जयपुर : राजस्थान की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में स्थित अकबरी जामा मस्जिद अब वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी। हाल ही में लागू हुए वक्फ संशोधन कानून 2025 (Waqf Amendment Act 2025) के तहत वक्फ बोर्ड द्वारा संरक्षित इमारतों पर किया गया स्वामित्व दावा अमान्य घोषित कर दिया गया है। इसी के साथ जयपुर की यह ऐतिहासिक मस्जिद भी अब पूरी तरह से ASI के संरक्षण में आएगी।
जयपुर की यह अकबरी मस्जिद पहले से ही 1951 में एक संरक्षित इमारत घोषित हो चुकी थी, लेकिन 1965 में इसे वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया था। इसी प्रकार के कई मामले पूरे भारत में देखे गए हैं, जैसे कि कुतुब मीनार, पुराना किला, और हुमायूं का मकबरा, जिनपर भी वक्फ बोर्ड का दावा किया गया था।
नए कानून की धारा 3(D) के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी संरक्षित ऐतिहासिक धरोहर पर वक्फ बोर्ड का दावा अमान्य होगा, चाहे वह किसी भी साल घोषित की गई हो। इस प्रावधान के तहत अब अकबरी मस्जिद, औरंगज़ेब का मक़बरा, आगरा की इमारतें आदि सभी वक्फ की श्रेणी से बाहर हो गई हैं।
इस मस्जिद का इतिहास 1569 से जुड़ा है, जब मुग़ल सम्राट अकबर रणथंभौर के अभियान और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की यात्रा पर निकले थे। आमेर में रुकने के दौरान नरेश भारमल ने उनके लिए मस्जिद का निर्माण करवाया, जहां अकबर ने नमाज़ अदा की थी। औरंगज़ेब के समय इसका विस्तार किया गया था।
मस्जिद के मौजूदा काज़ी सैयद मुज़फ्फर अली ने कहा, “हमारा परिवार 250 साल से नमाज़ अदा करवा रहा है, लेकिन वक्फ बोर्ड ने कभी मस्जिद के रख-रखाव की सुध नहीं ली। अब अगर सरकार इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करेगी तो यह बेहतर है।”
उन्होंने यह भी बताया कि देवस्थान विभाग से सिर्फ 50 रुपये मासिक अनुदान मिलता है, जिससे मस्जिद का संचालन लगभग असंभव हो जाता है।
इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो चुकी है। कई याचिकाकर्ताओं ने धारा 3(D) को लेकर आपत्ति जताई है और कहा है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है।
वहीं दूसरी ओर, ASI ने इन संरक्षित इमारतों को पुनः अपने नियंत्रण में लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, लेकिन कोर्ट के अंतरिम आदेशों की प्रतीक्षा की जा रही है।
जयपुर की अकबरी मस्जिद का वक्फ स्टेटस खत्म होना केवल एक इमारत से जुड़ा मामला नहीं, बल्कि यह देशभर की ऐतिहासिक इमारतों पर वर्षों पुराने विवादों को खत्म करने की दिशा में एक बड़ा क़दम माना जा रहा है। अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी है, जो इस पूरे मामले की दिशा तय करेगा।
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