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जयपुर में 280 घर तोड़े, लेकिन मुआवजा नहीं वो गलतियां जो मकान-दुकान खरीदते समय करते हैं लोग, एक्सपट्‌र्स से जानिए सारे सवालों के जवाब

जयपुर के मानसरोवर क्षेत्र से सटी 27 कॉलोनियों में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई चर्चा में है। राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर 100 फीट सेक्टर रोड निकालने के लिए बीच में आ रहे 281 मकानों-दुकानों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है।

कई परिवार सड़क पर आ गए हैं। सबसे पहला सवाल यही है क्या इस तरह की कार्रवाई में सरकार कोई मुआवजा देती है? क्या अतिक्रमण वाली जमीन पर खरीदे या बनाए गए प्लॉट का मुआवजा मिलता है? मकान-दुकान या प्लॉट खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे सपनों का आशियाना टूटे नहीं।

आज प्रॉपर्टी में सबसे ज्यादा धोखाधड़ी के मामले सामने आते हैं। इसलिए ऐसे कई सवाल लोगों के मन में हैं। ऐसे सवालों का जवाब जानने के लिए भास्कर ने सीनियर टाउन प्लानर व एक्सपर्ट से बात की।

सवाल-1 : सड़क चौड़ी करने के दायरे में आने वाले मकान व दुकान को हटाने पर क्या मुआवजा दिया जाता है? सरकार कितना मुआवजा देती है?

जवाब: मास्टर प्लान के तहत कई बार सड़क का चौड़ीकरण किया जाता है। इस दौरान वैध व फ्री होल्ड पट्टे पर बने मकान व दुकान भी इसकी जद में आ जाते हैं। इन्हें कार्रवाई कर हटाया जाता है। पूर्व मुख्य नगर नियोजक की मानें तो भूमि अधिग्रहण को लेकर कृषि व आबादी क्षेत्र में अलग-अलग डीएलसी रेट से मुआवजा दिया जाता है। रिहायशी और व्यावसायिक भवन की डीएलसी रेट अलग-अलग होने से मुआवजा राशि भी उसी के अनुसार तय होती है। इसके लिए संबंधित व्यक्ति के पास टाइटल डीड (संपत्ति के स्वामित्व का प्रमाण) होना जरूरी है।

टाइटल डीड नहीं होने की स्थिति में मुआवजा नहीं मिलेगा। मुआवजा लेने के लिए स्वामित्व का अधिकार होने के साथ ही अथॉरिटी से निर्माण का नक्शा पास होना जरूरी है। बिल्डिंग बायलॉज का पालन नहीं होने पर किसी तरह का मुआवजा नहीं दिया जाता है।

इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि अगर नियमों की अनदेखी कर 4 मंजिला बिल्डिंग भी बनी हुई है, तो उसका मुआवजा केवल खाली भूखण्ड के हिसाब से ही मिलेगा। अगर संबंधित व्यक्ति इस कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट में भी जाते हैं तो वहां भी उन्हें राहत नहीं मिलती है।

यही स्थिति शहर में बन रहे फ्लैट्स पर लागू होती है। शहर में बन रहे अधिकांश टू बीएचके फ्लैट्स बिना नक्शा पास कराए बनाए जा रहे हैं। जहां तक बात अवैध निर्माण की है तो उसे हटाने पर किसी तरह का मुआवजा नहीं दिया जाता है।

सवाल 2 : अगर कॉलोनी जेडीए अप्रूव्ड नहीं है तो वहां मकान खरीदने के क्या नुकसान हैं?

जवाब: मकान खरीदने वाला हर व्यक्ति चाहता है कि अस्पताल, बैंक, स्कूल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स जैसी सामान्य सुविधाएं उसके घर के आस-पास हो। कई बार वह भविष्य में इन जरूरतों के पूरा होने की उम्मीद में आवासीय सोसायटी या कृषि भूमि पर भी मकान ले लेता है। शहर के सीनियर टाउन प्लानर की मानें तो ऐसी कई कॉलोनियों में लोग रह ताे रहे हैं लेकिन वहां इस तरह की सुविधाएं आएंगी नहीं।

जेडीए से अप्रूव्ड नहीं होने के कारण वहां भविष्य में जेडीए भी किसी तरह का विकास कार्य नहीं कराएगा। अगर उस जमीन पर कोई प्रोजेक्ट या स्कीम आती है तो ऐसे मकानों को अतिक्रमण मानते हुए आज नहीं तो कल हटाया जा सकता है। ऐसे में किसी भी विवाद से बचने के लिए जयपुर में मकान खरीदते समय जेडीए स्कीम में ही मकान लें। प्रदेश के अन्य शहरों में वहां की डेवलपमेंट अथॉरिटी जैसे यूआईटी, नगर निगम, नगर परिषद की स्कीम में ही प्लाॅट लेना चाहिए।

