जैसलमेर/जयपुर: राजस्थान खुफिया विभाग ने पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में जैसलमेर जिले के जिला रोजगार कार्यालय में कार्यरत असिस्टेंट एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर (AAO) शकूर खान को गिरफ्तार किया है। प्रारंभिक पूछताछ में खुलासा हुआ है कि शकूर पिछले 15 वर्षों में 7 बार पाकिस्तान गया और वहां कुल 60 दिनों से अधिक समय तक रुका। साथ ही वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के संपर्क में भी था।
जानकारी के अनुसार शकूर खान राजस्थान के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता का पूर्व निजी सहायक (PA) रह चुका है। इस दौरान उसे राजनीतिक, प्रशासनिक और सुरक्षा से जुड़ी कई संवेदनशील जानकारियों तक पहुंच मिली, जिनका वह गलत इस्तेमाल करता रहा।
शकूर व्हाट्सऐप कॉलिंग और चैट के माध्यम से पाकिस्तान में अपने संपर्कों को लोकेशन और संवेदनशील सूचनाएं भेजता था। जांच एजेंसियों को शक है कि वह सीमा सुरक्षा से जुड़े कई अहम दस्तावेज और जानकारी भी साझा कर चुका है।
खुफिया सूत्रों के अनुसार, शकूर खान की पाकिस्तान यात्राओं की संख्या और उनकी अवधि सामान्य नहीं थी। वह धार्मिक यात्रा के बहाने पाकिस्तान गया करता था, लेकिन वहां उसकी गतिविधियां संदिग्ध रही हैं। हाल ही में उसके मोबाइल और डिजिटल डिवाइसेज़ की जांच में पाकिस्तान के नंबरों से चैटिंग, संदिग्ध फाइलें और लोकेशन शेयरिंग की पुष्टि हुई है।
जांच एजेंसियां अब यह पता लगाने में जुटी हैं कि क्या शकूर खान अकेला ही इस गतिविधि में शामिल था या किसी बड़े नेटवर्क का हिस्सा था। उसकी कॉल डिटेल्स, बैंक लेन-देन और सोशल मीडिया एक्टिविटी की डिजिटल फॉरेंसिक जांच कराई जा रही है।
पुलिस और ATS टीमों ने शकूर के आवास और कार्यस्थल पर छापेमारी कर कुछ दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए हैं। इनसे और बड़े खुलासे होने की संभावना है।
राज्य पुलिस ने शकूर खान पर राजद्रोह, आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act) और आइटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। उसे कोर्ट में पेश कर 7 दिन की रिमांड पर लिया गया है ताकि पूछताछ में और जानकारी निकल सके।
शकूर खान की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस खेमे में भी खलबली मच गई है। पार्टी नेतृत्व इस विषय में फिलहाल चुप्पी साधे हुए है। लेकिन इस घटना से यह साफ हो गया है कि सरकारी सिस्टम में स्लीपर सेल या खुफिया नेटवर्क कितने गहरे तक जड़ें जमा चुके हैं।
शकूर खान का मामला न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा, बल्कि राजनीतिक तंत्र की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करता है। यह घटना बताती है कि देश को भीतर से खोखला करने वाले जासूस सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि दफ्तरों और राजनीतिक गलियारों में भी बैठे हो सकते हैं।
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