सीकर : भारत में कई अनोखी परंपराएं देखने को मिलती हैं, लेकिन राजस्थान के सीकर जिले के रींगस कस्बे में होली पर निभाई जाने वाली परंपरा सबसे अलग और दिलचस्प है। यहां होली के दिन दूल्हे की बारात और मुर्दे की शव यात्रा एक साथ निकाली जाती है। इस अनूठी परंपरा को अच्छाई और बुराई के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
कैसे मनाई जाती है यह अनूठी होली?
- गोपीनाथ मंदिर के बाहर सुबह से ही होली खेलने वाले लोग जमा हो जाते हैं और एक-दूसरे को गुलाल लगाकर पर्व की बधाई देते हैं।
- मंदिर में भजन-कीर्तन का कार्यक्रम भी होता है।
- दोपहर में एक युवक को दूल्हे के रूप में तैयार कर उसे घोड़े या ऊंट पर बैठाया जाता है।
- इसके साथ ही घास के पुतले को मुर्दे के रूप में तैयार किया जाता है।
- दूल्हे की बारात ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते हुए निकलती है, जबकि शव यात्रा मातमी धुन और विलाप के साथ आगे बढ़ती है।
अंतिम संस्कार के बाद खत्म होती है परंपरा
- यह अनोखी यात्रा गोपीनाथ मंदिर से पूरे कस्बे में घूमती है।
- दशहरा मैदान में शव के प्रतीकात्मक पुतले का अंतिम संस्कार किया जाता है।
- इस परंपरा को देखने के लिए आसपास के गांवों से हजारों लोग शामिल होते हैं।
क्या है इस परंपरा का महत्व?
- दूल्हे की बारात को आने वाले वर्ष में अच्छाई का प्रतीक माना जाता है।
- मुर्दे की शव यात्रा को बुराई के अंत का प्रतीक माना जाता है।
- यह परंपरा अच्छाई की जीत और नकारात्मकता को त्यागने का संदेश देती है।