छोटा भाई 8 साल से जंजीर से बंधा है। बड़ा भाई परिवार के 6 सदस्यों की जिम्मेदारी उठा रहा है। निहायत गरीब परिवार और दो भाइयों का अपना-अपना संघर्ष। रमेश मेघवाल (30) मानसिक रूप से कमजोर है। एक बार घर से निकला तो बड़े भाई 41 साल के चंपालाल मेघवाल 23 दिन तक उसे ढूंढते रहे। आखिरकार गुजरात में भाई मिला। उसे घर ले आए। रमेश के इलाज में चंपालाल पूरी जमा-पूंजी (4 लाख रुपए) खर्च कर चुके हैं। रमेश भी इस संघर्ष को समझता है। अब वह खुद को जंजीर से बांधकर ताला लगाकर चाबी बड़े भाई को दे देता है।
ये दास्तान है दो भाइयों की। बीमारी ने रमेश के पैर बांध रखे हैं और गरीबी ने चंपालाल के हाथ। फिर भी चंपालाल अपने भाई की पूरी देखभाल करते हैं। रमेश की कहानी तब दुनिया के सामने आई, जब चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व सीएम अशोक गहलोत की बहू हिमांशी इनके घर के आंगन में दाखिल हुईं।
लोकसभा चुनाव में जालोर-सिरोही सीट से प्रत्याशी वैभव गहलोत की पत्नी हिमांशी 22 अप्रैल को कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ जालोर जिले के बिशनगढ़ इलाके में चुनाव प्रचार कर रही थीं। चंपालाल 2 साल से कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता हैं।
16 अप्रैल को उनके पिता मांगीलाल मेघवाल का निधन हुआ था। मांगीलाल 4 महीने से टीबी की बीमारी से ग्रसित थे। वे खेतिहर मजदूर थे। ऐसे में हिमांशी सांत्वना देने बालवाड़ा गांव में चंपालाल मेघवाल के घर पहुंचीं। इस दौरान रमेश को खुद को जंजीर में बांधकर ताला लगाते देखा। वे हैरान हुईं। पूछने पर पता चला कि यह चंपालाल का छोटा भाई है। मानसिक तौर पर बीमार है। इसलिए जंजीर में बांधकर रखा जाता है।
हिमांशी ने कहा- इस तरह तो जानवर को भी नहीं रखते। ये तो इंसान है। उन्होंने रमेश से पूछा- भैया आपने खुद ही क्यों बांध दिया, गर्मी में ऐसे नहीं बांधना चाहिए। दवा कराई? उन्होंने रमेश की जंजीरें खोलने के लिए कहा। साथ ही, जोधपुर एम्स में फ्री इलाज और आर्थिक मदद का भरोसा दिया।
बिना चौखट-दरवाजों के कमरे
रमेश की तकलीफ और उसके बड़े भाई चंपालाल के संघर्ष को जानने के लिए हम पहुंचे जालोर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर बिशनगढ़ के बालवाड़ा गांव। चंपालाल मेघवाल के घर के लोहे के गेट पर कांग्रेस का झंडा लगा था।
30x60 गज के इस प्लाट में 3 कमरे बने हैं। घर में गैस चूल्हे के अलावा कोई उपकरण नहीं है। खेत, पशु या वाहन भी नहीं है। कच्चे दालान से गुजरने के बाद बिना लिपी दीवारें दिखीं। बिना चौखट-दरवाजों के कमरे और नाममात्र का सामान। घर की महिलाओं ने घूंघट नहीं उठाया। अपना दर्द परदे के पीछे से ही बयान किया। चंपालाल हिंदी नहीं बोल सकते। उन्होंने वागड़ी भाषा में ही बात की।
काम करने मुंबई गया, लौटा तो बीमार हो गया
