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सतीश पूनिया बोले-प्रभारी बनाना देश निकाला नहीं होता माना राजस्थान में जातिगत विभाजन से नुकसान हुआ, कहा- हरियाणा में अपने दम पर लड़ेगी बीजेपी

हरियाणा के नए प्रभारी और राजस्थान बीजेपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा है कि दूसरे राज्य में प्रभारी बनना देश निकाला नहीं होता है। उन्होंने हरियाणा के साथ राजस्थान में भी सक्रिय रहने के संकेत दिए हैं।

पूनिया ने राजस्थान में बीजेपी की कम सीटें आने पर कहा कि जीतने पर सब कमियां ढक जाती हैं। हारने पर सब उभरकर आ जाती हैं। हमें कोर्स करेक्शन करना होगा। आत्मचिंतन करना होगा।

ह​रियाणा के विधानसभा चुनावों पर पूनिया ने कहा कि बीजेपी इस बार अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। हरियाणा में बीजेपी की जीत की हैट्रिक लगाने का दावा करते हुए पूनिया ने कहा कि वहां डबल इंजन की सरकार का लाभ लोगों तक पहुंचा है। लोग इसे जारी रखना चाहते हैं।

हरियाणा में बीजेपी ने बिना पर्ची(सिफारिश) और बिना खर्ची(रिश्वत) सरकारी नौकरियां दी हैं, जिसका लाभ चुनावों में होगा।

सतीश पूनिया : मुझे राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष के बाद हरियाणा लोकसभा प्रभारी के तौर पर अवसर दिया गया। यह बात सही है कि 10 में से हम वहां 5 ही सीट जीत पाए।

पहले यह प्रचारित किया गया था कि वहां कांग्रेस क्लीन स्वीप करेगी और बीजेपी को एक सीट नहीं मिलेगी, लेकिन कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत ने ग्राउंड पर हालात बदले।

आप विधानसभावार रिजल्ट देखेंगे तो बीजेपी कांग्रेस से बहुत आगे है। मुझे जो जिम्मेदारी दी गई, उसे मेहनत और निष्ठा से पूरा किया। पार्टी ने फिर मुझे अवसर दिया है। मेरे लिए पार्टी की तरफ से यह सम्मान है। नेतृत्व का आभारी हूं कि मुझ जैसे कार्यकर्ता को अवसर दिया है।

सतीश पूनिया : हरियाणा छोटा जरूर है, लेकिन राजनीतिक तौर पर पूरे देश में असर है। हम कोशिश करेंगे कि मेरी जितनी क्षमता है, उसके हिसाब से संगठन को मजबूत करें।

हरियाणा में धर्मेंद्र प्रधान और विप्लव कुमार देव वहां के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक चीजों को देखेंगे। मेरा काम वहां के संगठन को दुरुस्त करना है।

पिछले एक दशक में हरियाणा में नीचे तक भाजपा का संगठन पहुंचा है। मैं कोशिश करूंगा कि हम और ज्यादा बेहतर करें। पहला टेस्ट तो यही है कि हरियाणा में पार्टी तीसरी बार जीते।

सतीश पूनिया : यह तो एक किस्म का युद्ध है और यह हार-जीत की आशंकाओं से नहीं चलता, काम करते जाना है। आगे क्या होगा, वक्त बताएगा।

जब पार्टी ने जिम्मेदारी दी है तो मुझे उसके ज्यादा मायने लगते नहीं हैं। मुझे जो काम दिया है, मैं उसको पूरी शिद्दत से पूरा करूंगा।

किसी नेता को प्रभारी बना दिया जाता है तो यह धारणा बन जाती है कि मूल प्रदेश से दूर रहने का मैसेज दे दिया। आपकी निुयक्ति को भी उसी रूप में देखा जा रहा है?

