बाड़मेर : के बाड़मेर जिले में होली का त्योहार सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि अनोखी परंपराओं का भी संगम होता है। यहां "ढूंढने" की परंपरा सबसे अनूठी है, जिसमें पिछली होली के बाद जन्मे बच्चों को दूल्हे की तरह सजाकर उनका प्रतीकात्मक विवाह रचाया जाता है।
होली के दिन गांव-मोहल्लों के युवा और बच्चे ढोल-चंग बजाते हुए उन घरों में पहुंचते हैं, जहां पिछली होली के बाद बच्चा पैदा हुआ हो। नाचते-गाते हुए वे परिवार को शुभकामनाएं देते हैं और बच्चे के स्वस्थ भविष्य की कामना करते हैं।
बच्चों को आंगन में बड़े-बुजुर्गों की गोद में बैठाकर समूह में फाग गीत गाए जाते हैं। इस दौरान पिता से नेग (शगुन) और मां से नारियल व गुड़ लेने की परंपरा निभाई जाती है। बच्चे के ननिहाल व बुआ के घर से कपड़े, खिलौने और उपहार आते हैं।
एक साल से छोटे बच्चों को दूल्हे की तरह सजाया जाता है और होली की अग्नि की परिक्रमा करवाई जाती है। यह परंपरा बाड़मेर की समृद्ध संस्कृति और सामाजिक जुड़ाव का प्रतीक है, जो होली को और भी खास बना देती है।
बाड़मेर की 'ढूंढने' परंपरा न सिर्फ सांस्कृतिक विरासत को संजोती है, बल्कि सामाजिक रिश्तों को भी मजबूत करती है। यह त्योहार रंगों, उमंग और परंपराओं का मिलाजुला उत्सव बनकर हर साल अनूठे अंदाज में मनाया जाता है।
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