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ग्रेनाइट चमकाने का फॉर्मूला पाने के लिए किडनैपिंग क्या नेचुरल नहीं होती ग्रेनाइट की चमक, क्या है इसका प्रोसेस जानिए हर सवाल का जवाब

राजस्थान के जालोर में एक बड़े ग्रेनाइट कारोबारी के बेटे का बदमाशों ने किडनैप कर लिया। बदमाशों ने बेटे को छोड़ने के बदले में 6 लाख रुपए और ग्रेनाइट पत्थर में चमक लाने के लिए बनाई जाने वाली पॉलिशिंग एब्रेसिव्स (बट्टी) के सीक्रेट फॉर्मूले की डिमांड की है। दरअसल, पत्थरों की घिसाई करने वाली मशीन के हेड के नीचे यह (बट्टी) लगती है।

फिलहाल जालोर पुलिस किडनैपर्स की तलाश में जुटी है। जालोर की ग्रेनाइट एसोसिएशन भी कारोबारी के बेटे को जल्द से जल्द आजाद कराने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।

इस घटना ने नई बहस छेड़ दी है कि क्या वाकई ग्रेनाइट स्टोन में चमक लाने का कोई सीक्रेट फॉर्मूला होता है? आखिर कैसे ग्रेनाइट को चमकदार बनाया जाता है?

सवाल : क्या ग्रेनाइट में दिखने वाली चमक नेचुरल होने के बजाय मेन मेड होती है?

एक्सपट्‌र्स : ग्रेनाइट स्टोन नेचुरल जरूर है पर ग्रेनाइट की स्लैब या टाइल्स पर चमक लाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। हालांकि वो चमक काफी हद तक नेचुरल ही होती है।

कटर मशीन, टाइल्स मशीन से कटिंग होने के बाद तैयार स्लैब या टाइल्स की मशीनों की सहायता से घिसाई की जाती है। कई बार की घिसाई के बाद ही इस पर चमक दिखने लगती है।

कई बार किसी ग्रेनाइट स्लैब का कलर डार्क करने के लिए घिसाई के साथ ही कुछ केमिकल्स का भी यूज किया जाता है।

सवाल : ग्रेनाइट को चमकाने (पॉलिश) के कितने तरीके हैं?

एक्सपट्‌र्स : फैक्ट्रियों में ग्रेनाइट स्लैब या टाइल्स को चमकाने (पॉलिश) के दो तरीके हैं। इसके लिए हेड पॉलिशिंग और लाइनर पॉलिशिंग मशीनों को काम में लिया जाता है।

लाइनर पॉलिशिंग क्वालिटी और फास्ट प्रोसेसिंग के लिहाज से बेस्ट है, लेकिन इसकी मशीन महंगी होती है। हेड पॉलिशिंग सबसे ज्यादा काम में लिया जाने वाला और सस्ता तरीका है।

हेड पॉलिशिंग में लेबर और ऑपरेटर की मदद से एक ही स्लैब को कई बार घिसाई कर पॉलिश की जाती है। लाइनर पॉलिशिंग में सब कुछ ऑटो तरीके से एक ही बार में फाइनल पॉलिश हो जाता है।

सवाल : ग्रेनाइट को चमकाने (पॉलिश) के लिए क्या करना पड़ता है ? इसकी प्रोसेस क्या है?

एक्सपट्‌र्स : ग्रेनाइट स्लैब और टाइल्स को पहले लेबर या क्रेन की मदद से एक-एक कर हेड पॉलिश मशीन या लाइनर पॉलिश मशीन तक पहुंचाया जाता है। यहां सीमेंटेड टेबलनुमा स्टेज पर इन स्लैब को एक-एक कर लेटाया जाता है।

इसके बाद हेड पॉलिशिंग में मशीन ऑपरेटर स्लैब या टाइल्स के एक तरफ मशीन की सहायता से घिसाई स्टार्ट करता है। हेड पॉलिशिंग मशीन में ईंटों की तरह की दो एब्रेसिव्स (बट्टी) लगी होती है।