सतीश पूनिया : ऐसी चर्चाएं चलती हैं, लेकिन यह व्यक्ति पर भी निर्भर करता है और वहां पार्टी और संगठन की जरूरत पर भी निर्भर करता है।

यह बात सही है कि मैं राजस्थान की जड़ों से जुड़ा हूं। राजस्थान मेरे लिए एक तरीके का पैशन है। राजस्थान मेरी कर्मभूमि है।

यह कहा जाता है कि उनको बाहर कर दिया…ऐसा होता नहीं है। आदमी जब जड़ों से जुड़ा होता है तो उसके मायने अलग निकल जाते हैं। मुझे लगता है कि पार्टी ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक जो भूमिका मुझे दी, मैंने उसे निभाया।

मुझे नहीं लगता कि किसी व्यक्ति को किसी दूसरे प्रदेश की जिम्मेदारी दी जाती है तो देश निकाला जैसा होता है।

राजस्थान में चुनौतियां ज्यादा हैं या हरियाणा में? दोनों जगह आपकी पार्टी की सरकारें हैं, दोनों में क्या अंतर महसूस करते हैं?

सतीश पूनिया : हरियाणा और राजस्थान के राजनीतिक मिजाज में फर्क है। राजस्थान में सरकारें हर पांच साल में बदलती रहती हैं। तात्कालिक मुद्दों के आधार पर जनमानस निर्णय करता है।

हरियाणा में पिछले एक दशक से भारतीय जनता पार्टी काबिज है। वहां गैर कांग्रेस सरकारों का वर्चस्व रहा है। कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक तौर पर माहौल रहा है। देवीलालजी का समय हो, बंसीलाल जी ने नई पार्टी बनाई। एक दशक से हमारी वहां सरकार है।

इससे साफ है कि हरियाणा के जनमानस ने कांग्रेस को हमेशा स्वीकार नहीं किया। गैर कांग्रेस दलों ने राजनीतिक तौर पर अपनी ताकत स्थापित की है।

राजस्थान और हरियाणा की जातीय राजनीति का नेचर भी अलग है। बीजेपी के संगठन में दोनों राज्यों में खास फर्क नहीं है।

हरियाणा के बारे में सियासी हलकों में कहा जा रहा है कि इस बार बीजेपी की राह मुश्किल है।

सतीश पूनिया : चुनौतियां तो राजनीति में होती हैं और उसके स्वीकार करके आगे बढ़ना होता है। किसान आंदोलन के बारे में जो चीज प्रचारित की गई थी, उसकी हकीकत अब लोगों के सामने धीरे-धीरे आ रही है।

एक तरह का फेक नरेटिव बनाया गया था, जिसमें यह प्रचारित किया गया कि भाजपा किसान विरोधी है, जवान विरोधी है। जो विरोध दिखता है वो केवल प्रचारित किया गया था। इसे नरेटिव के तौर पर पूरे देश में स्थापित करने की कोशिश हुई थी। अब वह नरेटिव बेनकाब हो चुका है।

कांग्रेस पार्टी ने आरक्षण को लेकर संविधान संशोधन के बारे में जो बातें कहीं, उसकी सच्चाई सबके सामने आ चुकी है। लोकसभा के सदन में और जनता के सामने भी कांग्रेस एक्सपोज हो चुकी है।

भाजपा के खिलाफ खूब दुष्प्रचार हुआ। जितने मुद्दे थे, उन सबको ठीक तरीके से बेनकाब कर दिया है। उन मुद्दों का अब असर नहीं होगा। हरियाणा में हम अच्छी स्थिति में हैं।

हम उम्मीदवार चयन में भी ध्यान रखेंगे। उम्मीदवारों की लोकल फेस की अपनी अहमियत होती है। कोशिश करेंगे कि अच्छा चयन हो।

लोकसभा चुनावों के बाद यह साफ हो गया कि अब मोदी लहर नाम का सियासी टर्म नहीं बचा। राजस्थान में आपकी सरकार होते हुए भी ऐसे नतीजे क्यों रहे, ओवर काॅन्फिडेंस या कोई और कारण रहे?

