राजस्थान की भाजपा सरकार ने प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव एकसाथ कराने का विचार बजट भाषण में शामिल किया। ऐसा सोचने वाला राजस्थान देश में पहला राज्य है। इसे लागू कब और कैसे करेंगे, इसका आकलन शासन-प्रशासन कर रहे हैं। प्रारंभिक आकलन है कि स्थानीय निकायों में 1.36 लाख पदों पर एकसाथ चुनाव के लिए 4 लाख कर्मी, 3 लाख फोर्स और ढाई लाख ईवीएम चाहिए, प्रदेश के पास अपनी 12 हजार ईवीएम है।
दूसरी बड़ी चुनौती- प्रशासकों से इस्तीफे लेने होंगे। घोषित चुनाव तारीख के बाद वाले निर्वाचित बाेर्ड-निगमों को भंग करना होगा। पुनर्गठन से लेकर ओबीसी आरक्षण की कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी होगी। पंचायत और निकाय चुनाव के नियम अलग-अलग हैं। दोनों के नियमाें में संशाेधन करना हाेगा। चुनावी शेड्यूल काे एक समान लाना हाेगा।
इसी साल के अंत में निकाय चुनाव होने हैं, क्या इस बार वन स्टेट वन इलेक्शन संभव है? सवाल इसलिए भी कि प्रदेश में पिछली बार नवंबर 2019 से इलेक्शन शुरू हुए थे और 2021 तक चले थे। देरी के कारण हजारों प्रशासक लगाए गए थे। 17 नए जिलों में जिला परिषद नहीं, सीमांकन करना होगा।
अक्टूबर में चुनाव का सिलसिला शुरु हाेना है, लेकिन इस बार चुनाव में देरी हाेना तय है। सुप्रीमकाेर्ट का एक ऑर्डर है कि ओबीसी आरक्षण चुनाव में लागू करने से पूर्व इस संबंध में एक कमेटी का गठन करके रिपाेर्ट प्राप्त करनी हाेगी। कमेटी की अनुशंसा के आधार पर ही ओबीसी आरक्षण का फायदा दिया जाएगा। ऐसा नहीं किया ताे एसटी-एससी काे छाेड़कर शेष सभी सीटें जनरल की मानकर चुनाव कराएं। पुनर्गठन और नए जिलाें काे लेकर विवाद भी है।
समाधान क्या; अलग-अलग चरणाें में चुनाव हाे और रिजल्ट एक दिन आएं
लाेकसभा और विधानसभा की तर्ज पर चुनाव अलग-अलग चरणाें में हो सकता है, जिलावार करा सकते हैं। एक दिन काउंटिंग कराकर एकसाथ परिणाम जारी हाे सकते हैं। इस तरह से मैनपाॅवर और मशीनरी की कमी से राहत संभव है।पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य में जिलों की संख्या 33 से बढ़ाकर 50 कर दी थी। 17 जिला परिषद और बनानी होंगी। नए सिरे से जिला-वार्डों का पुनर्गठन करना होगा।एकसाथ चुनाव कराने का मतलब है कि सवा लाख पदाें पर चुनाव हाे। कितना संसाधन लगेगा क्या रहेगा। इस संबंध में आकलन किया जा रहा है।
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