एक्सपर्ट की मानें तो अगर जेडीए या किसी अन्य अथॉरिटी की स्कीम में मकान या प्लाट नहीं ले पा रहे हैं तो इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आप जहां मकान खरीद रहे हैं उसके लेआउट प्लान को संबंधित डेवलपमेंट अथॉरिटी ने अनुमोदित कर रखा है या नहीं। क्योंकि कई बार बिल्डर अपनी मर्जी से भी काम करते हैं। जिससे बाद में कई तरह की समस्या पैदा हो जाती हैं।

लेआउट प्लान पास करने के दौरान संबंधित एजेंसी इसकी जांच करती है कि वह मकान किसी सड़क, नाला, तालाब या वन क्षेत्र में तो नहीं है। इसके बाद जेडीए उस प्लॉट या मकान के पट्‌टे जारी करता है। मकान खरीदने से पहले पानी, बिजली की उपलब्धता और इलाके में आने वाली परियोजनाओं के बारे में जरूर जानकारी कर लें। क्योंकि आवश्यक सुविधाएं होने पर उस संपत्ति को दोबारा बेचने पर उसकी कीमत समय के साथ बढ़ती है।

सवाल 3: मकान खरीदने से पहले कोई व्यक्ति कैसे पता करें कि उसकी कॉलोनी या बिल्डिंग अवैध है?

जवाब: कोई कॉलोनी अप्रूव्ड है या नहीं, इसके लिए जेडीए से जानकारी ली जा सकती है। लेकिन जेडीए अप्रूव्ड मकान या प्लॉट की कीमत अधिक होने के कारण हर व्यक्ति के लिए इसे खरीदना संभव नहीं होता है। ऐसे में अधिकांश लोग शहर के आस-पास के इलाकों में लैंड डेवलपर्स से प्लॉट खरीदते हैं। इस दौरान आम व्यक्ति के लिए यह पता करना बेहद मुश्किल होता है कि कॉलोनी या बिल्डिंग अवैध है या नहीं।

इस संबंध में जेडीए की वेबसाइट पर भी अवैध कॉलोनी और भवनों की लिस्ट देखी जा सकती है। इस लिस्ट को जेडीए द्वारा समय-समय पर अपडेट भी किया जाता है। जहां जेडीए अवैध कॉलाेनियों को ध्वस्त करने की कार्रवाई करता है। उनके बारे में भी वेबसाइट पर जानकारी दी जाती है।

कई बार डेवलपर्स कार्रवाई के बाद दोबारा अवैध कॉलोनी काटकर लोगों को ठगने की कोशिश करते हैं। ऐसे में मकान या प्लॉट खरीदने से पहले यह जरूर जांच लें कि वो मकान अवैध कॉलोनी में तो नहीं है। जेडीए ने 174 से अधिक अवैध कॉलाेनी की सूची वेबसाइट पर अपलोड कर रखी है। अगर कोई मकान या प्लॉट अवैध कॉलोनी में हो तो सस्ता होने के बावजूद उसे नहीं खरीदें, क्योंकि बाद में वह अतिक्रमण की जद में आने पर महंगा पड़ सकता है। कॉलोनी स्थानीय निकाय से अप्रूव्ड होनी चाहिए।

सवाल 4 : निजी खातेदारी (कृषि भूमि) पर काटी गई कॉलोनी में मकान खरीदना सही है?

जवाब : शहर के बाहरी इलाकों में मुनाफे के लालच में डेवलपर्स निजी खातेदारी की कृषि भूमि पर भी नई कॉलोनी बसा रहे हैं। ऐसी कॉलोनी में टाउनशिप की तर्ज पर डिमार्केशन कर बाडन्ड्रीवॉल, ग्रैवल सड़कें, पिल्लर और नींव बनाकर प्लॉटिंग दिखाते हैं। जिससे खरीदने वाले को किसी तरह का शक न हो। कई बार भूमि मालिक खरीदार की जरूरत के अनुसार किस्तों में प्लॉट खरीदने की सुविधा भी दे देते हैं। लोग निवेश के लिए कम कीमत में ऐसी जगह पर प्लॉट खरीद लेते हैं लेकिन बाद में उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ता है।