इन एब्रेसिव्स के खास नंबर्स होते हैं। हेड पॉलिशिंग में एक बाद एक कई बार घिसाई के लिए इन एब्रेसिव्स को बदला जाता है। हर बार अलग और नए नंबर्स की बट्टी का यूज किया जाता है।

आखिर में हुई घिसाई को डायमंड पॉलिश कहा जाता है। इसके बाद स्लैब की घिसाई कंप्लीट हो जाती है। डायमंड पॉलिश में काम में ली जाने वाली बट्टी सबसे महंगी होती है।

इसके उलट लाइनर पॉलिस मशीन में लेबर या क्रेन की मदद से एक-एक कर ग्रेनाइट स्लैब और टाइल्स को ऑटो मूविंग ब्रिज पर लेटाया जाता है।

इस मशीन को ऑपरेट करने के लिए एक पूरा पैनल या रिमोट भी होता है। इसकी सहायता से ऑटो मूविंग ब्रिज पर रखी ग्रेनाइट स्लैब और टाइल्स को आगे मशीन में सरकाया जाता है।

इस मशीन में एक साथ कई हेड बने हुए होते हैं और हर हेड में दो एब्रेसिव्स (बट्टी) लगी होती है, लेकिन सभी के अलग-अलग नंबर होते हैं।

अंत के हेड में डायमंड पॉलिश की बट्टी होती है। ऑटो मूविंग ब्रिज की सहायता से ग्रेनाइट स्लैब और टाइल्स को बारी-बारी इन सभी हेड के नीचे रखा जाता है और बारी-बारी से पॉलिशिंग के बाद बाहर निकाला जाता है।

सवाल : ग्रेनाइट पॉलिशिंग में काम में ली जाने वाली एब्रेसिव्स (बट्टी) कितने प्रकार की होती है ? इनके क्या-क्या नंबर्स होते है ?

एक्सपट्‌र्स : ग्रेनाइट पॉलिशिंग के लिए काम में ली जाने वाली एब्रेसिव्स (बट्टी) 8 तरह की होती है। इनमें सबसे पहले 100 नंबर, 200 नंबर और 300 नंबर एब्रेसिव्स का यूज होता है।

इनकी सहायता से स्लैब की घिसाई (ग्राइंडिंग) होती है और इसके बाद में 400 नंबर, 600 नंबर, 800 नंबर, 1500 और 3000 नंबर की एब्रेसिव्स (बट्टी) से स्लैब की पॉलिश होती है।

इसे ही डायमंड पॉलिश कहा जाता है। एक बार में इनकी मदद से अधिकतम करीब 3-6 हजार स्क्वायर फीट ग्रेनाइट पर पॉलिश होती है।

सवाल : ग्रेनाइट पॉलिशिंग में काम में ली जाने वाली बट्टी कैसे बनती है और क्या इसका कोई सीक्रेट फाॅर्मूला भी होता है?

एक्सपट्‌र्स : ग्रेनाइट पॉलिशिंग में काम में ली जाने वाली एब्रेसिव्स का सीक्रेट फाॅर्मूला होता है और हर नंबर की बट्टी बनाने का भी अलग-अलग फाॅर्मूला होता है।

तमिलनाडु के बरगूर इंडस्ट्रियल एरिया में दुर्गाश्री एब्रेसिव्स के नाम से अपनी फैक्ट्री चलाने वाले एब्रेसिव्स मैन्युफैक्चरर शंकर भाई ने बताया कि चार एलिमेंट्स मैग्नेसाइट, मेग्नेशियम क्लोराइड, सिलिकॉन और प्लास्टिक होल्डर को मिलाकर ही बट्टी बनाई जा सकती है।

हर नंबर की बट्टी को बनाने के लिए मैग्नेसाइट, मेग्नेशियम क्लोराइड और सिलिकॉन की क्वांटिटी को कम-ज्यादा किया जाता है। हालांकि उन्होंने अपने बिजनेस का हवाला देते हुए हमें पूरा फाॅर्मूला बताने से मना कर दिया।