सतीश पूनिया : 2014 और 2019 में जैसा उफान और जो माहौल था उस तरह का माहौल अब नहीं रहा। यह दिखती सी बात है। कुछ लोकसभा क्षेत्र के स्थानीय समीकरण हैं उसके कारण भी नतीजे अलग रहे। हर सीट का एनालिसिस करेंगे तो समझ में आ जाएगा कि चूक कहां हुई।

हर सीट के अपने समीकरण हैं। अब पूर्व सीएम अशोक के बेटे के चुनाव में पूरे संसाधन झोंके गए। वो प्रभाव, पैसा हर मामले में मजबूत थे, लेकिन हार गए। इसका मतलब है हर सीट का अलग मुद्दा था।

किसी एक लोकसभा क्षेत्र में एक मुद्दे पर वोट नहीं पड़ा है, बहुत सारे फैक्टर थे। उसकी पार्टी ने समीक्षा की है, कुछ चीजें ध्यान में आई हैं। भविष्य के लिए यह एक सबक के तौर पर काम आएगा।

कुछ हद तक संगठन में नीचे मॉनिटरिंग का काम भी नहीं हुआ। तात्कालिक मुद्दे अलग-अलग लोकसभा में रहे हैं। जातिगत विभाजन भी हुआ, जिसका हमें नुकसान उठाना पड़ा। जबकि 2014 और 2019 के चुनावों में जातिगत फैक्टर गौण ​हो गए थे।

भाजपा सर्व स्पर्शी पार्टी है, सबको साथ लेकर चलते हैं। राजस्थान हो या हरियाणा या देश के दूसरे हिस्से हों, रिजल्ट का सीटवार एनालिसिस करेंगे तो लगता है हमारे पक्ष में जो पोलराइजेशन हुआ करता था और विपक्ष में जो डिवीजन होता था वह उतना प्रभावित तरीके से नहीं हुआ।

जनता ने कांग्रेस को भी पसंद नहीं किया है, और बीजेपी को नकारा नहीं है। हम ज्यादातर सीटें 50 हजार से कम मार्जिन से हारे हैं। यह हमारे लिए सबक है। आगे सुधार करेंगे।

क्या कोर्स करेक्शन की जरूरत है, पार्टी को तौर-तरीकों में सुधार लाना होगा?

सतीश पूनिया : निश्चित रूप से कोर्स कलेक्शन की जरूरत है। जब जीत होती है तो उसमें बहुत सी कमजोरियां छिप जाती हैं। हार होती है तो सब कमजोरियां उभरकर सामने आती हैं। मुझे लगता है हर तरह से विश्लेषण करके आत्मचिंतन करने की जरूरत है।

 राजस्थान में जातिगत पोलराइजेशन करवाने में आपकी पार्टी की गलतियां रहीं। आपके नेता ही अब कह रहे हैं कि चूरू का टिकट नहीं काटते तो चुनाव जातिगत मोड पर नहीं जाता।

सतीश पूनिया : इस मुद्दे पर जिस भी व्यक्ति से पूछे उसका अपना आकलन है। मेरा आकलन अलग है दूसरे से पूछेंगे उसका अलग आकलन होगा। मैं इतना कह सकता हूं कि केवल एक व्यक्ति हार और जीत का कारण नहीं होता। अगर आप प्राथमिक कारण पूछेंगे तो कांग्रेस के फेक नरेटिव बड़ा कारण था। कांग्रेस ने जिस रूप में प्रचार किया, लोगों में भ्रम फैलाया, उसमें सफल भी हुई।

 किरोड़ी लाल मीणा ने भी कहा कि 40 साल से जिस इलाके में काम कर रहा हूं, वहां के लोगों ने बात नहीं मानी। इतने बड़े-बड़े नेताओं का प्रभाव क्यों नहीं चल पाया?

