलकर जीत गए। ज्योति मिर्धा स्थानीय समीकरणों को नहीं साध पाईं। ग्राउंड कनेक्ट का अभाव और बीजेपी के कोर वोटर्स का समर्थन नहीं जुटा पाना हार का बड़ा फैक्टर रहा। राजपूत समाज की नाराजगी भी बीजेपी की हार का कारण बनी।
9. बांसवाड़ा : आदिवासी वोटों पर पकड़ खोने से बीजेपी हारी, बीएपी की रणनीति के आगे पस्त हुए मालवीय-बीजेपी
बीजेपी ने लोकसभा चुनावों से पहले महेंद्रजीत मालवीय को कांग्रेस से बीजेपी में शामिल कर टिकट दिया, इसके बावजूद बीएपी के आदिवासी फैक्टर से हार गई। महेंद्रजीत मालवीय ने लोकसभा लड़ने के लिए पार्टी और विधायक की सीट छोड़ी, लेकिन राजुकमार रोत और बीएपी के उभार के आगे वो टिक नहीं पाए। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कांग्रेस के एक बड़े खेमे का भी मालवीय को समर्थन था। गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के उम्मीदवार पर्चा उठाने से पहले गायब हो गया था, फिर भी आदिवासी वोटर्स पर असर नहीं हुआ।
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