1 जुलाई 2024 से लागू तीन नए क्रिमिनल कानूनों के कई प्रावधानों में ऐसे ग्रे एरिया हैं, जिन पर सवाल खड़े हो रहे हैं। मसलन- पुलिस हिरासत की समय-सीमा बढ़ाकर 90 दिन करने से जमानत का अधिकार प्रभावित हो सकता है, एडल्ट्री का प्रावधान पीछे के रास्ते से जारी रखा गया है और दोषी पुरुष को ही माना जाएगा, जबरन अप्राकृतिक संबंधों के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
1. पुलिस रिमांड 15 दिन से बढ़ाकर 90 दिन करना
पीछे के रास्ते से एडल्ट्री कानूनी जारीः BNS में एडल्ट्री के कानून को तो खत्म कर दिया गया, लेकिन उसके सब-सेक्शन को अलग धारा बनाकर शामिल किया गया है। मतलब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं माना गया और न ही संसदीय उपसमिति की सिफारिश को माना गया। दिक्कत ये होगी कि यदि कोई शादीशुदा महिला अपनी मर्जी से भी किसी के साथ संबंध बनाती है, तो भी पुरुष को ही आरोपी बनाया जाएगा। ये IPC में भी था, जिसे नए कानून में भी पीछे के रास्ते से जारी रखा गया है। इस कानून के जरिए अभी भी महिलाओं की डिग्निटी के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
3. पुरुषों और ट्रांसजेंडरों के साथ बलात्कार का कोई कानून नहीं
अप्राकृतिक संबंधों से पीड़ितों के पास विकल्प नहींः संसदीय उप-समिति ने सुझाव दिया था कि अगर कोई पुरुष दूसरे पुरुष के साथ बिना सहमति के अप्राकृतिक संबंध बनाता है या कोई पति अपनी पत्नी से जबरन अप्राकृतिक सेक्स करता है तो उस पर 377 लागू किया जा सके। हालांकि, BNS में इसका कोई प्रावधान नहीं किया गया। यानी अप्राकृतिक संबंध, समलैंगिकता आदि के पीड़ितों के पास कोई उपाय नहीं होगा।
4. आरोपी का नाम पुलिस स्टेशन में डिजिटल तरीके से डिस्प्ले होगा
निजता के अधिकार का अतिक्रमणः यह प्रावधान आरोपी व्यक्ति की निजता के अधिकार और दोषी साबित होने तक निर्दोषता के अनुमान के अधिकार पर गंभीर अतिक्रमण है। जब किसी आरोपी की पर्सनल डिटेल डिजिटल मोड से डिस्प्ले हाेगी, तब आम लोग आरोपी के दोषी होने या अपराध में शामिल होने जैसा मान सकते हैं। जब आरोपी की जानकारी सार्वजनिक होगी तो बड़े पैमाने पर आरोपी की जान काे खतरा हो सकता है।
5. सरकारी कर्मचारी को ऑफिशियल ड्यूटी से रोकने के लिए सुसाइड का प्रयास अपराध
भूख हड़ताल नहीं कर पाएंगे: अगर कोई व्यक्ति किसी सरकारी फैसले के खिलाफ भूख हड़ताल करता है तो उसे आत्महत्या का प्रयास माना जा सकता है। उसे इस कानून के तहत गिरफ्तार किया जा सकता है। इससे उसके विरोध करने का अधिकार भी छिन सकता है।
6. पहली बार कम्युनिटी सर्विस का जिक्र सजा के तौर पर
कम्युनिटी सर्विस परिभाषित नहींः दोनों ही कानूनों में कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि 'कम्युनिटी सर्विस' क्या होगी। संसद की स्थायी समिति ने विशेष रूप से सिफारिश की थी कि 'कम्युनिटी सर्विस' शब्द को विशेष रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में कानून को लागू करने को लेकर पैदा होने वाले भ्रमों से बचा जा सके।
पुलिस FIR दर्ज करने में कर सकती है देरी: इससे आम आदमी को भी परेशानी होगी। ऐसे मामलों में प्राथमिक जांच का बहाना देकर पुलिस कर्मचारी FIR दर्ज करने में देरी कर सकते हैं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर ये कहा था कि संज्ञेय अपराधों में सजा की परवाह किए बिना पुलिस अधिकारी को FIR दर्ज करना जरूरी है। प्रारंभिक जांच केवल शिकायतों में ही की जा सकती है। इसका मतलब ये है कि BNSS की ये धारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है।
7. FIR से पहले प्राथमिक जांच करेगी पुलिस
8. गैरहाजिरी में मुकदमा
निष्पक्षता पर सवाल होंगेः यदि ऐसा होता है तो ये कैसे कहा जा सकता है कि उसके मामले में निष्पक्ष सुनवाई हुई है।
ऊपर दिए गए 8 ग्रे एरिया से इतर भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। मसलन- कई धाराओं के नाम हिंदी में है। इससे गैर-हिंदी भाषी प्रदेशों में दिक्कत हो सकती है। कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल ने इस पर आपत्ति जताई है। तीनों सरकार ने इस बात पर ऑब्जेक्शन जताया है कि तीनों कानूनों के नाम हिंदी में क्यों हैं।
कर्नाटक सरकार ने केंद्र से कहा है कि आर्टिकल 348 के अनुसार संसद में जो विधेयक कानून के लिए पेश होगा वह अंग्रेजी में भी होना चाहिए। ‘द ऑफिशियल लैंग्वेज एक्ट 1963’ कहता है कि जिस राज्य की भाषा हिंदी नहीं है, उसका संवाद अंग्रेजी में होगा। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने सरकार से मांग की थी कि इसे अभी लागू न किया जाए।
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