जयपुर: राजस्थान की मौजूदा भजनलाल शर्मा सरकार ने अपने सिर्फ सवा साल के कार्यकाल में 30 तबादला सूचियां जारी कर दी हैं। इन तबादलों की संख्या और रफ्तार ने पूर्ववर्ती गहलोत सरकार को भी पीछे छोड़ दिया है।
दैनिक भास्कर की विशेष पड़ताल में सामने आया कि एक SDM को औसतन सिर्फ 4 महीने की पोस्टिंग मिली। वहीं, कई टॉप IAS और RAS अफसरों को 3 बार तबादलों का सामना करना पड़ा।
गहलोत सरकार बनाम भजनलाल सरकार – तबादलों का विश्लेषण:
सरकार | कार्यकाल | तबादला सूचियां | औसत पोस्टिंग अवधि (SDM) | टॉप अफसरों के तबादले |
---|---|---|---|---|
अशोक गहलोत | 5 साल | ~60 सूचियां | 6-8 महीने | 1-2 बार |
भजनलाल शर्मा | 1.25 साल | 30 सूचियां | 4 महीने | 2-3 बार |
बार-बार इधर-उधर क्यों?
सूत्रों के अनुसार, स्थानीय राजनीतिक दबाव, विधानसभा क्षेत्र के विधायक की पसंद-नापसंद, और जमीनी स्तर पर अफसरों की पकड़ को लेकर तबादले हो रहे हैं।
कई अफसरों ने निजी तौर पर स्वीकार किया कि बार-बार ट्रांसफर से फील्ड वर्क में स्थायित्व नहीं बन पा रहा, जिससे योजनाओं की मॉनिटरिंग और क्रियान्वयन प्रभावित हो रहा है।
टॉप लेवल पर अस्थिरता:
जयपुर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर जैसे जिलों में कलेक्टर और एसपी के बार-बार तबादले प्रशासनिक स्थिरता पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
एक सीनियर RAS अफसर बोले—
“हम ऑफिस की फ़ाइलों से ज़्यादा तबादला आदेश देखने में व्यस्त हैं। अफसर स्थायी रहेंगे तभी जिम्मेदारी ले पाएंगे।”
पॉलिटिकल एंगल भी:
विपक्ष का आरोप है कि सरकार अपनी पार्टी के नेताओं की संतुष्टि के लिए तबादले कर रही है।
वहीं सत्ताधारी दल के नेताओं का कहना है कि “परफॉर्मेंस बेस्ड ट्रांसफर जरूरी हैं।”
निष्कर्ष:
राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी इस वक्त तबादला नीति के असंतुलन से जूझ रही है। बार-बार के फेरबदल न सिर्फ अफसरों के मनोबल को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि आम जनता की समस्याओं के निराकरण में भी देरी हो रही है।
आगे की राह क्या?
विशेषज्ञों की राय है कि—
सरकार को स्थायी प्रशासनिक नीति बनानी चाहिए
कम से कम 1 साल का कार्यकाल सुनिश्चित करना चाहिए
राजनीतिक दखल को न्यूनतम रखा जाए
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