‘आपके नाम से चाइना जा रहे पार्सल को दिल्ली एयरपोर्ट पर रोका गया है। इसमें 300 ग्राम हेरोइन, फर्जी पासपोर्ट व 15 सिम कार्ड हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा गंभीर मामला है। अगर आप इस केस की जांच में सहयोग नहीं करेंगे तो आपके सभी बैंक अकाउंट सीज कर दिए जाएंगे और आप को तुरंत गिरफ्तार किया जाएगा।’
जयपुर में बजाज नगर के एक व्यापारी और झुंझुनूं की एक महिला प्रोफेसर के पास आए इस तरह के फोन कॉल ने उनकी नींद उड़ा दी। सामने वाले व्यक्ति ने खुद को क्राइम ब्रांच और ईडी का अधिकारी बताते हुए कहा- आपको ऑनलाइन मॉनिटरिंग में रहना होगा। शातिर बदमाशों ने दोनों से 8 करोड़ रुपए की ठगी कर डाली।
असल में यह साइबर ठगों का नया पैटर्न है। इसे क्राइम की दुनिया में ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में भी इस नए पैटर्न का इस्तेमाल कर शातिर बदमाश वारदात को अंजाम दे रहे हैं। इस नए पैटर्न से पुलिस भी परेशान है। अब सवाल यह है कि ऐसे मामलों से बचा कैसे जाए?
क्या है डिजिटल अरेस्ट?
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कानून में ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसा न तो कोई प्रावधान है और न ही पुलिस कभी किसी को इस तरह से ऑनलाइन बंधक बनाती है। साइबर अपराधियों की भाषा में यह महत्वपूर्ण है। राजस्थान में भी इस नए पैटर्न के केस सामने आने लगे हैं। इसमें साइबर ठग किसी व्यक्ति को वर्चुअल लॉकअप में अपनी निगरानी में रखते हैं। यानी वीडियो कॉल या कॉन्फ्रेंस कॉल पर लगातार उसकी मॉनिटरिंग करते हैं।
व्यक्ति को किसी तरह का शक न हो, इसके लिए आरोपी पीड़ित की गिरफ्तारी को कानूनन सही साबित करने के लिए फर्जी डिजिटल फॉर्म भी भरवाते हैं। इसकी एक कॉपी व्यक्ति के वॉट्सऐप नबंर पर भेजी जाती है। कई बार वीडियो कॉल पर व्यक्ति को जांच एजेंसी का ऑफिस और कार्यप्रणाली दिखाई जाती है। पूरी प्रक्रिया को इस तरह फाॅलो किया जाता है कि व्यक्ति को किसी तरह का शक ही न हो।
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