जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 90 वर्षीय रिटायर्ड आरएएस अफसर ब्रजमोहन सिंह बारेठ की जीवनभर की पेंशन रोकने के 24 साल पुराने आदेश को रद्द कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि केवल आरोपों के आधार पर किसी अधिकारी की पेंशन नहीं रोकी जा सकती। यह कानूनी दृष्टि से भी उचित नहीं है।
5 साल और बाद में जीवनभर पेंशन रोकने का नोटिस दिया सिंह को 30 मार्च 1993 को विभिन्न आरोपों के तहत चार्जशीट दी गई। हालांकि, वे 29 फरवरी 1996 को अपनी सेवानिवृत्ति के समय तक जांच के परिणामों का सामना नहीं कर पाए। रिटायरमेंट के बाद उन्हें 1 मार्च 1996 से अंतरिम पेंशन दी गई।
लेकिन बाद में अनुशासनात्मक अधिकारी ने नवंबर 1997 में उनकी पेंशन को पांच साल के लिए रोकने का नोटिस जारी कर दिया था। इसके बाद 10 अप्रैल 1999 को उन्हें जीवनभर की पेंशन रोकने का नोटिस मिला और 8 दिसंबर 2000 को पेंशन रोकने का अंतिम आदेश जारी किया गया।
हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यदि इस मामले को लंबित न रखा गया होता। तो इसे सक्षम अधिकारी के पास भेजा जा सकता था। लेकिन 90 वर्ष की आयु को देखते हुए इसे वापस भेजना उचित नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी रिटायर कर्मचारी की पेंशन तब तक नहीं रोकी जा सकती जब तक यह साबित न हो जाए कि उसने अपने सेवाकाल में गंभीर दुराचरण या लापरवाही की है।
पेंशन रोकने के लिए लापरवाही के प्रमाण की जरूरत ब्रजमोहन के वकील त्रिभुवन नारायण सिंह ने अदालत में तर्क किया कि राजस्थान सेवा नियम, 1951 के तहत पेंशन रोकने के लिए गंभीर दुराचरण या लापरवाही के प्रमाण की आवश्यकता है।
उनका मामला गंभीर नहीं था और अपील दायर करने के बजाय सरकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई की। जो कि कानूनी रूप से सही नहीं था। राज्य सरकार के एडवोकेट यश जोशी ने पहले की कार्रवाई का समर्थन किया, लेकिन खंडपीठ ने पेंशन रोकने वाले आदेश को रद्द कर दिया।न्यायालय ने वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों और उनके प्रति संवेदनशीलता को प्रमुखता पर रखा गया है। यह निर्णय सरकारी सेवा में कार्यरत कर्मचारियों के लिए एक मिसाल बन जाएगा। सिंह अब अपनी पूरी पेंशन का लाभ लेंगे। जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण राहत है।
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