सतीश पूनिया : जब जीत जाते हैं तो कई चीजें ढक जाती हैं, हारते हैं तो सामने आ जाती हैं। जीतने के हजार कारण होते हैं और हारने के भी कई कारण होते हैं। केवल एक कारण पर कोई विश्लेषण नहीं किया जा सकता है। पार्टी ने समीक्षा की है, प्रदेश नेतृत्व ने समीक्षा की है। थोड़ा वक्त चाहिए पार्टी को सोचने-समझने के लिए ताकि उन चीजों को दुरुस्त करे।

 आपको जिम्मेदारी मिल गई, लेकिन पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को जिम्मेदारी कब मिलेगी, वे भी वेटिंग में हैं?

सतीश पूनिया : आजकल जो राजनीति है वह 365 दिन 24 घंटे की है, कोई भी व्यक्ति खाली नहीं होता है। उसके लायक जो योग्य भूमिका होती है वह पार्टी जरूर देती है। पार्टी निश्चित रूप से उनका समायोजन किसी न किसी रूप से करेगी।

 

राजस्थान में आयोगों में नियुक्तियां हुई हैं। जिस बात को लेकर कांग्रेस को कोसते थे, वही पैटर्न अब आप अपना रहे हैं।

सतीश पूनिया : बीजेपी का चरित्र है कि कार्यकर्ताओं को अधिकतम संख्या में समायोजित करते हैं, लेकिन बदली हुई राजनीति में हर वर्ग के लोग हमसे जुड़े हैं। हर क्षेत्र के लोग बीजेपी में आए हैं, कहीं ना कहीं उनको भी अहमियत देनी होती है।

सरकार ने सोचा ही होगा कि हर तरीके से सभी लोगों को साथ लेकर समायोजन करेंगे। पार्टी कैडर के लोगों को भी योग्य स्थान मंत्रिमंडल में मिले। आज साधारण कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के महामंत्री रहे मुख्यमंत्री बने हैं।

बीजेपी में दूसरे दलों से लोग आए हैं, दूसरे विचारों के लोग आए हैं। अलग-अलग सामाजिक वर्गों से लोग आए हैं सबको समायोजित करना होता है, इसलिए मौका दिया है। बीजेपी कार्यकर्ता को मौका देती है, जो सक्षम होगा उन्हें मौके मिलेंगे।

मुख्यमंत्री आपके साथ महामंत्री रहे हैं। क्या वो आपसे सलाह लेते हैं? आपकी चर्चा होती है या सत्ता—संगठन की दूरियां बनने जैसी बात आ गई?

सतीश पूनिया : दूरियों का कोई कारण नहीं है। अपनी-अपनी व्यस्तताएं हैं। उनका अपना कार्य क्षेत्र है। मेरा कार्यक्षेत्र हरियाणा है। मेरा समय वहां लगता है।

लोकसभा चुनाव में भी आवश्यकता हुई और मुझे जालोर के लिए कहा तो मैं सीएम के कहने पर एक सप्ताह तक वहां रहा। कुछ मुद्दों पर आवश्यकता होती है तो बात करते हैं।

हरियाणा में चुनावी साल से ठीक पहले मुख्यमंत्री बदल दिया, यह जरूरत क्यों पड़ी?

सतीश पूनिया : अनुभव के तौर पर मनोहर लालजी खट्टर को अवसर दिया। आज वे केंद्र में मंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं। हरियाणा में उनके अनुभव का लाभ पार्टी को मिला। समय की जरूरत है, पार्टी का अपना निर्णय होता है, केंद्रीय नेतृत्व में उचित समझा इसलिए नेतृत्व बदला।

नए सीएम नायब सैनी अपेक्षाकृत ऊर्जावान हैं। पार्टी के लंबे अरसे से सामान्य पदों से काम करते रहे हैं। उनका आगमन किसी तरह से पार्टी की कमजोरी नहीं है, ताकत है।

आज कार्यकर्ताओं में सकारात्मक संदेश गया है। नई ऊर्जा और पुराना अनुभव और इन दोनों को मिलाकर जो निर्णय हुआ था उसमें हरियाणा और पार्टी को फायदा होगा ।

हरियाणा में टिकट वितरण में पैरामीटर क्या रहेंगे, क्योंकि इस पर कई तरह के विवाद हुए हैं?