इन कॉलोनी को बसाने से पहले जेडीए की स्वीकृति या अनुमोदन नहीं लिया जाता है। बिना भू-रूपान्तरण कराए भूमि मालिक जमीन को समतल कर रातों-रात अवैध निर्माण कराते हैं। ऐसे में भविष्य में जेडीए ऐसी बसी कॉलोनियों को ध्वस्त करने की कार्रवाई करता है। जिससे आपकी गाढ़ी मेहनत की कमाई खतरे में पड़ सकती है और आपको आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। एक्सपर्ट के अनुसार कभी भी सोसायटी और कृषि भूमि के प्लॉट नहीं खरीदें।

सवाल 5 : मकान या प्लॉट खरीदने से पहले किन डॉक्यूमेंट की जांच करना है जरूरी?

जवाब: प्लॉट या मकान खरीदते समय टाइटल डीड की जांच करना बेहद जरूरी है। इससे संपत्ति के मालिकाना हक के बारे में जानकारी मिलती है, उसका असली मालिकाना हक किसके पास है। टाइटल डीड से ही पता लगता है कि बिल्डर के पास संपत्ति बेचने यानी उसके मालिकाना हक को ट्रांसफर करने का अधिकार है या नहीं? इसके साथ ही संपत्ति को लेकर कोई मुकदमा चल रहा है या नहीं, इसकी जानकारी भी टाइटल डीड से मिल सकेगी। टाइटल डीड की जांच कराने के लिए किसी वकील की मदद भी ली जा सकती है।

संपत्ति खरीदने के समय इन बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है

  • संपत्ति खरीदते समय सेल एग्रीमेंट जरूर बनवाएं।
  • अगर आप रेडी टू मूव अपार्टमेंट खरीद रहे हैं तो सेल डीड की जांच जरूर करें। यह दस्तावेज संपत्ति की बिक्री और हस्तांतरण का कानूनी प्रमाण होता है।
  • नगर निगम अधिकारियों और सरकारी एजेंसियों द्वारा समय-समय पर दिए गए प्रमाण पत्र भी मांगे।
  • बैंक से लोन लेने के लिए इन दस्तावेजों की जरूरत होती है। इनके साथ ही यह भी जांच लें कि स्थानीय निकाय ने भवन निर्माण की मंजूरी दी है या नहीं।
  • यह भी पता लगाएं कि संपत्ति किसी भी कानूनी देनदारियों से मुक्त है या नहीं।
  • जांच लें कि प्रोजेक्ट या प्रॉपर्टी एजेंट के पास रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी सर्टिफिकेट ( रेरा ) है या नहीं। रेरा सर्टिफिकेट होने पर धोखाधड़ी की संभावना कम होती है। इसमें संपत्ति, डेवलपर और परियोजना के बारे में सभी जानकारी होती है।
  • सवाल 6: शहर में बढ़ते अतिक्रमण के लिए कौन हैं जिम्मेदार? लोगों को जागरूक करने के लिए क्या पहल करनी चाहिए ?

    जवाब: सेवानिवृत अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक चद्रशेखर पाराशर का कहना है कि लोगों को अवैध निर्माण करने पर भरोसा है न कि सरकार पर कि वह इसे तोड़ेगी। इसलिए ही शहर में अवैध अतिक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। चारदीवारी और बाहरी क्षेत्र दोनों ही जगह अतिक्रमण हो रहे हैं। रिहायशी और व्यावसायिक दोनों तरह के भवन तेजी से बन रहे हैं। यह स्थानीय एजेंसी के कर्मचारी और अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।

    ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधि भी अपने उत्तरदायित्व को नहीं निभाते हैं। उनकी नजर के सामने अतिक्रमण होने के बावजूद वे इन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं करते हैं। अतिक्रमण रोकने के लिए संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। जिस अधिकारी के कार्यकाल में अतिक्रमण हुआ है उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

    पूर्व मुख्य नगर नियोजक एचएस संचेती का कहना है कि लोगों को अवेयर करने के लिए बोर्ड एट साइट स्कीम को सख्ती से लागू करना चाहिए। कॉलोनी के मेन गेट पर 90बी की जानकारी का लेआउट लगाना अनिवार्य करना चाहिए। इसमें अप्रूव्ड की तारीख भी शामिल होनी चाहिए। हर व्यक्ति वेबसाइट से जानकारी नहीं ले सकता है। ऐसे में इसे अनिवार्य किया जाना चाहिए। जिससे लोग धोखाधड़ी के शिकार होने से बच सकें।

 

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