उदयपुर. आज अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस है. आज हम आपको लेक सिटी की एक ऐसी विधवा महिला के बारे में बताएंगे, जिन्होंने जिंदगी की चुनौतियों को स्वीकार कर खुद के लिए मुकम्मल मुकाम बनाया. उदयपुर की शशिकला सनाढ्य अब तक पांच हजार से अधिक विदेशियों को भारतीय व्यंजन विधि सीखा चुकी हैं. दरअसल, 24 साल पहले शशिकला के पति की मौत हो गई थी. पति के गुजरने के बाद जिंदगी की गाड़ी को खींचने के लिए उन्होंने लोगों को खाने बनाने की ट्रेनिंग देनी शुरू की. सबसे पहले उन्होंने एक ऑस्ट्रेलियाई कपल को खाना बनाने सिखाया.
उसके बाद आहिस्ते-आहिस्ते शशिकला लोकप्रिय होने लगीं और आज ढेरों नामी विदेशी हस्तियों को खाने बनाने की ट्रेनिंग दे चुकी हैं. मौजूदा आलम यह है कि शशिकला से पाक कला सीखने के लिए छह माह पहले अपॉइंटमेंट लेना पड़ता है. वहीं, सबसे खास बात यह है कि 10वीं फेल शशिकला अंग्रेजी के साथ ही फ्रेंच, इटालियन समेत आधा दर्जन विदेशी भाषाओं में कुकिंग ट्रेनिंग देती हैं. 2001 में पति के मौत के बाद शशिकला ने छह सालों तक लांड्री का काम किया, जहां वो अंग्रेजों के कपड़े धुला करती थी. आज उनके दोनों बेटे होटल मैनेजमेंट करने के बाद उनकी क्लासेज में साथ रहते हैं.
हौसले से लिखी नई इबारत : उदयपुर के अंबामाता इलाके की रहने 62 वर्षीय शशिकला का सफर संघर्षों से पटा रहा है. पति की मौत के बाद 10वीं फेल शशिकला के पास न तो कोई काम था और न ही कोई कमाई का जरिया, लेकिन वो हार नहीं मानी. सबसे पहले लांड्री का काम शुरू किया. बड़े होटलों के पास घर होने की वजह से उन्हें धुलाई के लिए अंग्रेजों के कपड़े मिलने लगे, जिसे धोकर किसी तरह से अपना गुजर बसर करने लगी. करीब छह साल तक उन्होंने यह काम किया. इसी बीच उनके बेटे आशीष सनाढ्य का एक विदेशी दोस्त उनके घर भोजन पर आया. ऐसे में शशिकला ने उसे देसी मेवाड़ी भोजन कराया. वहीं, विदेशी युवक के कहने पर शशिकला ने अपने घर पर कुकिंग क्लास शुरू कर दी. उसके बाद एक ऑस्ट्रेलियन कपल को उन्होंने कुकिंग सिखाया और यही से उनका नया सफरनामा शुरू हुआ. शशिकला अपने घर से ही अब तक पांच हजार से अधिक विदेशियों को पाक कला सीखा चुकी हैं.
देसी फूड में विदेशियों की दिलचस्पी : शशिकला सनाढ्य ने बताया कि उनके यहां आने वाले विदेशी मेहमानों में सबसे ज्यादा दिलचस्पी दाल बाटी और पुलाव को लेकर रहती है. वे वेबसाइट की मदद से ऑनलाइन और ऑफलाइन बुकिंग करती हैं. उसके बाद रोजाना चार घंटे क्लासेस लेती हैं. इस दौरान वे अपने मेहमानों से खाना बनाने का प्रैक्टिकल कुकिंग करवाती हैं. देसी मसालों का तड़का भी लगवाती हैं.
शशिकला बताती हैं कि आज के मौजूदा दौर में कुकिंग क्लासेस को लेकर कंपटीशन बहुत बढ़ गया है. फिर भी इंडियन कुकिंग और देसी मसाले का क्रेज विदेश में भरपूर तरीके से बरकरार है. ऑनलाइन अपॉइंटमेंट से आज भी सबसे ज्यादा विदेशी लोगों में दाल, बाटी, चूरमा, चपाती, मक्का और सरसों की साग की डिमांड होती है. क्लास के दौरान वे भारतीय और राजस्थानी परंपराओं की भी जानकारी देती हैं.
शशिकला बताती हैं कि यहां आने वाले मेहमान कई बार उन्हें बड़े-बड़े फाइव स्टार होटल में भी बुलाते हैं. कई बार तो गेस्ट उनकी तुलना बड़े मास्टर शेफ से करके उनके खाने के टेस्ट को सर्वश्रेष्ठ बताते हैं. शशिकला ने कहा कि आज के समय में कोई कमजोर नहीं है. इच्छा शक्ति का मजबूत हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है. आज समाज, परिवार में उनकी खास पहचान है. वहीं, उन्होंने बताया कि जब वो पहली बार कुकिंग सीखा रही तो उनके पांव कांप रहे थे, लेकिन आहिस्ते-आहिस्ते उनका आत्म विश्वास बढ़ता गया. आज वो विदेशी भाषाओं में एक दर्जन से ज्यादा क्लास लेती हैं.
बेटे करते थे मदद : शशिकला ने बताया कि उनके लिए विदेशी लोगों को खाना बनाने की ट्रेनिंग देना थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि वो शुद्ध रूप से हिंदी भी नहीं बोल पाती थीं. ऐसे में इंग्लिश बोलना तो उनके लिए किसी पहाड़ पर चढ़ने के समान था. कई बार शब्दों को ट्रांसलेट नहीं कर पाती थीं तो उनके दोनों बेटे उनकी मदद करते थे. बेटे आशीष और शैलेश से पूछकर वो आगे बनाने की विधि सिखाती थीं. खैर, आज वो कई विदेशी भाषाएं शानदार तरीके से बोलती हैं. शशिकला ने बताया कि वे एक दिन के क्लास का 1500 रुपए चार्ज करती हैं.
बेटे बने मां का कंधा : अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस पर शशिकला ने अन्य महिलाओं को संदेश देते हुए कहा कि कोई भी कमजोरी आपके हिम्मत को तोड़ नहीं सकती है. उन्होंने कहा कि जब उनके पति का निधन हुआ तब उनके बेटों की उम्र 4 और 6 साल थी. अचानक उनके ऊपर आफत का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन वो हार नहीं मानी और उनके काम में बेटों ने भी भरपूर मदद की. आज उनके बेटे फाइव स्टार होटल के बड़े शेफ से कम नहीं हैं.
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