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पहली बार कांग्रेस ने NOTA को बनाया चुनावी चेहरा: चर्चा इतनी कि प्रधानमंत्री मोदी को बूथ अध्यक्षों से पूछना पड़ा कि यहां क्या होगा?

हमारी पार्टी किसी भी प्रत्याशी का समर्थन नहीं करेगी। दलबदल के विरोध में अब NOTA ही हमारा विकल्प है।' - जीतू पटवारी, अध्यक्ष, मध्यप्रदेश कांग्रेस

कुछ लोग माहौल बना रहे हैं NOTA-NOTA.., लेकिन इंदौर की जनता नकारात्मक राजनीति करने वालों का बोरी-बिस्तर बांध देगी। कैलाश विजयवर्गीय, मंत्री मध्यप्रदेश

'लोकतंत्र में यह गलत परंपरा कांग्रेस ला रही है। सिक्का आपका (अक्षय बम) खोटा है और NOTA को वोट डालें? - वीडी शर्मा, अध्यक्ष, मध्यप्रदेश भाजपा

इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी के मैदान छोड़ने के बाद चुनाव किस दिशा में चला गया, ऊपर के तीनों बयान इसे समझाने के लिए काफी हैं। जिस इंदौर सीट को लेकर 10 दिन पहले कोई सवाल और चर्चा नहीं थी, अब वह सूरत के बाद पूरे देश में चर्चा में है। नामवापसी से ज्यादा बड़ा मुद्दा NOTA बनता जा रहा है और कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर समर्थन कर लोगों से वोट मांगने शुरू कर दिए हैं। रैलियां निकाली जा रही हैं।

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष समेत तमाम नेता कह चुके हैं कि भाजपा के इस कृत्य का जवाब NOTA का बटन दबाकर दीजिए..। इस नई रणनीति ने इंदौर चुनाव की स्क्रिप्ट और किरदार दोनों बदल दिए हैं। यह बात इतनी तेजी से देशभर में फैलती गई कि इंदौर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एयरपोर्ट पर मिलने आए बूथ अध्यक्षों से पूछना पड़ा 

कांग्रेस कैंडिडेट के मैदान छोड़ने से फीका पड़ा मैदान

कांग्रेस प्रत्याशी के मैदान छोड़ने के बाद आम लोगों के लिए चुनाव फीका पड़ गया है। इसी से BJP को टेंशन हो गई है कि जिस सीट को पिछले बार 5 लाख वोटों से जीता, वहां इस बार लोग वोट डालने में ही रुचि नहीं ले रहे हैं। यदि लोग नहीं निकले तो पिछली बार के नंबर भी नहीं आ पाएंगे।

इस बात पर मोहर लगा दी थी पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ताई के एक बयान ने। उन्होंने इंटरव्यू में कह दिया कि 'मुझे तो अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता कह रहे हैं कि अच्छा नहीं हुआ। अब हम NOTA को ही वोट देंगे। मैं भी इस घटनाक्रम से हैरान हो गई थी।' पार्टी ने इस बयान को गंभीरता से लिया था। रातोंरात इंदौर के BJP के बड़े नेताओं की बैठक बुलाकर कह दिया गया कि ज्यादा से ज्यादा वोट डलवाओ।

BJP हाईकमान ने सुमित्रा महाजन की हैरानी के बाद एक्शन लिया

नामवापसी और दलबदल का पूरा क्रेडिट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने खुद लिया था। 29 अप्रैल को वे खुद कलेक्टोरेट तक कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम को लेकर गए और नामवापसी के बाद भाजपा जॉइन कराई। समर्थकों ने पूरे दिन जश्न मनाया और सोशल मीडिया पर भी क्रेडिट दिया।

हालांकि, 48 घंटे में ही यह फैसला पार्टी और विजयवर्गीय खेमे के लिए सिरदर्द बन गया। देशभर में सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना शुरू हो गई। कई बड़े नेताओं ने बधाई देने की बजाय चुप्पी साध ली। सुमित्रा महाजन ने तो रणनीति पर ही हैरानी जता दी थी। इसके बाद दिल्ली और भोपाल के हाईकमान ने भी संज्ञान लिया। 5 मई की रात को एकाएक इंदौर के नेताओं की कार्यालय में बैठक बुलाई और दिल्ली-भोपाल से संगठन के नेता वीडियो कॉन्फ्रेंस से जुड़े।

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