नई दिल्ली : अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा आयात शुल्क बढ़ाने के फैसले ने वैश्विक बाजारों को हिला कर रख दिया है। भारत में सोमवार का दिन शेयर बाजारों के लिए सबसे भयावह दिनों में से एक साबित हुआ, जहां सेंसेक्स में 3900 अंकों की गिरावट दर्ज की गई। दिन के अंत तक यह गिरावट 2226 अंकों पर आकर थमी।
निफ्टी ने भी लगभग 1100 अंकों की गिरावट देखी और अंततः 742 अंकों नीचे बंद हुआ। इससे निवेशकों की संपत्ति में 14 लाख करोड़ रुपये से अधिक की कमी आई।
ट्रंप द्वारा आयात शुल्क बढ़ाने का सबसे गहरा असर एशिया पर पड़ा है। इसकी वजह यह है कि एशिया के अधिकांश देश, विशेषकर चीन, भारत, वियतनाम और बांग्लादेश, निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्थाएं हैं, और अमेरिका इनके लिए एक बड़ा बाजार है।
बढ़े हुए आयात शुल्क से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए इन देशों से आने वाले सामान महंगे हो जाएंगे, जिससे निर्यात पर सीधा असर पड़ेगा। इसी आशंका के चलते चीन का शंघाई, जापान का टोक्यो, ऑस्ट्रेलिया का सिडनी और दक्षिण कोरिया के बाजारों में भी भारी गिरावट देखी गई।
3900 अंकों की गिरावट, जो हाल के वर्षों की सबसे बड़ी में से एक है
20 लाख करोड़ रुपये का मार्केट कैप दिन की शुरुआत में साफ
14 लाख करोड़ का घाटा दिन के अंत तक
भारत का बाजार लगभग 2.95% गिरा, जो अब तक की पांचवीं सबसे बड़ी गिरावट में शामिल है
ट्रंप ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि,
“बाजारों को दवा की जरूरत है।”
यानी वे इन टैरिफ्स को लंबी अवधि की नीति सुधार के रूप में देखते हैं, जिससे अमेरिका की घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिल सके। लेकिन फिलहाल इस फैसले ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता पैदा कर दी है।
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इससे निवेशकों का विश्वास डगमगाया है और बाजारों में ब्लडबाथ जैसी स्थिति बनी है।
भारत ने ऐतिहासिक रूप से संकट के समय डिप्लोमैटिक रास्ता अपनाया है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के समय भी भारत ने तटस्थ रुख अपनाया और उसका फायदा भी पाया।
भारत सरकार टैरिफ का जवाब टैरिफ से देने की बजाय, अमेरिका के साथ बातचीत के जरिए समाधान निकालने की कोशिश कर रही है, जिससे भारतीय उद्योगों को न्यूनतम नुकसान हो।
ट्रंप के टैरिफ फैसले ने वैश्विक बाजारों को हिला दिया है। भारत समेत एशियाई देशों में इसका असर लंबे समय तक महसूस किया जा सकता है। हालांकि भारत की कूटनीतिक रणनीति और वैश्विक स्थिति के अनुसार हालात सुधरने की संभावना भी बनी हुई है।
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