राजस्थान : के करौली जिले में होली और दीपावली पर मिट्टी और गोबर से बनी ढाल का पूजन एक खास परंपरा है। यह परंपरा राजशाही जमाने से चली आ रही है, और मान्यता है कि इसका पूजन करने से बच्चों और परिवार की सुख-समृद्धि तथा लंबी उम्र होती है।
क्या है गोबर-मिट्टी से बनी ढाल की परंपरा?
- करौली जिले में होली और दीपावली पर महिलाएं इस ढाल का पूजन शुभ मुहूर्त में करती हैं।
- इन ढालों में मिठाइयाँ और पकवान रखकर पूजा की जाती है।
- इस परंपरा को राजाओं के समय से शुभ माना जाता है।
- ढाल युद्ध में सैनिकों की रक्षा करती थी, और यह ढाल परिवार की रक्षा और सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
कैसे बनाई जाती है ढाल और क्या है इसकी कीमत?
- यह ढाल मिट्टी और गोबर से बनी होती है।
- होली और दीपावली से 15 दिन पहले से कारीगर इसे बनाना शुरू कर देते हैं।
- इसे हाथों से बनाया जाता है, जिससे इसमें समय लगता है।
- बाजार में इसकी कीमत 25 रुपये से 60 रुपये तक होती है।
- होली के एक-दो दिन पहले इसकी खरीदारी तेज हो जाती है।
करौली में ही क्यों होती है यह परंपरा?
- यह परंपरा केवल करौली जिले में प्रचलित है।
- यहां की महिलाएं इस ढाल का उपयोग बच्चों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए करती हैं।
- राजशाही दौर से यह परंपरा चली आ रही है, और आज भी इसे उतने ही श्रद्धा से निभाया जाता है।