वहीं जालोर के लोकल ग्रेनाइट मार्केट में ग्रेनाइट पॉलिशिंग में काम में ली जाने वाली एब्रेसिव्स बनाने वाले एक दूसरे मैन्युफैक्चरर नाथू ने हमें बताया कि इसे बनाना कोई राॅकेट साइंस नहीं है। ये ठीक उसी तरह है, जैसे साबुन बनाते हैं।

सवाल : क्या ग्रेनाइट पॉलिशिंग में काम में ली जाने वाली एब्रेसिव्स के सहारे स्टोन के क्रैक्स और गड्‌ढों को भी छिपा दिया जाता है ?

एक्सपट्‌र्स : नहीं। एब्रेसिव्स (बट्टी) के सहारे स्टोन के क्रैक्स और गड्‌ढों को नहीं छिपाया जा सकता। हालांकि एपोक्सी के जरिए इन्हें छिपाया जाता है।

ये एक तरह का पॉलीएपॉक्साइड्स केमिकल होता है। इसे ग्रेनाइट स्लैब की पॉलिश से पहले ही स्लैब पर अच्छे से चिपकाया जाता है और क्रैक्स और गड्‌ढों में भरा जाता है।

इसके बाद स्लैब को सुखाया जाता है। सूखने के बाद स्लैब पर पॉलिश की जाती है। वहीं कुछ खास ग्रेनाइट स्टोन जैसे लाखा रेड को डार्क कलर में दिखाने के लिए शाइनर का भी सहारा लिया जाता है।

देश में कुछ बड़े मैन्युफैक्चरर जैसे सूरी पोलेक्स जैसी कंपनियां ग्रेनाइट पॉलिशिंग के लिए मेटल और रेजिन से बनी एब्रेसिव्स (बट्टी) बना रहे हैं। ये बेहद महंगी होती है। इनका पॉलिशिंग एवरेज भी बहुत ज्यादा होता है।

ऐसे तैयार होते हैं ग्रेनाइट स्टोन या स्लैब

ग्रेनाइट को माइंस से बड़े-बड़े ब्लॉक्स में काटकर बाहर निकाला जाता है। इसके बाद वहां इसे अलग-अलग साइज में काटकर छोटे ब्लॉक्स में तैयार किया जाता है। उन ब्लॉक्स को ग्रेनाइट स्लैब और टाइल्स में तैयार करने के लिए कटर फैक्ट्रियों में भेजा जाता है।

ग्रेनाइट कटर फैक्ट्री में ब्लॉक्स से ग्रेनाइट स्लैब तैयार किए जाते हैं। जहां इन्हें अलग-अलग साइज की हाइट के लिए अलग-अलग कटर मशीनों से काटा जाता है।

ढाई से 4 फीट की हाइट में स्लैब काटने वाली मशीन को कटर मशीन कहा जाता है। इससे बड़ी साइज में स्लैब बनाने वाली मशीन को गैंगसा कटर कहा जाता है। टाइल्स के लिए नाॅर्मल और छोटा कटर होता है।

कटिंग का तरीका बदला
पहले इन कटर मशीनों में ग्रेनाइट को कई बड़ी ब्लेड से एक साथ ही केरोसिन के बहाव के प्रेशर के साथ काटा जाता था। मौजूदा दौर में अब इन्हें एक ही बड़ी राउंड ब्लेड की सहायता से एक के बाद एक पानी के प्रेशर से काटा जा रहा है।

यहां इन्हें ब्लॉक की चौड़ाई के अनुसार स्लैब का फिक्स थिकनेस की चौड़ाई का पैरामीटर सेट करके काटा जाता है।