चंपालाल ने बताया - रमेश 10वीं में फेल हो गया था। साल 2014 में वह काम की तलाश में मुंबई गया। वहां 5-6 महीने तक किराने की दुकान पर काम किया और 15 महीने तक स्टेशनरी की दुकान पर। 2016 में वह घर लौट आया। उस दौरान उसका सिर दुखने लगा है और अक्सर बीमार रहने लगा। इसी साल वह गंभीर रूप से बीमार पड़ा और पागलपन के दौरे पड़ने लगे।
जोधपुर के जालोरी गेट पर एक प्राइवेट क्लिनिक पर हर महीने रमेश को लेकर जाता था। वहां 6 माह तक दिखाया और दवा दिलाई। फिर जोधपुर के ही मथुरादास माथुर हॉस्पिटल के मानसिक रोग विशेषज्ञ G.D. कुलावत के पास 2 साल तक इलाज कराया। रमेश को 3 बार बिजली के झटके भी लगाए गए। यह देख मैं दहल गया।
उसे दवा देते तो वह नींद में रहता। दवा का असर खत्म होने के बाद फिर वही हालात। इसलिए सभी इलाज बंद कर दिए। हाल ही में पिता की मौत पर शोक सभा में इसे शांत रखने के लिए नींद की टैबलेट दी थी।
2 साल पहले घर से चला गया था
चंपालाल ने बताया- जुलाई-अगस्त 2022 की बात है। गांव में भजन संध्या थी। पूरा परिवार इस कार्यक्रम में गया था। घर में रमेश और पिता मांगीलाल थे। रमेश देर रात चुपचाप घर से निकल गया। इसके बाद उसे काफी तलाशा। वह कहीं नहीं मिला। जालोर कोतवाली में गुमशुदगी दर्ज कराई।
सोशल मीडिया पर फोटो को शेयर किए। दूर के एक रिश्तेदार ने बताया कि रमेश सूरत (गुजरात) में बाडोली गांव में है। लापता होने के 23 दिन बाद वह मिला। मैं उसे वहां से लेकर आया।
बेटे की तरह पाला है
दैनिक भास्कर संवाददाता ने पूछा- इतना खर्च करने के बाद भी रमेश ठीक नहीं हुआ। उसका भरोसा नहीं कि खुला रह जाएगा तो कहीं चला जाएगा। फिर उसे किसी संस्था को क्यों नहीं सौंप देते। इस पर चंपालाल ने कहा- बचपन से अब तक रमेश को बेटे की तरह पाला है। मुझसे जितना होगा उसकी सेवा करूंगा। उसका इलाज कराऊंगा। लेकिन किसी संस्था को नहीं दूंगा। क्या वहां उसकी ऐसी देखभाल हो सकती है जो हम कर सकते हैं। यहां वह जैसा भी है, हमारी नजरों के सामने रहता है। अब उसके इलाज की उम्मीद भी बंधी है।
रमेश को चंपालाल नहलाते हैं। साफ-सफाई करते हैं। भोजन और पानी देते हैं। भाई के कमरे के पास ही अपना बिस्तर लगा रखा है। उस पर नजर बनाए रखते हैं। उसकी जरूरतों को समझते हैं।
परिवार के 6 सदस्यों की जिम्मेदारी
चंपालाल ने बताया- परिवार में 6 सदस्य हैं। मैं मिस्त्री का काम करता हूं। कमाने वाला अकेला सदस्य हूं। घर में मां पाबू देवी (60), पत्नी मथी देवी (35), दो बच्चे और बीमार छोटा भाई रमेश है। मेरे बड़े बेटे डूगाराम ने पिछले साल ही दसवीं पास की है। वह मजदूरी की तलाश में बेंगलुरु गया है। छोटा बेटा गणपत (9) चौथी क्लास में पढ़ाई कर रहा है। मेरा एक और भाई है कालूराम। वह अपने परिवार के साथ अलग रहता है।
पूरे परिवार की जिम्मेदार कंधों पर है। मुश्किल से घर चलता है। रमेश की बीमारी के बाद आर्थिक हालत बद से बदतर होते चले गए। लेकिन हार नहीं मानी। बस यही इच्छा है कि भाई किसी तरह ठीक हो जाए।
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