राजस्थान हाईकोर्ट: ने हाल ही में केयर लीवर्स के भविष्य को लेकर गंभीर चिंता जताई है। स्वप्रेरित प्रसंज्ञान के तहत सुनवाई करते हुए जस्टिस अनूप ढंढ ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिए कि वे केयर लीवर्स यानी ऐसे 18 वर्ष के अनाथ या बेसहारा बच्चों के लिए विशेष नीति बनाएं जो बाल गृह छोड़कर बाहर की दुनिया में आते हैं लेकिन उनका कोई रिकॉर्ड या देखरेख नहीं होती।
केयर लीवर्स वे युवा होते हैं जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर बाल गृह या संस्थानों से बाहर निकलते हैं।
अक्सर इनके पास नौकरी, आवास, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा का कोई ठोस आधार नहीं होता।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह के युवाओं का कोई रजिस्टर या ट्रैकिंग सिस्टम नहीं है, जिससे उनकी स्थिति पर नजर रखना मुश्किल होता है।
ऐसे हालात में ये युवा जीवन में संघर्ष करते हैं और कई बार अपराध या असमाजिक गतिविधियों में फंस जाते हैं।
जस्टिस अनूप ढंढ ने कहा:
"18 वर्ष के अनाथ बच्चों के लिए कोई ठोस रिकॉर्ड या योजना नहीं है, यह चिंता का विषय है। इनके लिए केंद्र और राज्य को मिलकर प्रभावी नीति बनानी होगी ताकि इनके जीवन में सुधार हो।"
कोर्ट ने दोनों सरकारों को केयर लीवर्स के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए।
यह भी कहा गया कि इनके लिए रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और आवास की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
केयर लीवर्स के डेटा का निर्माण और रखरखाव
रोजगार एवं कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम
आवासीय सुविधा और आर्थिक सहायता योजनाएं
मानसिक स्वास्थ्य और परामर्श सेवाएं
सामाजिक समावेशन के लिए योजनाएं
केयर लीवर्स न केवल अनाथ बच्चों की समस्या है, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक मुद्दा है, जो बाल संरक्षण, शिक्षा और रोजगार से जुड़ा हुआ है। राजस्थान हाईकोर्ट का यह आदेश इस दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकारों को केयर लीवर्स की बेहतरी के लिए नीति बनाने का स्पष्ट निर्देश देकर यह संदेश दिया है कि समाज के कमजोर वर्गों की सुरक्षा और विकास प्राथमिकता होनी चाहिए। अब सरकारों पर जिम्मेदारी है कि वे इस दिशा में तेजी से काम करें।
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