आमतौर पर इंडिया के लोकल मार्केट में ग्रेनाइट स्लैब 18 एमएम तक का होता है। एक्सपोर्ट मार्केट में इसे 20 एमएम से लेकर जरूरत अनुसार अलग-अलग थिकनेस तक काटा जाता है। लोकल मार्केट में ग्रेनाइट टाइल्स को पहले से ही 10MM थिकनेस तय कर काटी जाती है।

इसलिए जरूरी है पॉलिशिंग
कटर मशीन, टाइल्स मशीन या गैंगसा मशीन से कटिंग के बाद तैयार होने वाले ग्रेनाइट स्लैब और टाइल्स नेचुरल तो होते हैं, मगर ये तब तक अनपॉलिश्ड होते हैं। इसके चलते इन स्लैब का रंग पूरी तरह से डिस्प्ले नहीं होता है।

वहीं जब इन स्लैब और टाइल्स पर पानी डाला जाता है तो इनका शानदार नेचुरल रंग खिलकर दिखता है। जैसे ही थोड़ी देर बाद ये पानी सूखता है तो एक बार फिर से ये ग्रेनाइट टाइल्स और स्लैब बेरंग से हो जाते हैं।

ऐसे में इन ग्रेनाइट टाइल्स और स्लैब की नेचुरल चमक बरकरार रखने के लिए इन्हें पॉलिशिंग की प्रोसेस से गुजारा जाता है।

3 दिन बाद भी व्यापारी के बेटे का कोई सुराग नहीं
जालोर से किडनैप हुए ग्रेनाइट कारोबारी रतन मालवीय के बेटे राजेंद्र मालवीय का आज तीसरे दिन भी कोई सुराग नहीं मिल पाया है। 17 जून को दोपहर 2 बजे के बाद राजेंद्र का किडनैप हुआ था। किडनैपर्स ने राजेंद्र के फोन से ही उनके पिता रतन को मैसेज कर 6 लाख रुपए और ग्रेनाइट स्टोन पर चमक लाने के लिए काम में ली जाने वाली एब्रेसिव्स (बट्टी) बनाने का फाॅर्मूला मांगा था। किडनैपर्स के बताए ठिकाने पर पहुंचे कारोबारी रतन के साथ दूसरी गाड़ियां देखकर किडनैपर्स ने डील कैंसिल कर दी थी और वहां से भाग गए थे। इसके बाद रात में पौने तीन बजे के बाद किडनैपर्स की तरफ से अब तक कोई मैसेज नहीं आया है। इस बीच बुधवार दोपहर में सवा एक बजे के करीब कुछ सेकंड्स के लिए राजेंद्र का फोन ऑन हुआ था।

जालोर में बट्टी बनाने वाले इकलौते मैन्युफैक्चरर हैं रतन मालवीय
जालोर के कई फैक्ट्री मालिक दिल्ली से और साउथ से पॉलिशिंग एब्रेसिव्स (बट्टी) मंगवाते हैं। पहले कई लोकल मैन्युफैक्चरर भी थे, जो यहीं लोकल में ही पॉलिशिंग एब्रेसिव्स बनाते थे। बाहर की पॉलिशिंग एब्रेसिव्स की क्वालिटी और एफिसियंसी के मुकाबले में लोकल प्रोडक्ट कमजोर रहने से धीरे-धीरे इस काम को बंद करना पड़ा। राजेंद्र के पिता रतन मालवीय जालोर में इकलौते पॉलिशिंग एब्रेसिव्स के मैन्युफैक्चरर हैं। इनकी रत्नम ग्रेनाइट के नाम से फैक्ट्री है। क्वालिटी और एफिसियंसी के चलते जालोर के लोकल मार्केट में इनकी पॉलिशिंग एब्रेसिव्स की डिमांड भी काफी है। जालोर में ग्रेनाइट फैक्ट्री चलाने वाले राजू सिंह राजपुरोहित ने बताया कि दूसरी एब्रेसिव्स के मुकाबले इनकी एब्रेसिव्स से 1500 से 2000 स्क्वायर फ़ीट ज्यादा ग्रेनाइट पॉलिश होता है।

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