जयपुर: राजस्थान के राज्यपाल हरिभाउ बागडे ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में हो रहे सांस्कृतिक क्षरण पर सवाल उठाते हुए तीखा बयान दिया। उन्होंने कहा, “जब हम छोटे थे, तो ‘ग’ से गणपति पढ़ाया जाता था। लेकिन आज इसे बदलकर ‘ग से गधा’ कर दिया गया है। गणपति शब्द धार्मिक मान लिया गया और हटाया गया, जबकि गधा पढ़ाना स्वीकार्य है। यह सोच हमारी जड़ों को कमजोर कर रही है।”
राज्यपाल जयपुर में एक शैक्षणिक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे, जहां उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के बीच बढ़ती खाई पर चिंता जताई।
बागडे ने कहा, “आज हम बच्चों को बताते हैं कि गुरुत्वाकर्षण की खोज न्यूटन ने की थी। लेकिन न्यूटन के जन्म से भी सैकड़ों साल पहले हमारे वैज्ञानिक भास्कराचार्य ने इस विषय पर विस्तार से लिखा था। उन्होंने ‘सिद्धांत शिरोमणि’ जैसे ग्रंथों में गुरुत्व का स्पष्ट उल्लेख किया था।”
राज्यपाल ने यह भी कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में जब तक स्वदेशी वैज्ञानिकों और ऋषियों के योगदान को स्थान नहीं मिलेगा, तब तक भारतीय आत्मगौरव जाग्रत नहीं हो सकता।
हरिभाउ बागडे ने सुझाव दिया कि नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति, परंपराओं और ज्ञान की विरासत से परिचित कराने के लिए पाठ्यक्रमों में व्यापक सुधार किया जाना चाहिए। “यदि हम बच्चों को सिर्फ पाश्चात्य विचारों पर आधारित शिक्षा देंगे, तो वे अपनी जड़ों से कट जाएंगे,” उन्होंने कहा।
उन्होंने कहा कि समय आ गया है जब हम ‘ग से गणपति’ को फिर से पाठ्यक्रम में शामिल करें, और भास्कराचार्य, चरक, सुश्रुत, पतंजलि जैसे महापुरुषों की शिक्षाओं को प्राथमिक शिक्षा से जोड़ें।
राज्यपाल हरिभाउ बागडे के यह विचार आज के समय में चल रही भारतीय शिक्षा प्रणाली में वैचारिक असंतुलन को उजागर करते हैं। उनके बयान ने न केवल सनातन परंपरा की ओर ध्यान आकर्षित किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि यदि शिक्षा में संस्कृति और विज्ञान का समन्वय नहीं हुआ, तो आने वाली पीढ़ियों का आत्मविश्वास और दिशा दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
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