राजस्थान में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए फर्जी एनओसी जारी करने के प्रकरण में मेडिकल हेल्थ डिपार्टमेंट ने जो जांच कमेटी बनाई उसकी रिपोर्ट पर अब सवाल उठने लगे हैं। कमेटी की जांच रिपोर्ट को देखकर ऐसा लग रहा है कि कमेटी ने जानबूझकर इसमें शामिल कुछ बड़े अधिकारियों और डॉक्टरों को बचाने का प्रयास किया है।
इसको लेकर जब मीडिया से हेल्थ मिनिस्टर गजेंद्र सिंह खींवसर और एसीएस हेल्थ शुभ्रा सिंह से सवाल किए तो उन्होंने भी इस सवाल पर चुप्पी साध ली। इस मामले की जांच पुलिस की ओर से गठित एसआईटी से ही करने की बात कही। साथ ही कहा कि अब इस मामले में हेल्थ डिपार्टमेंट का कोई रोल आगे नहीं रहेगा?
बता दें कि सरकार ने इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए 4 अप्रैल को 5 सदस्यीय कमेटी बनाई थी, जिसे 15 दिन में रिपोर्ट पेश करनी थी। इस कमेटी ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जिसे मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर और एसीएस शुभ्रा सिंह ने मीडिया के सामने रखा।
ये सवाल जिसका जवाब देने से बचे मंत्री-एसीएस
- कमेटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर एसीएस ने बताया कि पिछले 1 साल में 82 ऑर्गन ट्रांसप्लांट सरकारी हॉस्पिटल में हुए। इसमें 54 ट्रांसप्लांट सवाई मानसिंह हॉस्पिटल के सुपर स्पेशलिटी विंग में हुए। इसमें 8 ऐसे ट्रांसप्लांट थे, जिसमें रिलेटिव नहीं थे। एसएमएस में हुए 54 ट्रांसप्लांट किस डॉक्टर ने किए और उन मरीजों को एनओसी कहां से मिली? एसएमएस में ट्रांसप्लांट करने वाले डॉक्टरों पर कमेटी या सरकार ने क्या कार्यवाही की? जबकि ट्रांसप्लांट करने वाले वाले एक डॉक्टर को सरकार ने आरयूएचएस का वाइस चांसलर क्यों बना दिया?
- कमेटी ने जांच में केवल तीन व्यक्तियों (डॉ. राजीव बगरहट्टा, डॉ. अचल शर्मा और डॉ. राजेन्द्र बागड़ी) को ही दोषी माना, जिसे आधार मानते हुए इनको पद से हटाने के साथ ही 16CCA का नोटिस जारी किया, जबकि एडवाइजरी कम स्टेट लेवल ऑथोराइजेशन कमेटी में डॉ. राजीव बगरहट्टा (चेयरमैन) चेयरमैन और सदस्य के तौर एसएमएस हॉस्पिटल के अधीक्षक के अलावा डॉ. रामगोपाल यादव, डॉक्टर अनुराग धाड़क, उपनिदेशक (प्रशासन) राजमेस के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता भावना जगवानी और अपर्णा सहाय भी सदस्य के तौर पर मनोनित है। कमेटी ने इनमें से डॉ. रामगोपाल यादव, डॉक्टर अनुराग धाड़क, उपनिदेशक (प्रशासन) राजमेस को जिम्मेदार क्यों नहीं माना? इन्हें भी पद से हटाकर 16CCA का नोटिस जारी क्यों नहीं किया?
- डॉ. रश्मि गुप्ता स्टेट एप्रोप्रिएट ऑथोरिटी के तौर पर पिछले एक साल से काम कर रही है। इस पद पर काम करने वाले व्यक्ति का काम प्रदेश में ट्रांसप्लांट करने वाले हॉस्पिटलों पर मॉनिटरिंग करना और उनकी हर महीने या तीन महीने में सम्पूर्ण रिपोर्ट लेना और जांच करना है। ऐसे में डॉ. गुप्ता ने पिछले एक साल में क्या किया? जबकि उन्हें ही इस मामले की जांच कमेटी में सदस्य के तौर पर नियुक्त कर दिया।