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मेधावी छात्रों को टैबलेट वितरण करने की सरकार की योजना, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के गले की बनी फांस - Rajasthan Free Tablet Yojana

अजमेर. राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के लिए राज्य सरकार की मेधावी छात्रों को टैबलेट वितरण करने की योजना गले की फांस बन गई है. सरकार योजना के तहत 55 हजार विद्यार्थियों को टैबलेट वितरित करने के लिए 102 करोड़ रुपए बोर्ड से मांग रही है, जबकि बोर्ड ने अपनी आर्थिक स्थिति बताते हुए इतनी बड़ी राशि सरकार को देने में असमर्थता जताई है. इधर, बोर्ड कर्मचारी सरकार की परीक्षा को लेकर चिंतित और रोष में है. कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार बोर्ड के अस्तित्व को खत्म करने में लगी है. यदि सरकार ने बोर्ड से 102 करोड़ लिए तो अभी तक अपने पैरों पर खड़ा बोर्ड घुटनों पर आ जाएगा.

राज्य सरकार और राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के बीच मेधावी विद्यार्थियों को टैबलेट वितरण योजना के लिए टैबलेट की खरीद का खर्च पेंच की तरह फंस गया है. राज्य सरकार ने 13 जून को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को पत्र लिखकर मेधावी विद्यार्थियों को टैबलेट वितरण योजना के तहत टैबलेट की खरीद का खर्च 102 करोड़ रुपए वहन करने के लिए कहा है. सरकार की ओर से मिले पत्र के बाद से ही बोर्ड में खलबली मची हुई है. दरअसल, बीकानेर निदेशालय ने बोर्ड को योजना के अंतर्गत नोडल एजेंसी बनाया है. ऐसे में मेधावी विधार्थियों को दिए जाने वाले टैबलेट की खरीद पर आने वाला खर्च बोर्ड से वसूले जाने हैं.

गहलोत सरकार में हुई थी योजना लागू : प्रदेश में विगत गहलोत सरकार में दिसंबर 2022 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट घोषणा में मेधावी विद्यार्थियों को टैबलेट वितरण करने की घोषणा की थी. घोषणा के तहत 4 वर्ष तक की बोर्ड की 10वीं और 12वीं परीक्षा में मेधावी विद्यार्थियों को टैबलेट वितरण किए जाने हैं. सरकार ने कोरोना काल के 2 वर्ष को हटा दिया. अब 2021 से 2023 की बोर्ड परीक्षा में 55 हजार मेधावी विद्यार्थियों को टैबलेट देने हैं. प्रदेश में सरकार बदलने के बाद भजनलाल सरकार ने मेधावी विद्यार्थियों को टैबलेट दिए जाने में आने वाले खर्च का भार राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड पर डाल दिया है.

घाटे में है बोर्ड कैसे अदा करें राशि : बोर्ड की वार्षिक आय 190 से 200 करोड़ रुपए है, जबकि खर्च 225 से 230 करोड़ रुपए वार्षिक खर्च है. बोर्ड 25 से 30 करोड़ घाटे में है. ऐसे में बोर्ड सरकार को 102 करोड़ रुपए देता है तो बोर्ड की आर्थिक स्थिति और कमजोर होगी. राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड स्वयं वित्तीय पोषीय संस्थान है. 10वीं और 12वीं कक्षा की परीक्षा आयोजित करने के साथ बोर्ड 8वीं बोर्ड की परीक्षा, सर्वोदय और महात्मा गांधी परीक्षा बोर्ड आयोजित करता है. इनमें 8वीं बोर्ड की परीक्षा के आयोजन का शुल्क बोर्ड को नहीं मिलता है. बोर्ड की आय परीक्षार्थियों की फीस पर निर्भर है. बोर्ड को परीक्षार्थियों की फीस से 130 करोड़ रुपए के लगभग सालाना मिलते हैं, जबकि 60 से 70 करोड़ के लगभग विद्यालयों की मान्यता शुल्क के तौर पर मिलते हैं.

26 वर्ष से बोर्ड में नहीं हुई नियुक्ति : राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में 26 वर्षों से नियुक्तियां नहीं हुई हैं. वर्तमान में 230 अधिकारी और कार्मिक बोर्ड में हैं. साथ ही 72 संविदा कर्मी भी हैं, जबकि बोर्ड में कुल 863 पद हैं. यानी 550 के लगभग बोर्ड पेपर रिक्त हैं. बोर्ड की ओर से 277 कार्मिकों की भर्ती के लिए सरकार को अभ्यर्थना भी भेजी जा चुकी है, लेकिन सरकार ने इस पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है. इसके अलावा बोर्ड पर 560 पेंशनर्स की भी जिम्मेदारी है.

