सीकर, राजस्थान: वक्फ संशोधन बिल को लेकर देशभर में चल रही राजनीतिक बहस अब सोशल मीडिया विवाद का रूप ले चुकी है। सीकर से सांसद अमराराम ने जब संसद में बिल के खिलाफ वोटिंग की, तो एक स्थानीय वकील (एडवोकेट जीडीसी) ने उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक और सांप्रदायिक टिप्पणी कर दी। इस पूरे मामले को लेकर CPIM के जिला नेता रामरतन बगड़िया ने कोतवाली थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई है।
सांसद अमराराम ने जब संसद में वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का विरोध किया, तब उनके इस रुख से नाराज़ एक स्थानीय वकील एडवोकेट जीडीसी ने फेसबुक पर एक अभद्र पोस्ट कर दी। यह पोस्ट सांसद की तस्वीर के साथ शेयर की गई थी और इसमें कई अमर्यादित और सांप्रदायिक बातें लिखी गई थीं।
हालांकि पोस्ट वायरल होने के बाद उसे हटा लिया गया, लेकिन तब तक कई लोगों ने स्क्रीनशॉट लेकर सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया था।
सीपीआईएम जिला सचिव रामरतन बगड़िया ने बताया:
"सांसद अमराराम के खिलाफ की गई पोस्ट से सांप्रदायिक सौहार्द्र को ठेस पहुंची है। यह पोस्ट न केवल भड़काऊ थी, बल्कि इसका मकसद समाज में नफरत फैलाना था।"
उन्होंने यह भी कहा कि:
"बिल के खिलाफ वोटिंग को लेकर सांसद को टारगेट करना और उन पर व्यक्तिगत हमला करना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।"
सीकर कोतवाली पुलिस ने इस मामले में एएसआई विद्याधर सिंह को जांच अधिकारी नियुक्त किया है। सीपीआईएम ने आरोपी के खिलाफ आईटी एक्ट और सांप्रदायिक उकसावे के तहत कार्रवाई की मांग की है।
परिवादी रामरतन बगड़िया का कहना है:
"इस प्रकार की पोस्ट ना केवल राजनीतिक द्वेष को दर्शाती हैं, बल्कि यह सोशल मीडिया के जरिए जनभावनाओं को भड़काने की एक सुनियोजित कोशिश भी है। आरोपी के खिलाफ **कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।"
वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लेकर संसद में खासा विवाद रहा। इंडिया गठबंधन के 232 सांसदों ने इसका विरोध किया, जिसमें सीपीआईएम सांसद अमराराम भी शामिल थे। विपक्ष का मानना है कि यह बिल धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता को कमजोर करता है।
सोशल मीडिया की आज़ादी का मतलब अभिव्यक्ति की आड़ में नफरत फैलाना नहीं हो सकता। सांसद अमराराम के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणी से यह सवाल एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है कि क्या सोशल मीडिया पर निगरानी और जवाबदेही की ज़रूरत है? इस मामले में पुलिस की कार्रवाई आने वाले दिनों में एक मिसाल बन सकती है।
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