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स्विट्जरलैंड से लौटने के बाद हुआ मानसिक अस्वस्थ, 20 साल बाद भरतपुर आश्रम में मिला पंजाब का लापता युवक

भरतपुर : कभी स्विट्जरलैंड में होटल कर्मचारी रहे पंजाब के स्वरन सिंह उर्फ महेन्द्र 20 साल तक लापता रहने के बाद राजस्थान के भरतपुर में 'अपना घर आश्रम' में मिले। वर्षों की तलाश और अंतहीन उम्मीदों के बाद परिजनों ने जब उन्हें सही-सलामत देखा, तो खुशी के आंसू छलक पड़े। यह कहानी न केवल एक बेटे की वापसी की है, बल्कि परिवार की उम्मीद, सेवा संस्थाओं की लगन और मानवता की जीत की मिसाल भी है।


स्विट्जरलैंड से लौटे, फिर बिगड़ा मानसिक संतुलन

कपूरथला जिले के गांव लोधीवाल निवासी स्वरन सिंह ग्रेजुएशन के बाद स्विट्जरलैंड चले गए थे, जहां उन्होंने होटल में काम किया। कुछ सालों बाद जब वह वापस लौटे, तो अचानक मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गए। इसी मानसिक स्थिति में वह एक दिन अचानक घर से लापता हो गए


हर जगह खोजा, लेकिन नहीं मिली कोई खबर

स्वरन सिंह के चाचा बलवीर सिंह ने बताया कि परिजनों ने उन्हें हर जगह ढूंढा—रेलवे स्टेशन, आश्रम, अस्पताल और अन्य संभावित जगहों तक—but कोई सुराग नहीं मिला। इसी ग़म में स्वरन की मां महेन्द्र कंवर और पिता तेजा सिंह इस दुनिया से विदा हो गए। बावजूद इसके, परिजनों ने उम्मीद नहीं छोड़ी


अपना घर आश्रम’ बना उम्मीद की किरण

18 अगस्त 2024 को स्वरन सिंह मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार हालत में भरतपुर के फुलवारा गांव में मिले। स्थानीय लोगों की सूचना पर उन्हें ‘अपना घर आश्रम’ में भर्ती कराया गया, जहां उनका नाम ‘महेंद्र प्रभुजी’ रखा गया, क्योंकि उस समय वह अपना नाम तक नहीं बता पा रहे थे।


इलाज और सेवा से लौटी याददाश्त

‘अपना घर आश्रम’ की सेवा और चिकित्सा से छह महीनों के भीतर स्वरन सिंह ने अपना नाम, गांव और परिवार की पहचान बतानी शुरू की। संस्था के पुनर्वास टीम के सदस्य सुभाष शर्मा ने इस सूचना के आधार पर परिजनों से संपर्क साधा।


परिजनों को मिली खुशखबरी, भावुक हुआ मिलन

18 अप्रैल 2025 को जब स्वरन सिंह के परिजनों को सूचना मिली, तो वह तुरंत भरतपुर पहुंचे। जब उन्होंने 20 साल बाद स्वरन को अपनी आंखों के सामने देखा, तो सभी की आंखें नम हो गईं। वे स्वरन को अपने साथ घर वापस ले गए


मानसिक स्वास्थ्य और पुनर्वास की मिसाल

यह घटना मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के पुनर्वास और उनके जीवन को फिर से पटरी पर लाने की एक शानदार मिसाल है। ‘अपना घर आश्रम’ जैसे संस्थान न सिर्फ सेवा कर रहे हैं, बल्कि गुमशुदा परिवारों को जोड़ने का काम भी कर रहे हैं।


निष्कर्ष:

स्वरन सिंह की यह कहानी बताती है कि कभी भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। साथ ही, यह एक सकारात्मक संदेश भी देती है कि मानसिक रूप से बीमार लोगों को सेवा, सहानुभूति और इलाज की जरूरत होती है, उपेक्षा की नहीं। समाज और संस्थाएं मिलकर ऐसे जीवन फिर से सहेज सकती हैं।

Written By

Monika Sharma

Desk Reporter

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