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गोविंद देवजी मंदिर उत्तराधिकार विवाद पर हाईकोर्ट का यथास्थिति आदेश: महंत अंजन कुमार के पक्ष में फैसले को चुनौती, भाई ओथेश कुमार की अपील पर सुनवाई

जयपुर: में श्रद्धा और भक्ति का केंद्र कहे जाने वाले श्री गोविंद देवजी मंदिर के महंत पद को लेकर विवाद अब राजस्थान हाईकोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। महंत अंजन कुमार को मंदिर के एकल सेवारत महंत के रूप में मान्यता देने के अधीनस्थ अदालत के आदेश पर हाईकोर्ट ने रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है।


क्या है पूरा मामला?

  • मूल विवाद गोविंद देवजी मंदिर के महंत पद को लेकर है।

  • अधीनस्थ अदालत ने अंजन कुमार को मंदिर के एकमात्र सेवारत महंत के रूप में मान्यता देने का आदेश दिया था।

  • इस फैसले के खिलाफ अंजन कुमार के भाई ओथेश कुमार ने राजस्थान हाईकोर्ट में अपील दायर की।

  • हाईकोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए फिलहाल मंदिर प्रबंधन और महंत पद को लेकर यथास्थिति बनाए रखने को कहा है।


हाईकोर्ट का क्या कहना है?

हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता और धार्मिक-सामाजिक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए कहा कि:

"अंतिम निर्णय आने तक किसी भी पक्ष द्वारा मंदिर के महंत पद या व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं किया जाए।"


भाई-भाई में संघर्ष: विरासत की जंग

महंत अंजन कुमार और ओथेश कुमार दोनों मंदिर की परंपरागत सेवारत परिवार से हैं।

  • दोनों ही महंत पद के उत्तराधिकारी होने का दावा कर रहे हैं।

  • इस विवाद के चलते भक्तों में भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।

  • मंदिर का संचालन, धार्मिक गतिविधियाँ और प्रबंधन सीधे तौर पर इस फैसले से प्रभावित हो सकता है।


गोविंद देवजी मंदिर का महत्व

  • यह मंदिर जयपुर राजपरिवार की आराध्य आराधना स्थली है।

  • गोविंद देवजी मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

  • मंदिर का धार्मिक, ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व अत्यंत गहरा है।


क्या आगे हो सकता है?

  • हाईकोर्ट में अब इस विवाद की अगली सुनवाई के बाद तय होगा कि महंत पद का वास्तविक उत्तराधिकारी कौन है

  • तब तक कोई भी पक्ष मंदिर की व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप नहीं कर सकेगा।

  • भक्तों को भी परंपरागत रूप से चल रही पूजा-पाठ और सेवा कार्य यथावत मिलते रहेंगे।


निष्कर्ष:

गोविंद देवजी मंदिर जैसी सांस्कृतिक धरोहर पर उत्तराधिकार को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई अब संवेदनशील मोड़ पर पहुंच गई है। हाईकोर्ट के यथास्थिति आदेश से फिलहाल मंदिर व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन यह मामला धार्मिक विरासत और कानूनी अधिकारों के बीच की जटिलता को उजागर करता है।

Written By

Monika Sharma

Desk Reporter

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