बोर्ड को मिलने वाली फीस भी आधी : राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ के अध्यक्ष मोहन सिंह ने बताया कि बोर्ड की स्थिति ऐसी नहीं है कि राजस्थान सरकार को 102 करोड़ रुपए दे पाए. उन्होंने बताया कि बोर्ड प्रतिवर्ष साढ़े 18 करोड़ रुपए राज्य सरकार को विभिन्न योजनाओं के लिए वित्तीय सहयोग कर रहा है. इसके बाद भी राज्य सरकार किसी ने किसी योजना के अंतर्गत बोर्ड से पैसे मांगती है और बोर्ड देता भी है. आगामी दिनों में यदि केंद्रीय शिक्षा नीति लागू होती है तो सीनियर और सेकेंडरी परीक्षा एक हो जाएगी. इसका मतलब है कि बोर्ड को मिलने वाली फीस भी आधी रह जाएगी.

9 वर्षों में नहीं बढ़ाई फीस : आरबीएसई कर्मचारी संघ अध्यक्ष मोहन सिंह ने बताया कि बोर्ड को प्रतिवर्ष 25 करोड़ का घाटा हो रहा है. उन्होंने बताया कि 9 वर्षों में बोर्ड ने फीस में वृद्धि नहीं की. बोर्ड के पास खर्च ज्यादा है और आमदनी कम है. पूर्व में बोर्ड के पास प्रकाशन की जिम्मेदारी भी थी. ऐसे बोर्ड को आमदनी होती थी, लेकिन अब वह भी नहीं है. बोर्ड को किसी भी सूरत में सरकार को 102 करोड़ रुपए नहीं देने देंगे. बोर्ड कर्मचारियों को किसी भी हद तक आंदोलन करना पड़ेगा तो वह करेंगे. यदि बोर्ड सरकार को 102 करोड़ रुपए देगा तो बोर्ड की हालत भी राजस्थान रोडवेज की तरह हो जाएगी, जहां कर्मचारियों को देने के लिए न वेतन का पता है और न पेंशन धारी को पेंशन देने की रकम रोडवेज के पास है.

सरकार की ओर से किया जाने वाला खर्च बोर्ड पर थोपा : राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ के महामंत्री में नरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि विगत गहलोत सरकार में मेधावी विद्यार्थियों को टैबलेट वितरण करने की योजना की घोषणा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने की थी. योजना के तहत निदेशालय बीकानेर, शिक्षा विभाग है, जबकि नोडल एजेंसी बोर्ड को बनाया गया है. राठौड़ ने बताया कि योजना के तहत मेधावी विद्यार्थियों को लैपटॉप देना था, लेकिन बाद में लैपटॉप की वजह टैबलेट दिए जाने को लेकर निर्णय हुआ.

उन्होंने बताया कि पूर्व में भी टैबलेट का वितरण मेधावी छात्रों में राज्य सरकार के स्तर पर ही हुआ था, जबकि ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार की ओर से किए जाने वाला खर्च बोर्ड पर थोपा गया है. बोर्ड स्वयं वित्त पोषित संस्था है. परीक्षार्थियों की फीस से ही बोर्ड के कार्यों का संचालन होता है. जब सरकार से कोई सहयोग बोर्ड को बजट के रूप में नहीं मिलता है तो सरकार को बोर्ड से 102 करोड़ रुपए नहीं मांगने चाहिए. बोर्ड के पास इतनी आमदनी नहीं है. विद्यार्थियों से प्राप्त फीस परीक्षा आयोजन और सुरक्षा में खर्च होती है. राठौड़ ने बताया कि सरकार 102 करोड़ रुपए मांग रही है. साथ ही 40 से 50 करोड़ रुपए इंटरनेट के भी मांग रही है. यह इंटरनेट मेधावी विद्यार्थियों को टैबलेट के साथ नि:शुल्क दिया जाएगा.

आज तक बोर्ड में नहीं लिया सरकार के अनुदान : राठौड़ ने कहा कि सरकार को बोर्ड 150 करोड़ रुपए देगा और आगामी परीक्षाओं में यदि कोई विषम स्थिति बन गई पेपर लीक हो गया तो दोबारा पेपर आयोजन करने का पैसा भी बोर्ड के पास नहीं रहेगा. यह सरकार का न्याय उचित पूर्ण निर्णय नहीं है. जिस संस्था में 150 करोड़ रुपए आए हैं, उस संस्था से 150 करोड़ रुपए लेना ठीक नहीं है. बोर्ड की स्थापना से लेकर आज तक बोर्ड ने कभी भी सरकार से अनुदान नहीं लिया है. आरोप है कि स्वयं पोषित संस्था बोर्ड को खत्म करने का प्रयास सरकार को नहीं करना चाहिए. बोर्ड कर्मचारी सरकार की इस निर्णय का विरोध करते हैं.

देवनानी के दखल के बाद मामला सुलझने की उम्मीद : विधानसभा अध्यक्ष और अजमेर उत्तर से विधायक वासुदेव देवनानी ने राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के कर्मचारी के विरोध के बाद मामले में दखल देते हुए वित्तीय विभाग और बोर्ड अधिकारियों के बीच बैठक बुलाने और मामले में पुनर्विचार करने के निर्देश दिए थे. हालांकि अभी तक प्रकरण में कोई सकारात्मक निर्णय नहीं हुआ है.

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