जयपुर: राजस्थान की राजधानी जयपुर के सीतापुरा इंडस्ट्रियल एरिया में सोमवार देर रात हुए सेप्टिक टैंक हादसे में 4 सफाईकर्मियों की मौत के बाद राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा ने इस दुखद घटना पर गहरा रोष जताते हुए राज्य सरकार को लापरवाही का जिम्मेदार ठहराया है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कहा:
“पिछले 10 दिनों में डीग, बीकानेर और अब जयपुर में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 11 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य सरकार की सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर कोई गंभीरता नहीं है। बजट में मशीनें खरीदने की बात की गई थी, लेकिन आज भी सफाईकर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं।”
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने हादसे को लेकर सरकार पर हमला बोलते हुए लिखा:
“बीकानेर के बाद अब जयपुर में ऐसी घटना होना सरकार की घोर लापरवाही और सफाईकर्मियों की सुरक्षा के नियमों की अनदेखी है। बार-बार ऐसे हादसे हो रहे हैं, लेकिन सरकार आंखें मूंदे बैठी है। दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।”
पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने घटना को मानवता को शर्मसार करने वाला बताया और 1-1 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग करते हुए कहा:
“सीतापुरा ज्वैलरी जोन में सोने-चांदी के कण ढूंढने के लिए 8 मजदूरों को रात में सेप्टिक टैंक में उतारा गया। बिना किसी सेफ्टी के, सिर्फ लालच में, मजदूरों को जहरीली गैस वाले टैंक में उतारना हत्या के बराबर है। सेप्टिक टैंक की सफाई मशीन से होनी चाहिए, इंसान से नहीं।”
उन्होंने आगे कहा:
“इस घटना के लिए पूरी तरह फैक्ट्री मालिक जिम्मेदार हैं। पुलिस तुरंत FIR दर्ज करे और मृतकों के परिवार को मुआवजा दिलवाए।”
खाचरियावास ने हादसे की जांच और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग भी की और यह भी स्पष्ट किया कि वह स्वयं ज्वैलरी जोन का दौरा करेंगे और घायल मजदूरों से अस्पताल में मिलेंगे।
भारत में सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए मशीनों का प्रयोग अनिवार्य किया गया है। इसके बावजूद मानव श्रम का गैरकानूनी उपयोग लगातार हो रहा है। जयपुर की यह घटना एक बार फिर सवाल उठाती है कि जमीनी स्तर पर सुरक्षा नियमों को किस हद तक नजरअंदाज किया जा रहा है।
जयपुर सेप्टिक टैंक हादसा एक दर्दनाक घटना से कहीं ज्यादा, प्रशासनिक उदासीनता और सिस्टम की विफलता का प्रतीक बनकर उभरा है। राजनीतिक दलों का बयानबाजी करना लाजमी है, लेकिन अब वक्त है कि सरकार नियमों के सख्त पालन और मजदूरों की सुरक्षा के लिए ज़मीनी एक्शन ले। नहीं तो हर कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं मजदूरों की जान लेती रहेंगी और शासन-प्रशासन सिर्फ बयान देता रहेगा।
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