‘रात का वक्त था। सब सो रहे थे। अचानक तेज धमाका हुआ। मैं घबराकर उठा, कुछ समझ आता, तब तक घर में पानी घुसने लगा। बाहर देखा तो पूरे गांव में पानी भर गया था। पानी के शोर के साथ पड़ोसियों की चीख-पुकार सुनाई दे रही थी। मुझे समझ आ गया कि गांव में कुछ नहीं बचा है। मैं अंधेरे में ही बाहर भागा। तेज दौड़ लगाते हुए मेन रोड तक पहुंचा। मैं बच गया, लेकिन भाई का पता नहीं, वो कहां है।’
बिलाल जैसी ही हालत वायनाड के चार गांवों मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा में हजारों लोगों की है। बिलाल मुंडक्कई में तबाही के बीच अपने भाई को तलाश रहे हैं। ये एरिया ऊंचे पहाड़ों और जंगलों से घिरा है, जहां लगातार भारी बारिश हो रही थी।
29-30 जुलाई की रात करीब 2 और 4 बजे लैंडस्लाइड हुई और नदी के पानी के साथ पहाड़ का मलबा इन चारों गांवों में घुस गया। इसके रास्ते में आए घर, पुल, सड़कें और गाड़ियां सब बह गए। अब तक कुल 270 मौतें हुई हैं। 200 से ज्यादा लोग लापता हैं। करीब 1600 लोगों को रेस्क्यू किया गया है। 8 हजार से ज्यादा लोग रिलीफ कैंप में हैं।
स्थानीय लोगों का दावा है कि मलबे में अब भी सैकड़ों लोग दबे हैं, जिनकी बचने की उम्मीद कम है। उन्होंने नदी में डेडबॉडी बहते भी देखी हैं।
यहां हर तरफ तबाही के निशान मौजूद हैं। टूटे घर, स्कूल, पुल बता रहे हैं कि नदी का बहाव कितना तेज रहा होगा। हम यहां पहुंचे तब भी तेज बारिश हो रही थी। इस वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन बार-बार रोकना पड़ा।
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