राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर की 13 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है। न्यायमूर्ति सुदेश बंसल की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि गर्भावस्था जारी रखने से पीड़िता को जीवन भर मानसिक और शारीरिक कष्ट झेलने पड़ सकते हैं, जिसमें बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी और अन्य चुनौतियां शामिल होंगी।
पीड़िता की वकील सोनिया शांडिल्य ने बताया कि अदालत ने सांगानेर स्थित महिला अस्पताल के अधीक्षक को मेडिकल बोर्ड की देखरेख में गर्भपात कराने का निर्देश दिया है। पीड़िता 26 सप्ताह की गर्भवती थी, और उसके माता-पिता भी गर्भपात के पक्ष में थे।
अधिवक्ता शांडिल्य ने अदालत में दलील पेश करते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम- 1971 का हवाला दिया। इस कानून के तहत दुष्कर्म पीड़िता मानसिक अवसाद से गुजर सकती है, इसलिए गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए। गौरतलब है कि 24 सप्ताह तक के गर्भपात के लिए अदालत की अनुमति आवश्यक नहीं होती, लेकिन उससे अधिक अवधि होने पर कानूनी मंजूरी जरूरी होती है।
सुनवाई के दौरान, कानूनी टीम ने सर्वोच्च न्यायालय और अन्य हाईकोर्ट के ऐसे फैसलों का भी हवाला दिया, जिनमें 28 सप्ताह या उससे अधिक की गर्भावस्था में भी पीड़िता को गर्भपात की अनुमति दी गई थी।
दिसंबर 2024 में हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने रेप पीड़िताओं के मामलों में गाइडलाइन जारी करने की आवश्यकता जताई थी। अदालत ने कहा था कि एमटीपी अधिनियम-1971 के तहत 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन इससे अधिक अवधि के मामलों में अदालत की मंजूरी अनिवार्य होगी।
इस फैसले को लेकर सामाजिक और कानूनी विशेषज्ञों के बीच चर्चा जारी है, लेकिन कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया कि पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को देखते हुए यह फैसला लिया गया है।
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