सलूंबर, राजस्थान: प्रधानमंत्री वन धन योजना के तहत सलूंबर जिले के नठारा में धराल माता वन धन विकास केंद्र की महिलाएं आत्मनिर्भर बनने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं। सराडा ब्लॉक के नठारा गांव की आठ महिलाओं ने हर्बल गुलाल बनाकर अपनी अलग पहचान बनाई है। अब तक ये महिलाएं 325 किलो से अधिक हर्बल गुलाल तैयार कर चुकी हैं।
अतिरिक्त जिला कलेक्टर राजलक्ष्मी गहलोत ने महिलाओं द्वारा तैयार हर्बल गुलाल का अवलोकन किया और इसकी प्रक्रिया को करीब से देखा। उन्होंने कहा कि यह पहल न केवल महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन में मददगार है, बल्कि लोगों को रासायनिक रंगों से मुक्त और प्राकृतिक रंगों के साथ सुरक्षित होली मनाने का अवसर भी दे रही है। उन्होंने नागरिकों से हर्बल गुलाल का उपयोग करने और रासायनिक रंगों से बचने की अपील की।
समूह की महिला वन धन मैनेजर चंपा मीणा ने बताया कि रजगे, पलाश के फूल और पालक का उपयोग कर पूरी तरह प्राकृतिक और त्वचा के लिए सुरक्षित गुलाल तैयार किया जाता है। इस पहल से पर्यावरण को भी लाभ हो रहा है और महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। निरीक्षण के दौरान टीएडी विभाग के अधिकारी वेद प्रकाश, पवन मेहता, वन सखी मंजू मीणा, पार्वती देवी, लक्ष्मी सहित अन्य लोग मौजूद थे।
सलूंबर, राजस्थान: भारत के विभिन्न हिस्सों में होली अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाई जाती है। राजस्थान के सलूंबर जिले के सेमारी में स्थित करकेला धाम की नारियल वाली होली लोगों के बीच खास पहचान रखती है। यहाँ आदिवासी समुदाय नारियल भेंट कर होली मनाते हैं।
करकेला धाम, जो कि एक पवित्र आदिवासी धार्मिक स्थल है, होली के अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ आकर्षित करता है। यहाँ सबसे पहले होली जलाई जाती है, जिसे देखने के बाद अन्य जगहों पर होलिका दहन किया जाता है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, होलिका इसी क्षेत्र से जुड़ी थी। आदिवासियों का मानना है कि भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को बचाने के लिए लीला रची, जिससे होलिका जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। इसी कारण, भक्त होलिका को विदाई देने के लिए नारियल भेंट करते हैं और मन्नतें मांगते हैं। यहाँ धूनी (पवित्र अग्नि) हमेशा जलती रहती है।
होली के दिन डूंगरपुर, खेरवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर, बांसवाड़ा सहित अन्य जिलों से हजारों भक्त यहाँ आते हैं। शाम होते-होते पारंपरिक गैर नृत्य के साथ होलिका दहन किया जाता है। यहाँ सबसे पहले होली जलाने की मान्यता है, जिसे देखने के बाद अन्य जगहों पर होलिका दहन किया जाता है।
धराल माता वन धन विकास केंद्र की महिलाएं हर्बल गुलाल बनाकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं, वहीं करकेला धाम की नारियल वाली होली अपनी अनूठी परंपरा के कारण विशेष महत्व रखती है। दोनों ही पहल संस्कृति, पर्यावरण और समाज को सशक्त करने की दिशा में प्रेरणादायक हैं।
All Rights Reserved & Copyright © 2015 By HP NEWS. Powered by Ui Systems Pvt. Ltd.