सतीश पूनिया : हरियाणा में 90 सीटें हैं। पार्टी अकेले लड़ती है तो उसमें कार्यकर्ताओं को अवसर मिलता है। अलायंस होता है तो कुछ वंचित भी हो जाते हैं, लेकिन जिताऊ ही सबसे बड़ा क्रारइटेरिया होता है।

जो बाहर से आने वाले हमारे साथ जुड़े हैं, जो जिताऊ हैं उन्हें भी मौका मिलता है। दूसरे दलों से जो जुड़े हैं, वो भी एस्पिरेशन के साथ जुड़े हैं। मुझे लगता है संतुलित तरीके से निर्णय होगा। किसी तरीके की दिक्कत नहीं आएगी।

हरियाणा में गठबंधन होगा या बीजेपी अकेले ही लड़ेगी? आप कितनी सीटें जीतने का दावा करते हैं?

सतीश पूनिया : 30 जून को पंचकूला में केंद्रीय गृहमंत्री आए थे। उन्होंने कार्यकर्ताओं के सामने स्पष्ट किया है कि हम हरियाणा में अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे। मेरे ख्याल से उन्होंने जो कहा है उसी तरफ पार्टी जाएगी ।

हरियाणा में हम लोग अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे। फिगर आउट तो नहीं करूंगा, लेकिन कैमरे के सामने स्पष्ट तौर पर कह सकता हूं इस बार भी हरियाणा में अच्छे बहुमत की सरकार आएगी।

स दावे का आधार क्या है? परसेप्शन और लोकसभा के रिजल्ट तो आपके दावे की पुष्टि करते दिख नहीं रहे?

सतीश पूनिया : एक तो हरियाणा में 10 साल में सरकार ने काम किया और केंद्र सरकार के साथ जिस तरह मिलकर जो हरियाणा को केंद्रीय योजनाओं का फायदा मिला है उसका प्रभाव है। डबल इंजन की सरकार का हरियाणा को फायदा मिला है और लोगों के बीच उसका असर है।

हरियाणा के करप्शन की चर्चा पूरे देश में होती थी, आज वो राज्य करप्शन फ्री है। बहुत सी ऐसी चीज थीं जिसमें बदलाव आया है। बिना पर्ची और बिना खर्ची वहां सरकार में नौकरियां मिल रही हैं।

हरियाणा को डबल इंजन की सरकार से बेनिफिट हुआ है और जनता चाहेगी कि ये आगे भी बरकरार रहे। नेताओं का मिजाज ठीक है, सब एक मंच पर है। दूसरी तरफ कांग्रेस आपसी फूट की शिकार है।

कांग्रेस का संगठन नहीं है, केवल दो सीट वो अच्छे मार्जिन से जीती जरूर है, लेकिन जो असेंबली सेगमेंट्स का फिगर है वह बीजेपी के पक्ष में दिख रहा है।

बिना पर्ची और बिना खर्ची नौकरी वाला जुमला क्या है?

सतीश पूनिया : बीजेपी राज से पहले हरियाणा में भर्तियां होती थी उसमें करप्शन होता था, पैसा देना होता था, उसे खर्ची कहते थे। या फिर नेताओं की सिफारिश चलती थी, जिसे पर्ची कहते थे। अब बिना पर्ची और बिना खर्ची सरकार नौकरी मिल रही है।

एक सामान्य गरीब परिवार से चार-चार लोगों को बिना किसी सिफारिश, बिना करप्शन के सरकारी नौकरी मिली है। यह एक बड़ा मसला था, इसलिए कहा जाता है बिना पर्ची और बिना खर्ची के नौकरियां मिलती है।

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